पूर्वजन्म या इस जन्म का जो भी कुछ पाप-ताप है, उसे
निवृत्त करने के लिए अथवा संचित नित्य दोष के प्रभाव को दूर करने के लिए
प्रायश्चितरूप जो जप किया जाता है उसे प्रायश्चित जप कहते हैं |
कोई पाप हो गया, कुछ गलतियाँ हो गयीं, इससे कुल-खानदान में
कुछ समस्याएँ हैं अथवा अपने से गलती हो गयी और आत्म-अशांति है अथवा भविष्य में उस
पाप का दंड न मिले इसलिए प्रायश्चित – संबंधी जप किया जाता है |
ॐ ऋतं च सत्यं चाभिद्धात्तपसोऽध्यजायत |
ततो रात्र्यजायत तत: समुद्रो अर्णव: ||
समुद्रादर्णवादधि संवत्सरो अजायत |
अहोरात्राणि विदधद्विश्वस्य मिषतो वशी ||
सूर्याचन्द्रमसौ धाता यथापूर्वमकल्पयत् |
दिवं च पृथिवीं चान्तरिक्षमथो स्व: ||
(ऋग्वेद :मंडल १०,
सूक्त १९०, मंत्र १ - ३ )
इन वेदमंत्रों को पढ़कर त्रिकाल संध्या करे तो किया हुआ पाप
माफ हो जाता है, उसके बदले में दूसरी नीच योनियाँ नहीं मिलतीं | इस प्रकार की विधि
है |
ऋषिप्रसाद – फरवरी २०१९ से
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