चतुर्मास में शीत जलवायु के कारण
वातदोष प्रकुपित हो जाता है । अम्लीय जल से पित्त भी धीरे - धीरे संचित होने लगता
है । हवा की आर्द्रता (नमी) जठराग्नि को मंद कर देती है । सूर्यकिरणों की कमी से
जलवायु दूषित हो जाते हैं । यह परिस्थिति अनेक व्याधियों को आमंत्रित करती है ।
इसलिए इन दिनों में व्रत उपवास व होम-हवनादि को हिन्दू संस्कृति ने विशेष महत्त्व
दिया है । इन दिनों में भगवान शिवजी की पूजा में प्रयुक्त होने वाले बिल्वपत्र
धार्मिक लाभ के साथ साथ स्वास्थ्य लाभ भी प्रदान करते हैं ।
बिल्वपत्र उत्तम वायुनाशक, कफ-निस्सारक व जठराग्निवर्धक है। ये कृमि व दुर्गन्ध
का नाश करते हैं । इनमें निहित उड़नशील तैल व इगेलिन, इगेलेनिन
नामक क्षार-तत्त्व आदि औषधीय गुणों से भरपूर हैं । चतुर्मास में उत्पन्न होने वाले
रोगों का प्रतिकार करने की क्षमता बिल्वपत्र में है ।
बिल्वपत्र ज्वरनाशक, वेदनाहर, कृमिनाशक, संग्राही (मल को बाँधकर लाने वाले) व सूजन उतारने वाले हैं । ये मूत्र के
प्रमाण व मूत्रगत शर्करा को कम करते हैं । शरीर के सूक्ष्म मल का शोषण कर उसे
मूत्र के द्वारा बाहर निकाल देते हैं । इससे शरीर की आभ्यंतर शुद्धि हो जाती है ।
बिल्वपत्र हृदय व मस्तिष्क को बल प्रदान करते हैं। शरीर को पुष्ट व सुडौल बनाते
हैं । इनके सेवन से मन में सात्त्विकता आती है ।
बिल्वपत्र के प्रयोगः
१.
बेल
के पत्ते पीसकर गुड़ मिला के गोलियाँ बनाकर खाने से विषमज्वर से रक्षा होती है ।
२.
पत्तों
के रस में शहद मिलाकर पीने से इन दिनों में होने वाली सर्दी, खाँसी, बुखार आदि कफजन्य रोगों
में लाभ होता है ।
३.
बारिश में दमे के मरीजों की साँस फूलने लगती है।
बेल के पत्तों का काढ़ा इसके लिए लाभदायी है ।
४.
बरसात
में आँख आने की बीमारी (Conjuctivitis) होने
लगती है। बेल के पत्ते पीसकर आँखों पर लेप करने से एवं पत्तों का रस आँखों में
डालने से आँखें ठीक हो जाती है ।
५.
कृमि नष्ट करने के लिए पत्तों का रस पीना
पर्याप्त है ।
६.
एक
चम्मच रस पिलाने से बच्चों के दस्त तुरंत रुक जाते हैं ।
७.
संधिवात
में पत्ते गर्म करके बाँधने से सूजन व दर्द में राहत मिलती है ।
८.
बेलपत्र
पानी में डालकर स्नान करने से वायु का शमन होता है, सात्त्विकता बढ़ती है ।
९.
बेलपत्र
का रस लगाकर आधे घंटे बाद नहाने से शरीर की दुर्गन्ध दूर होती है ।
१०. पत्तों के रस में मिश्री मिलाकर पीने से अम्लपित्त (Acidity) में आराम मिलता है ।
११. स्त्रियों के अधिक मासिक स्राव व श्वेतस्राव (Leucorrhoea) में बेलपत्र एवं जीरा पीसकर दूध में
मिलाकर पीना खूब लाभदायी है। यह प्रयोग पुरुषों में होने वाले धातुस्राव को भी
रोकता है ।
१२. तीन बिल्वपत्र व एक काली मिर्च सुबह चबाकर खाने से और साथ में
ताड़ासन व पुल-अप्स करने से कद बढ़ता है। नाटे ठिंगने बच्चों के लिए यह प्रयोग आशीर्वादरूप
है ।
१३. मधुमेह (डायबिटीज) में ताजे बिल्वपत्र अथवा सूखे पत्तों का चूर्ण
खाने से मूत्रशर्करा व मूत्रवेग नियंत्रित होता है ।
बिल्वपत्र की रस की मात्राः 10
से 20 मि.ली.
स्रोतः लोक
कल्याण सेतु, जुलाई-अगस्त २००९
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