क्या करें
१] धीमी आँच पर उबाले हुए दूध से बना दही गुणवाला अर्थात
वात-पित्तशामक, रुचिकर, धातु ( रस, रक्त, मांस आदि ) वर्धक, भूख व बल वर्धक होने
से इसका सेवन हितकारी है | (सुश्रुत संहिता)
२[ हेमंत व शिशिर ऋतू (२३ अक्टूबर २०१९ से १८ फरवरी २०२०)
में दही खाना उत्तम है | (सुश्रुत संहिता)
३] दही को मूँग की दाल के साथ लेना उपयुक्त है | दुर्बल व
वात प्रकृति के लोगों को देशी गाय के घी के साथ तथा कफ प्रकृतिवालों को शहद के साथ
एवं पित्त प्रकुतिवालों को मिश्री व आँवले के साथ दही का सेवन करना चाहिए |
४] दही के साथ पुराने गुड़ का सेवन वातशामक, वीर्य एंव रस,
रक्त आदि वर्धक तथा तृप्तिदायक होता है | (भावप्रकाश)
५] दस्त, अरुचि, दुर्बलता व शरीर के कृष होने पर तथा दिन
में दही खाना हितकर है |
क्या न करें
१] दही प्रतिदिन न खायें | खट्टे तथा अच्छे-से न जमे हुए
दही का सेवन न करें | (अष्टांगह्रदय)
२] शरद, ग्रीष्म और वसंत ऋतू में दही खाना निषिद्ध है |
शास्त्रों में वर्षा ऋतू में दही-सेवन निषिद्ध नही हैं लेकिन वर्तमान परिवेश को
देखते हुए जानकार वैद्य इस ऋतू में दही-सेवन अहितकर मानते हैं |
३] दही शरीर के स्रोतों (विभिन्न प्रवाह-तंत्रों) में अवरोध
उत्पन्न करता है अत: अकेले दही का सेवन न करें |
४] दही को गर्म करके खाना, व्यंजन बनाते समय उनमें दही
मिलाना, दही के साथ खोये की मिठाई तथा केला आदि फल खाना, दही की लस्सी में बर्फ
मिलाना- इनसे स्वास्थ्य की बहुत हानि होती है |
५] सूर्यास्त के बाद दही नहीं खाना चाहिए |
६] बासी दही तथा दही को फ्रिज में रखकर सेवन करना हानिकारक
है |
ऋषिप्रसाद – दिसम्बर २०१९ से
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