देशी गाय का गोबर शुद्धिकारक, पवित्र व मंगलकारी है | यह
दुर्गन्धनाशक एवं सात्त्विकता व कांति वर्धक है | भारत में अनादि काल से गौ-गोबर
का लेपन यज्ञ-मंडप, मंदिर आदि धार्मिक स्थलों पर तथा घरों में भी किया जाता रहा है
|
भगवन श्रीकृष्ण कहते हैं :
सभी प्रपा गृहाश्चापि देवतायतनानि च |
शुध्यन्ति शकृता यासां किं भूतमधिकं तत: ||
‘जिनके गोबर से लीपने पर सभा-भवन, पौसले (प्याउएँ), घर और
देव-मंदिर भी शुद्ध हो जाते हैं, उन गौओं से बढ़कर और कौन प्राणी हो सकता है ?’
(महाभारत, आश्वमेधिक पर्व)
मरणासन्न व्यक्ति को गोबर-लेपित भूमि पर लिटाने का रहस्य !
मरणासन्न व्यक्ति को गोबर-लेपित भूमि पर लिटाये जाने की
परम्परा हमारे भारतीय समाज में आपने-हमने देखी ही होगी | क्या आप जानते हैं कि
इसका क्या कारण हैं ?
गरुड पुराण के अनुसार ‘गोबर से बिना लिपी हुई भूमि पर
सुलाये गये मरणासन्न व्यक्ति में यक्ष, पिशाच एवं राक्षस कोटि के क्रूरकर्मी दुष्ट
प्रविष्ट हो जाते हैं |’
वैज्ञानिकों द्वारा किये गये अनुसंधानों का निष्कर्ष भी इस
भारतीय परम्परा को स्वीकार करता है | अनुसंधानो के अनुसार गोबर में फॉस्फोरस पाया
जाता है, जो अनेक संक्रामक रोगों के कीटाणुओं को नष्ट कर देता है | मृत शरीर में
कई प्रकार के संक्रामक रोगों के कीटाणु होते हैं | अत: उसके पास उपस्थित लोगों के
स्वास्थ्य-संरक्षण हेतु भूमि पर गोबर-लेपन करना अनिवार्य माना | अत: उसके पास उपस्थित
लोगों के स्वास्थ्य-संरक्षण हेतु भूमि पर गोबर-लेपन करना अनिवार्य माना गया है |
हानिकारक विकिरणों से रक्षा का उपाय
वर्तमान समय में वातावरण में हानिकारक विकिरण
(radiations) फेंकनेवाले उपकरणों का इस्तेमाल तेजी से बढ़ता जा रहा
है | इन विकिरणों तथा आणविक प्रकल्पों व कारखानों एवं परमाणु हथियारों के प्रयोग
से निकलनेवाले विकिरणों से सुरक्षित रहने का सहज व सरल उपाय भारतीय ऋषि-परम्परा के
अंतर्गत चलनेवाली सामाजिक व्यवस्था में हर किसीको देखने को मिल सकता है |
इस बात को स्पष्ट करते हुए डॉ. उत्तम माहेश्वरी कहते हैं :
“घर की बाहरी दीवार पर गोबर की मोटी पर्त का लेपन किया जाय तो वह पर्त हानिकारक
विकिरणों को सोख लेती है, जिससे लोगों का शरीरिक-मानसिक स्वास्थ्य सुरक्षित रखने
में मदद मिल सकती है |”
भारतीय सामजिक व्यवस्था संतो-महापुरुषों के सिद्धांतों के
अनुसार स्थापित व प्रचलित होने से इसके हर एक क्रियाकलाप के पीछे
सूक्ष्मातिसूक्ष्म रहस्य व उन महापुरुषों की व्यापक हित की भावना छुपी रहती है |
विज्ञान तो उनकी सत्यता और महत्ता बाद में व धीमे-धीमे सिद्ध करता जायेगा और पूरी
तो कभी जान ही नहीं पायेगा | इसलिए हमारे सूक्ष्मद्रष्टा, दिव्यदृष्टा महापुरुषों
के वचनों पर, उनके रचित शास्त्रों-संहिताओं पर श्रद्धा करके स्वयं उनका अनुभव
करना, लाभ उठाना ही हितकारी है |
लोककल्याणसेतु – जनवरी २०१९ से
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