दही का सेवन बहुत लोग करते हैं तथा शास्त्रों में भी इसके लाभ वर्णित हैं
परन्तु इसका शास्त्रीय तरीके से, सावधानीपूर्वक, ऋतू-अनुकूल सेवन करने का ढंग जानना व उसके अनुसार सेवन करना
आवश्यक है, अन्यथा यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी हो सकता है |
देशी गाय के गव्यों में दही का अपना विशेष महत्त्व है
| पद्म पुराण में आता है कि दही सेवन करने के बाद २० रात्रि तक शरीर में अपना
प्रभाव रखता है | आयुर्वेद के अनुसार सभी प्रकार के दहीयों में देशी गाय के दूध का
दही अधिक गुणवाला है | यह विशेषरूप से मधुर तथा अम्ल रसयुक्त, उष्ण, रुचिकारक,
पवित्र, प्रसन्नता व पुष्टि कारक, भूखवर्धक, ह्रदय-हितकर तथा वातशामक एवं
कफ-पित्तवर्धक होता है | यह बल-वीर्य व मेद-मांस धातुओं को बढ़ाता है | दही की मलाई
शुक्रवर्धक होती है |
उपरोक्त गुण देशी गाय के दूध से विधिवत बने दही का
विधि-निषेध का विचार कर सेवन करने से प्राप्त होते हैं, जर्सी,होल्स्टिन आदि
तथाकथित गायोंम भैंस तथा पैकेट आदि के दूध से बने दही से नहीं |
सुश्रुत संहिता के अनुसार मीठा दही कफ और मेड को
बढ़ाता है, खट्टा दही कफ और पित्त को बढ़ाता है तथा अति खट्टा दही रक्त को दूषित
करता है | ठीक से न जमा हुआ दही त्रिदोषप्रकोपक होता है |
v दस्त से पीड़ित बच्चों को दही के ऊपर का पानी मिलाने से
शीघ्र आराम मिलता है |
v कैंसर जैसे कष्टप्रद रोग में १० मि.ली. तुलसी के रस में
२०-३० ग्राम ताजा दही मिलाकर देने से बहुत लाभ होता है | इस अनुभूत प्रयोग से कई
रुग्ण इस बीमारी से रोगमुक्त हो गये हैं |
पूज्य बापूजी के सत्संग में आता है : “दही खाना हो तो शीधे
न खायें | पहले उसे अच्छी तरह मथकर मक्खन निकाल लें और बचे हुए भाग को लस्सी या
छाछ बना के सेवन करें | ध्यान रहे, दही खट्टा न हो |”
दही कैसे जमायें ?
दही का मीठा या खट्टा होना उसके जमाने की विधि पर निर्भर
करता है |
१] अच्छा दही जमाने के लिए दूध का शुद्ध होना जरूरी है |
२] दूध को सामान्य मिट्टी के पात्र या स्टेनलेस स्टील के
बर्तन में डालकर धीमी आँच पर उबालें | १-२ उबाल तक ही उबालें, जिससे दूध के पोषक
तत्त्व नष्ट न हों | मिट्टी के कुल्हड़ में जमाया हुआ दही गाढ़ा व मीठा होता है |
३] अधिक गर्म दूध जमाने से दही पानी छोड़ देता है और खट्टा
भी हो जाता है तथा दूध ठंडा होने से दही जमता नहीं | गाय के थनों से निकला दूध
जितना गर्म होता है उतने तापमान पर यदि दही जमाया जाय तो वह अत्यंत मीठा होता है |
४] जामन ( थोडा-सा दही ) को ५०-६० ग्राम दूध में खूब मिलाएं
| फिर पुरे दूध में डाल में ढककर रख दें | एक दिन से ज्यादा पुराना जामन प्रयोग
करने से दही खट्टा हो जाता है | फिटकरी, नींबू के रस या खटाई से बनाया दही हानिकारक
होता है |
५] ठंड के दिनों में दही जमने में ज्यादा समय लग सकता है
अत: दूध में जालन डालने के बाद बर्तन को ढककर उसे कम्बल से ढक के रखें |
ध्यान दें : अ] जो लोग विधि के विरुद्ध दही खाते हैं उनमें
बुखार, रक्तपित्त, विसर्प, चर्मरोग, खून की कमी, चक्कर आना एवं प्रचंड रूप से
पीलिया रोग, मोटापा, प्रमेह, मधुमेह आदि रोग उत्पन्न हो जाते हैं |
ब] जलन, शरीर के विभिन्न अंगों से होनेवाला रक्तस्त्राव आदि
पित्तजन्य रोग, सर्दी-जुकाम, खाँसी, दमा आदि कफजन्य रोग तथा बुखार, जोड़ों का दर्द
एवं रक्त दूषित होने से उत्पन्न चर्मरोग, मन्दाग्नि आदि में दही का सेवन हानिकारक
है |
ऋषिप्रसाद – दिसम्बर २०१९ से
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