महाशिवरात्रि वस्त्र-अलंकार से इस देह को सजाने का,
मेवा-मिठाई खाकर जीभ को मजा दिलाने का पर्व नहीं है | यह देह से परे देहातीत आत्मा
में आत्मविश्रांति पाने का पर्व है, संयम और तप बढ़ाने का पर्व है | महाशिवरात्रि
का व्रत ठीक से किया जाय तो अश्वमेध यज्ञ का फल होता है | इस व्रत में ३ बातें
होती है :
१] उपवास : ‘उप’ माने समीप | आप शिव के समीप, कल्याणस्वरूप
अन्तर्यामी परमात्मा के समीप आने की कोशिश कीजिये, ध्यान कीजिये | महाशिवरात्रि के
दिन अन्न-जल या अन्न नहीं लेते हैं | इससे अन्न पचाने में जो जीवनशक्ति खर्च होती
है वह बच जाती है | उसको ध्यान में लगा दें | इससे शरीर भी तंदुरुस्त रहेगा |
२] पूजन : आपका जो व्यवहार है वह भगवान के लिए करिये, अपने
अहं या विकार को पोसने के लिए नहीं | शरीर को तंदुरुस्त रखने हेतु खाइये और उसकी
करने की शक्ति का सदुपयोग करने के लिए व्यवहार कीजिये, भोग भोगने के लिए नहीं |
योगेश्वर से मिलने के लिए आप व्यवहार करेंगे तो आपका व्यवहार पूजन हो जायेगा |
महाशिवरात्रि हमें सावधान करती हैं कि आप जो भी कार्य करें
वह भगवत हेतु करेंगे तो भगवान की पूजा हो जायेगी |
३] जागरण : आप जागते रहें | जब ‘मैं’ और ‘मेरे’ का भाव आये
तो सोच लेना कि ‘यह मन का खेल है |’ मन के विचारों को देखना | क्रोध आये तो जागना
कि ‘क्रोध आया है |’ तो क्रोध आपका खून या खाना खराब नहीं करेगा | काम आया और जग
गये कि ‘यह कामविकार आया है |’ तुरंत आपने हाथ-पैर धो लिये, रामजी का चिन्तन किया,
कभी नाभि तक पानी में बैठ गये तो कामविकार में इतना सत्यानाश नहीं होगा |
आप जगेंगे तो उसका भी भला होगा, आपका भी भला होगा | तो
जीवन में जागृति की जरूरत है |
ऋषिप्रसाद – फरवरी २०१९ से
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