स्वस्थ व निरोग शरीर
के लिए खट्टे, खारे, तीखे, कसैले और मीठे रस के साथ – साथ कडवे रस की भी आवश्यकता
होती है | करेले में कडवा रस तो होता ही है, साथ ही यह अनेक गुणों को अपने भीतर
सँजोये हुए हैं |
करेला पचने में
हलका, रुचिकर, भूख, बढानेवाला, पाचक, पित्तनाशक, मल-मूत्र साफ़ लानेवाला, कृमिनाशक
तथा ज्वरनाशक है | यह रक्त को शुद्ध करता हैं, रोगप्रतिकारक शक्ति एवं हीमोग्लोबिन
बढ़ाता हैं | यकृत की बीमारियों एवं मधुमेह (डायबिटीज ) में अत्यंत उपयोगी है | चर्मरोग, सूजन, व्रण तथा
वेदना में भी लाभदायी है | करेला कफ प्रक्रुतिवालों के लिए अधिक गुणकारी है |
स्वास्थ्य चाहनेवालों को सप्ताह में एक बार करेले अवश्य खाने चाहिए |
गुणकारी करेले की
सब्जी
सब्जी बनाते समय
कडवाहट दूर करने के लिए करेले के ऊपरी हरे छिलके तथा रस नहीं निकालना चाहिए | इससे
करेले के गुण बहुत कम हो जाते हैं |
कडवाहट निकाले बिना बनायी गयी सब्जी परम पथ्य है |
बुखार, आमवात,
मोटापा, पथरी, आधासीसी, कंठ में सूजन, दमा, त्वचा-विकार, अजीर्ण, बच्चों के
हरे-पीले दस्त, पेट के कीड़े, मूत्ररोग एवं कफजन्य विकारों में करेले की सब्जी
लाभप्रद है |
करेले के औषधीय
प्रयोग
मधुमेह ( डायबिटीज )
: आधा किलो करेले काटकर १ तसले में ले के सुबह आधे घंटे तक पैरों से कुचलें | १५
दिन तक नियमित रूप से यह प्रयोग करने से रक्त – शर्करा (ब्लड शुगर) नियंत्रित हो
जाती है | प्रयोग के दिनों में करेले की सब्जी खाना विशेष लाभप्रद है |
तिल्ली व यकृत
वृद्धि :
१] करेले का रस २०
मि.ली., राई का चूर्ण ५ ग्राम, सेंधा नमक ३ ग्राम - इन सबको
मिलाकर सुबह खाली पेट पीने से तिल्ली व यकृत (लीवर ) वृद्धि में लाभ होता है |
२] आधा कप करेले के
रस में आधा कप पानी व २ चम्मच शहद मिलाकर प्रतिदिन सुबह – शाम पियें |
रक्ताल्पता : करेलों
अथवा करेले के पत्तों का २ – २ चम्मच रस सुबह – शाम लेने से खून की कमी में लाभ
होता हैं |
मासिक की समस्या : मासिक कम आने या नहीं आने की स्थिति में करेले का रस ४० मि. ली. दिन में २ बार लें
| अधिक मासिक में करेले का सेवन नहीं करना चाहिए |
गठिया : करेले या
करेले के पत्तों का रस गर्म करके दर्द और सूजनवाले स्थान पर लगाने व करेले की
सब्जी खाने से आराम मिलता हैं |
तलवों में जलन : पैर
के तलवों में होनेवाली जलन में करेले का रस लगाने या करेला घिसने से लाभ होता हैं |
विशेष : करेले का रस
खाली पेट पीना अधिक लाभप्रद हैं | बड़े करेले की अपेक्षा छोटा करेला अधिक गुणकारी
होता हैं |
सावधानियाँ :
जिन्हें आँव की तकलीफ हो, पाचनशक्ति कमजोर हो,मल के साथ रक्त आता हो, बार – बार
मुँह में छाले पड़ते हों तथा जो दुर्बल प्रकृति के हों उन्हें करेले का सेवन नहीं
करना चाहिए | करेले कार्तिक मास में वर्जित हैं |
स्त्रोत
– ऋषिप्रसाद – अगस्त २०१५ से