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Tuesday, July 7, 2015

विपरीतकरणी मुद्रा

इस आसन के नियमित व विधिवत अभ्यास से प्राणों के प्रवाह में सूक्ष्म परिवर्तन आता हैं | मणिपुर चक्र से प्राणशक्ति का प्रवाह प्रचुर मात्रा में विशुद्धाख्य चक्र की ओर होता है | इस प्रकार समस्त सूक्ष्म शरीर के शुद्धिकरण में सहायता मिलती हैं | इसका नियमित अभ्यास कई बीमारियों को रोकता हैं | यह ओजशक्ति को ऊपर के केन्द्रों में ले जाने की एक महत्त्वपूर्ण मुद्रा हैं | महर्षि घेरंड के अनुसार जो नित्यप्रति इसकी साधना करता हैं, वह बुढापे पर विजय प्राप्त करता हैं | इसके अभ्यास से प्राय: सर्वांगासन व शीर्षासन से होनेवाले सभी लाभ होते हैं |

लाभ : १) गले को तथा उसके ऊपर के अंगों को अधिक मात्रा में शुद्ध रक्त की प्राप्ति होती है |
२) मस्तिष्क में विशेषकर प्रमस्तिष्क आवरण ( सेरेब्रल काँर्टक्स ) तथा पीयूष ( पिट्यूटरी ) ग्रंथि एवं शीर्ष ( पीनियल ) ग्रंथि में रक्त का संचार बढ़ जाता है | प्रमस्तिष्क की अक्षमता तथा बुढापे के कारण होनेवाला मनोभ्रंश प्रभावहीन होते हैं तथा मानसिक सतर्कता बढती है |
३) स्नायविक दुर्बलता दूर होती है |
४) सफेद बाल काले होने लगते हैं और चेहरे की झुरियाँ दूर होकर नवयौवन प्राप्त होता है |
५) अल्पक्रियाशील थायराँइड संतुलित बनती है तथा सर्दी – जुकाम, गले की सूजन व श्वसन – संबंधी रोगों से बचाव होता है |
६) भूख व पाचन – क्रिया बढती हैं तथा कब्ज के उपचार में मदद मिलती हैं |
७) यह बवासीर एवं हर्निया के उपचार में सहायक है |
८) महिलाओं का बाँझपन और मासिक धर्म संबंधी विकार दूर होते हैं |

विधि : जमीन पर कम्बल बिछाकर शवासन में लेट जायें | दोनों पैरों को एक साथ धीरे – धीरे ऊपर उठायें | कमर को हथेलियों से सहारा देकर ऊपर उठायें | गर्दन से कमर तक का भाग जमीन से ४५ डिग्री पर ऊपर रखें तथा पैरों को सीधा रखते हुए सिर की ओर उतना ही झुकायें जिससे पैर दृष्टि की सीध में आ जायें | जीभ से तालू का स्पर्श करें | पैर के अँगूठों  पर दृष्टि एकाग्र करें अथवा ध्यान मणिपुर (नाभि) केंद्र में रखें |

आरम्भिक स्थिति में लौटने के लिए पैरों को सिर की ओर झुकायें, फिर धीरे – धीरे मेरुदंड को नीचे लायें तथा घुटने मोड बिना धीरे – धीरे पैरों को नीचे लायें | कुछ देर शवासन में लेटे रहें |

विपरीतकरणी मुद्रा का अभ्यास प्रतिदिन एक ही समय पर प्रात:काल करना लाभप्रद हैं |  प्रथम दिन कुछ सेकंड तक अभ्यास करें | धीरे – धीरे अवधि बढाते हुए १० – १५ मिनट तक कर सकते हैं | अपने नित्य योगाभ्यास के अंत में तथा ध्यान के पूर्व इसका अभ्यास करें |

सावधानियाँ : भोजन के कम – से – कम तीन घंटे बाद तक इसका अभ्यास न करें | उच्च रक्तचाप, ह्रदयरोग, थायराँइड अभिवृद्धि या शरीर में विषाक्त तत्त्वों की वृद्धि होने पर यह आसन न करें | गर्भवती महिलाओं व १४ वर्ष से कम आयु के बालकों को यह आसन नहीं करना चाहिए |


    स्त्रोत – ऋषिप्रसाद – जुलाई २०१५ से  

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