आचमन लेते समय उच्चारण करना होता है -
अकाल-मृत्यु-हरणं सर्व-व्याधि-विनाशनम
सूर्य-पादोदकं-तीर्थं जठरे धारयामि अहम्
सूर्य-पादोदकं-तीर्थं जठरे धारयामि अहम्
यह श्लोक का अर्थ यह समझ लो की अकाल मृत्यु को हरने वाले सूर्य नारायण के चरणों का जल, मैं अपनी जठर में धारण करता हूँ...जठर, भीतर के रोगों को, और, सूर्य की कृपा बाहर के शत्रु-विघ्न आदि, अकाल मृत्यु आदि रोगों को हरे;
सूर्य को अर्घ्य देते समय,
"ॐ आदित्याय विद्महे भास्कराय धीमहि तन्नो भानु प्रचोदयात"
इस सूर्य गायित्री के द्वारा भी सूर्य नारायण को अर्घ्य देना विशेष लाभ-कारी माना गया है; नहीं तो
ॐ सूर्याय नमः, ॐ रवये नमः, करके भी दे सकते हैं;
ॐ सुर्याये नमः, ॐ आदित्याये नमः, ॐ अदित्याये विद्महे भास्कराए धीमहि तन्नो भानु प्रचोदयात,
यह सूर्य गायित्री से सूर्य नारायण को अर्घ्य दें ; बाद में आँखें बंद करके सूर्य नारायण का भू-मध्य में ध्यान करते ही ॐकार का जप करने का बड़ा भारी महत्व है; क्योंकि सृष्टि का मूल ॐकार, परब्रह्म का वाचक है, और भगवान् सूर्य भी इसी ॐकार की उपासना से बड़ी पूर्णता की सामर्थ्य से सम्पान् होते हैं; यह ॐकार की मूल गायत्री; ओमकार, "ॐ आदित्याये नमः" में भी आदित्य में भी "ॐ" तो आया ही है; यह लिखा है शास्त्रों में सूर्य नारायण भी ओमकार की उपासना जप करते हैं, निरंतर विचरण करते रहते हैं
-14th Jan'08, Amdavad
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