भोजन की शुद्धि, पौष्टिकता व हितकारिता हेतु जितना
ध्यान हम भोज्य पदार्थो आदि पर देते हैं, उतना ही ध्यान हमें भोजन बनाने, परोसने,
रखने व करनेवाले बर्तनों पर भी देना चाहिए | बर्तनों के गुण-दोष भोजन में आ जाते
हैं | अत: कौन-से बर्तन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं और कौन-से लाभकारी है :
१] नॉन – स्टिक बर्तन : शहरों में रहनेवाले अधिकांश
लोग भोजन बनाने के लिए नॉन-स्टिक बर्तनों का उपयोग करने लगे हैं | ये स्वास्थ्य के
लिए अत्यंत घातक होते हैं | इन बर्तनों पर कलई करने हेतु टेफ्लॉन का प्रयोग होता
है जो अधिक तापमान पर एक प्रकार की गैस छोड़ता है, जिससे टेफ्लॉन-फ्लू ( बुखार,
सिरदर्द जैसे लक्षण ) होने आंशका बढती है तथा फेफड़ों पर बहुत विपरीत परिणाम होता
है | ‘International Journal of Hygiene and Environmental Health’ में छपे एक शोध के अनुसार नॉन-स्टिक बर्तनों में उपयोग किये जानेवाले
टेफ्लॉन को बनाने में ‘परफ्लोरोओक्टेनोइक एसिड’ रसायन का उपयोग होता है | अमेरिका
में इसका उपयोग बंद करने पर कम वजन के शिशुओं क जन्मना और उनमें तत्संबंधी
मस्तिष्क –क्षति की समस्या में भारी कमी हुई है |
२] एल्यूमिनियम के बर्तन : नमकवाले खाद्य पदार्थो के अधिक समय तक सम्पर्क में आने
से यह धातु गलने लगती है तथा भोजन में मिलकर शरीर में आ के जमती है | एल्युमिनियम
की अधिक मात्रा शरीर में जाने से कब्ज, चर्मरोग, मस्तिष्क के रोग, याददाश्त की
कमी, अल्जाइमर्स डिसीज, पार्किन्सन्स डिसीज जैसे रोग होने की सम्भावना बढ़ जाती है
|
३] स्टेनलेस स्टील के बर्तन : इनमें भोजन बना व खा
सकते हैं लेकिन इनसे काँसा, पीतल आदि की तरह कोई अन्य लाभ नहीं मिलते |
४] ताँबे के बर्तन : ये आकर्षक व टिकाऊ होते हैं |
रात को ताँबे के बर्तन में पानी रख के
सुबह पीना स्वास्थ्य हेतु अत्यंत लाभदायी है | मधुमेह के रोगियों को ताँबे
के बर्तनों में रखे पानी का उपयोग करना लाभदायी है | इनमें खट्टे व नमकवाले पदार्थ
न पकायें, न रखें |
५] काँसे के बर्तन : इनमें भोजन करना बुद्धिवर्धक,
रुचिकर, रोगप्रतिकारक शक्तिवर्धक, रक्तशुद्धिकर व रक्तपित्तशामक होता है | इन
बर्तनों में खट्टी चीजें पकानी व रखनी नहीं चाहिए क्योंकि वे इनसे रासायनिक क्रिया
करके विषैली हो जाती हैं | टूटा हुआ अथवा दरारवाला कांस्य-पात्र घर में होना अशुभ
माना जाता है | चतुर्मास में काँसे के पात्र में भोजन नहीं करना चाहिए |
६] पीतल के बर्तन : पीतल ऊष्मा का सचालक होने से इसके
बर्तन भोजन पकाने हेतु उपयुक्त हैं | इसके लिए कलई किये हुए पीतल के बर्तनों में
खट्टे पदार्थ बनाना व रखना हानिकारक है | पीतल के पात्र में भोजन करना कृमि व
कफनाशक है |
७] लोहे के बर्तन : इन पात्रों में भोजन बनाना
बलवर्धक, लौह तत्त्व –प्रदायक तथा सूजन, रक्ताल्पता व पीलिया दूर करनेवाला होता है
| खट्टे पदार्थो को छोड़ के अन्य पदार्थ लोहे के पात्रों में रखना व बनाना उत्तम है
| इनमें दूध उबालना स्वास्थप्रद है | लौकिक दृष्टि से तो उपरोक्त बात है और
ब्रह्मवैवर्त पुराण ( श्रीकृष्णजन्म खंड, अध्याय ८५, श्लोक ४ -५ ) के अनुसार ‘लोहे
के पात्र में दूध, दही, घी आदि जो कुछ रखा जाय वह अभक्ष्य हो जाता है |’
लोहे के बर्तनों में भोजन बना सकते हैं लेकिन इनमें
भोजन करने से बुद्धि का नाश होता है |
८] मिट्टी के बर्तन : ये भोजन पकाने के लिए उपरोक्त
सभी बर्तनों की अपेक्षा उत्तम माने जाते हैं | इनमें भोजन पकाने से वह अधिक
स्वादिष्ट व सुंगधित होता है | मिट्टी के पात्र में दही जमाने से वह कम खट्टा होता
है | मिट्टी के पात्र में दही जमाने से वह कम खट्टा होता है | इनमें भोजन बना तो
सकते हैं लेकिन भावप्रकाश ग्रंथ के अनुसार इनमें भोजन करने से धन का नाश होता है |
मिट्टी से बनने के कारण इन बर्तनों की संरचना वैसी ही
होती है जैसी हमारे शरीर के लिए आवश्यक है | मिट्टी में मैंगेनिज, मैग्नेशियम,
लौह, फ़ॉस्फोरस, सल्फर व अन्य अनेक खनिज पदार्थ उचित मात्रा में होते हैं | इनमें
भोजन बनाने में समय थोडा ज्यादा लग सकता है पर उत्तम स्वास्थ्य के लिए भोजन
धीरे-धीरे ही पकाया जाना हितकारी है |
९] पत्तों से बने भोजन-पात्र (पत्तल आदि) : इनमें
भोजन करना जठराग्निवर्धक, रुचिकर तथा विष व पाप नाशक होता है |
१०] प्लास्टिक के बर्तन : इन बर्तनों से किसी भी
खाद्य व पेय पदार्थ का संयोग स्वास्थ्य हेतु हितकारी नहीं है | कठोर प्लास्टिक में
बी.पी.ए. जैसा विषैला पदार्थ होता है, जिसकी कम मात्रा भी कैंसर, मधुमेह,
रोगप्रतिकारक शक्ति के ह्रास और समय से पूर्व यौवनावस्था प्रारम्भ होने का कारण बन
सकती है | अत: इनके उपयोग से बचे |
११] सोने-चाँदी के पात्र : इनमें भोजन करना त्रिदोषशामक, आँखों के लिए हितकर तथा
स्वास्थ्यप्रद होता है |
इन बातों का भी रखे खयाल
१] पानी
पीने के लिए ताँबे व काँच के पात्रों का उपयोग करना चाहिए | इनके अभाव में मिट्टी
के पात्र उपयोगी हैं, वे पवित्र एवं शीतल होते हैं | घी काँच के पात्र में रखना
चाहिए |
२] टूटे
हुए, दरारवाले तथा जिसमें खड्डे पड़े हों अथवा छिद्र हो ऐसे पात्र में भोजन नहीं
करना चाहिए |
३]
टूटे-फूटे बर्तनों या अंजलि से पानी नही पीना चाहिए |
भोजन बनाने योग्य बर्तन :
मिट्टी, काँसा (खट्टी चीजें छोड़ के ), पीतल (कलई किया
हुआ) लोहा (खट्टे पदार्थ छोड़ के ), स्टेनलेस स्टील
भोजन करने योग्य पात्र :
काँसा (खट्टी चीजें छोड़ के, चतुर्मास में वर्जित),
पीतल (कलई किया हुआ), स्टेनलेस स्टील, पत्तल, सोना या चाँदी (यदि किसीको उपलब्ध हो
)
भोजन न बनाने योग्य बर्तन :
नॉन-स्टिक, प्लास्टिक, एल्युमिनियम
भोजन न करने योग्य पात्र :
प्लास्टिक, एल्युमिनियम, लोहा, मिट्टी
ऋषिप्रसाद –अक्टूबर २०१९ से
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