ॐ ह्रीं घृणि: सूर्य
आदित्य: क्लीं ॐ |
सुख-सौभाग्य की वृद्धि
करने एवं दुःख-दारिद्र्य को दूर करने के लिए तथा रोग व दोष के शमन के लिए इस
प्रभावकारी मंत्र की साधना रविवार के दिन से करने चाहिए | रविवार को खुले आकाश के
नीचे पूर्व की ओर मुख करके शुद्ध ऊन के आसन पर अथवा कुशासन पर बैठकर काले तिल, जौ,
गूगल, कपूर और घी मिश्रित शाकल (हवन-सामग्री) तैयार करके आम की लकड़ियों से अग्नि
को प्रदीप्त क्र उपरोक्त मंत्र से १०८ आहुतियाँ दें | तत्पश्च्यात सिद्धासन लगाकर इसी
मंत्र का १०८ बार जप करें | जप करते समय दोनों भौहों के मध्य भाग में भगवान सूर्य
का ध्यान करते रहें | इस तरह ११ दिन तक करने से यह मंत्र सिद्ध हो जाता है | इस
साधना में रविवार का व्रत (बिना नमक का, तेलहीन भोजन सूर्यास्त से पहले दिन में एक
ही बार करना अनिवार्य है |)
इसके बाद प्रतिदिन स्नान
के बाद ताम्र-पात्र में जल भरकर उपरोक्त मंत्र से सूर्य को अर्घ्य दें | जमीन पर
जल न गिरे इसलिए नीचे दूसरा ताम्र-पात्र रखें | तत्पश्च्यात इस मंत्र का १०८ बार
जप करें | मात्र इतना करने से आयुष्य, आरोग्य, ऐश्वर्य, सम्पत्ति और कीर्ति
उत्तरोत्तर बढती हैं |
ऋषिप्रसाद – दिसम्बर
२०१८ से
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