इसमें नियम, संयम, संकल्प होता है, स्थान तथा जप की संख्या
निश्चित होती है | जप करते समय हमें अर्थिग न मिले ऐसे विद्युत् के कुचालक आसन पर
बैठकर या लेट के भी जप किया जा सकता है | लेटने की अपेक्षा बैठना बहुत अच्छा है |
इस प्रकार जप करने को बोलते हैं अचल जप |
अचल जप की संख्या : यदि एक अक्षर का मंत्र हो तो १,११,११०
,मंत्रजप करने से वह मंत्र सिद्ध हो जाता है | एक से अधिक अक्षरोंवाले मंत्र के
लिए मंत्र में जितने अक्षर हैं उस संख्या को १,११,११० से गुणा करने पर अनुष्ठान की
जप-संख्या प्राप्त होती है | जैसे – ‘ॐ नम: शिवाय |’ षडक्षरी मंत्र है तो ६,६६,६६०
जप एवं १२ अक्षर के ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय |’ मंत्र के लिए १३,३३,३२० जप करना
होता है ( इसमें अनुष्ठान के दिनों व मंत्रजप की संख्या के अनुसार प्रतिदिन की
मालाएँ निश्चित कर जप करें ) |
उस सिद्ध मंत्र के साधक की अकाल मृत्यु नहीं हो
सकती है | और दैवयोग से अकाल मृत्यु की घटनावाले लोगों के बीच बैठा हो तो भी उसका
बाल तक बाँका नहीं होगा |
ऋषिप्रसाद – फरवरी २०१९ से
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