विधिः अँगूठे के अग्रभाग से मध्यमा और अनामिका (छोटी उँगली के पासवाली उँगली) के अग्रभागों को स्पर्श करें। बाकी की दो उँगलियाँ सहजावस्था में सीधी रखें।
अवधिः इस मुद्रा का अभ्यास किसी भी समय, कितनी भी अवधि के लिए कर सकते हैं परंतु प्रतिदिन नियमित रूप से करें।
लाभः इस मुद्रा के अभ्यास से शरीर की अंदरूनी सफाई में मदद मिलती है। आँतों में फँसे मल और विषैले पदार्थों को आसानी से बाहर निकालने में यह मुद्रा काफी असरदार है। इसके फलस्वरूप शारीरिक व मानसिक पवित्रता में वृद्धि होती है और अभ्यासकर्ता में सात्त्विक गुणों का समावेश होने लगता है। मूत्र-उत्सर्जन में कठिनाई, वायुदोष, अम्लदोष (पित्तदोष), पेटदर्द, कब्जियत और मधुमेह जैसी बीमारियों में भी यह मुद्रा काफी लाभदायक सिद्ध हुई है। जिन्हें पसीना न आने के कारण परेशानी होती हो, वे इस मुद्रा के अभ्यास से जल्द ही उससे छुटकारा पा सकते हैं। यदि छाती और गले में कफ जम गया हो तो इस मुद्रा के अभ्यास से ऐसे उपद्रवी कफ को भी सहज ही शरीर से बाहर किया जा सकता है। इसका नियमित अभ्यास कैंसर जैसी भयानक बीमारी की भी रोकथाम करने में सहायक है।
अवधिः इस मुद्रा का अभ्यास किसी भी समय, कितनी भी अवधि के लिए कर सकते हैं परंतु प्रतिदिन नियमित रूप से करें।
लाभः इस मुद्रा के अभ्यास से शरीर की अंदरूनी सफाई में मदद मिलती है। आँतों में फँसे मल और विषैले पदार्थों को आसानी से बाहर निकालने में यह मुद्रा काफी असरदार है। इसके फलस्वरूप शारीरिक व मानसिक पवित्रता में वृद्धि होती है और अभ्यासकर्ता में सात्त्विक गुणों का समावेश होने लगता है। मूत्र-उत्सर्जन में कठिनाई, वायुदोष, अम्लदोष (पित्तदोष), पेटदर्द, कब्जियत और मधुमेह जैसी बीमारियों में भी यह मुद्रा काफी लाभदायक सिद्ध हुई है। जिन्हें पसीना न आने के कारण परेशानी होती हो, वे इस मुद्रा के अभ्यास से जल्द ही उससे छुटकारा पा सकते हैं। यदि छाती और गले में कफ जम गया हो तो इस मुद्रा के अभ्यास से ऐसे उपद्रवी कफ को भी सहज ही शरीर से बाहर किया जा सकता है। इसका नियमित अभ्यास कैंसर जैसी भयानक बीमारी की भी रोकथाम करने में सहायक है।
ऋषि प्रसाद, अगस्त 2010
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