वर्षाऋतूजन्य व्याधियों से रक्षा व रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ाने हेतु गोमूत्र सर्वोपरि है | सूर्योदय से पूर्व ४० से ५० मि.ली. ताजा गोमूत्र कपडे से ७ बार छानकर पीने से अथवा २५ से ३० मि.ली. गोझरण अर्क पानी में मिलाकर पीने से शरीर के सभी अंगों की शुद्धि होकर ताजगी, स्फूर्ति व कार्यक्षमता में वृद्धी होती है |
· दूध में सोंठ चूर्ण मिलाकर सेवन करने से ह्रदयगत पीड़ा का नाश होता है |
· त्रिमधुर (शर्करा, गुड़ व शहद ) में डुबोई हुई दूर्वा का गायत्री मंत्र से हवन करने पर मनुष्य सब रोगों से छुट जाता है | (अग्नि पुराण: २८०.५ )
· गिलोय अत्यंत वीर्यप्रद है | इसका क्वाथ (काढ़ा) पीने से अत्यंत असाध्य वातरोग भी दूर होता है | इसके स्वरस, कल्क, चूर्ण या क्वाथ का दीर्घकाल तक सेवन करने से रोगी वातरक्त रोग से छुटकारा पा जाता है |
· गिलोय के क्वाथ और कल्क से सिद्ध घृत जीर्णज्वर का विनाशक है |
· दूध में सोंठ चूर्ण मिलाकर सेवन करने से ह्रदयगत पीड़ा का नाश होता है |
· त्रिमधुर (शर्करा, गुड़ व शहद ) में डुबोई हुई दूर्वा का गायत्री मंत्र से हवन करने पर मनुष्य सब रोगों से छुट जाता है | (अग्नि पुराण: २८०.५ )
· गिलोय अत्यंत वीर्यप्रद है | इसका क्वाथ (काढ़ा) पीने से अत्यंत असाध्य वातरोग भी दूर होता है | इसके स्वरस, कल्क, चूर्ण या क्वाथ का दीर्घकाल तक सेवन करने से रोगी वातरक्त रोग से छुटकारा पा जाता है |
· गिलोय के क्वाथ और कल्क से सिद्ध घृत जीर्णज्वर का विनाशक है |
-लोककल्याण सेतु – जून २०१४ से
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