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Saturday, January 19, 2019

साधना में अपनी उन्नति को स्वयं कैसे मापें ?


कितने ही साधक-भक्त ऐसे हैं जो लम्बे समय से साधना कर रहे हैं | साधना में प्रगति के लिए साधक के जीवन में स्वयं का मूल्यांकन आवश्यक है | साधक को खुद ही अपना आत्म-विश्लेषण करना चाहिए | जितना ठीक ढंग से हम स्वयं अपना निरिक्षण कर सकते हैं उतना अन्य नहीं कर सकता क्योंकि हम जितने अच्छे-से अपने गुण-दोषों, कमजोरियों से परिचित होते हैं, उतने अन्य व्यक्ति नहीं होते | जिज्ञासु साधकों को इन प्रश्नों का उत्तर स्वयं ही खोजना चाहिए ताकि साधना में शीघ्र उन्नति हो :
१] साधना में रूचि दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है अथवा घट रही है या उदासीनता आ रही है ?

२] सत्संग सुनने के बाद उसे जीवन में उतारने की जिज्ञासा भी है या नहीं ?

३] ध्यान-भजन-सत्संग का लक्ष्य आपके लिए परमात्मा की प्राप्ति है या नश्वर संसार के क्षणभंगुर भोग ?

४] मंत्रदीक्षा के समय साधना की जो पद्धतियाँ बतायी गयी थीं, उनसे आप कितने लाभान्वित हुए हैं या वे याद ही नहीं हैं ?

५] संसार के प्रति आकर्षण कम हुआ है या ज्यों-का-त्यों बना हुआ है ?

६] शास्त्रवचन और संत-उपदेश में श्रद्धा है या नहीं ?

७] कही आप सेवा-साधना के बहाने प्रशंसा के रोग से तो ग्रस्त नहीं हो गये हैं ?

८] भोगों से मन उपराम हुआ है या अभी भी उनमें सुखबुद्धि बनी हुई हैं ?

९] त्रिकाल संध्या का नियम माह में कितनी बार पूर्ण करते हैं ? ध्यान-भजन और सेवा के लिए दिनभर में कितना समय देते हैं ?

१०] क्या कभी प्रभु के साथ एकाकार हो जाने की तड़प मन में उठती है ?

११] मंत्रजप करते-करते कहीं मनोराज में तो नहीं उलझ जाते हैं ?

१२] चित्त की चंचलता, मन की मनमुखता शांत होकर अंतर का आराम प्रकट हो रहा है या नहीं ?

१३] सुख में सुखी और दुःख में दु:खी होने की प्रवृत्ति से निवृत्ति की ओर आप अग्रेसर हो रहे हैं या नहीं ? सुख-दुःख में सम हो रहे हैं या नहीं ?

१४] सत्संग में जाने के बाद सत्संग का, मनुष्य-जीवन का महत्त्व समझ में आया है अथवा रोजी-रोटी के लिए ही जीवन पूरा हो रहा है ?

१५] जीवन में निर्भयता, निश्चिंतता, प्रसन्नता जैसे उन्नति के परम गुणों का प्रादुर्भाव (प्राकट्य) हो रहा है ?

१६] मौन, एकांत, अनुष्ठान के प्रति रूचि कितनी है ?

१७] उद्वेग के प्रसंग में आप कितना धैर्य और संयम रख पाते हैं ?

अपने जीवन में किसी प्रकार की कमियाँ दिखें तो सुबह १०-१२ प्राणायाम करके उन कमियों को निकालने के लिए सद्गुणों का विचार करने से आपके दुर्गुण धीरे-धीरे निवृत्त होते जायेंगे एवं ह्रदय सद्गुणों से भरता जायेगा | सद्गुणों के विकास से सर्वगुणसम्पन्न परमात्मा का दीदार (अनुभव) करना भी आसान होता जायेगा |

                   लोककल्याणसेतु – दिसम्बर २०१८ से         


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