लाभ : नियमपूर्वक जलनेति करने से –
१] आँखों की रोशनी बढती है | चश्मे की जरूरत नहीं पडती |
चश्मा हो भी तो धीरे-धीरे नम्बर कम होकर छूट भी जाता है |
२] श्वासोच्छ्वास का मार्ग साफ़ होता है |
३] मस्तिष्क में ताजगी रहती है |
४] चित्त में प्रसन्नता बनी रहती है |
५] दमा, टी.बी., खाँसी, नकसीर, बहरापन आदि छोटी-मोटी
असंख्य बीमारियों में लाभ होता है | सर्दी-जुकाम होने के अवसर कम होते हैं |
विधि : एक लीटर पानी को गुनगुना कर उसमें करीब १० ग्राम
शुद्ध नमक घोल दें | सेंधा नमक मिले तो अच्छा है | सुबह स्नान के बाद यह पानी चौड़े
मुँहवाले पात्र या कटोरे में लेकर पंजो के बल बैठें | पात्र को दोनों हाथों से
पकड़कर नथुने पानी में डुबा दें | अब धीरे-धीरे नाक के द्वारा पानी को भीतर खींचे
और मुँह से बाहर निकालते जायें | नाक को पानी में इस प्रकार डुबोये रखें कि भीतर
जानेवाले पानी के साथ हवा प्रवेश न करे अन्यथा खाँसी आयेगी | इस प्रकार पात्र का
सब पानी नाक द्वारा लेकर मुख द्वारा बाहर निकाल दें | अब दोनों पैर थोड़े खुले रख
के खड़े हो जायें | दोनों हाथ कमर पर रख के भस्त्रिका करते हुए अर्थात श्वास को जोर
से बाहर निकालते हुए आगे की ओर जितना हो सके उतना झुकें | यह क्रिया बार-बार करें,
इससे नाक के भीतर का सब पानी बाहर निकल जायेगा | थोडा-बहुत रह भी जाय और दिन में
कभी भी नाक से बाहर निकल आये तो कुछ चिंताजनक नहीं है |
नाक से पानी भीतर खींचने की यह क्रिया प्रारम्भ में उलझन
जैसी लगेगी लेकिन अभ्यास हो जाने पर बिल्कुल सरल बन जायेगी |
ऋषिप्रसाद –फरवरी २०१९ से
No comments:
Post a Comment