अपने
ही बच्चे की गर्भ में नृशंस हत्या करवाने से शरीर रोगों का घर बनता है और परिवार
कलह, अशांति एवं दुःख की भीषण ज्वालाओं में झुलसने लगता है | प्रसवकाल में माँ के
शरीर को जितना खतरा होता है, उससे दुगना खतरा उसे गर्भपात करवाने से होता है |
पराशर
स्मृति (४.२०) में आता है :
यत्पापं
ब्रह्महत्यायां द्विगुणं गर्भपातने |
‘ब्रह्महत्या
से जो पाप लगता है, उससे दुगना पाप गर्भपात करने से लगता है |’
जिनसे
जाने – अनजाने में यह अपराध हो चूका है, उनके लिए ‘स्कंद पुराण’ में प्रायश्चित की
विधि इसप्रकार बतायी गयी है :
‘प्रणव
और व्याह्रति ( ॐ भू:, ॐ भुव:, ॐ स्व:, ॐ मह:, ॐ जन:, ॐ तप:, ॐ सत्यम ) के साथ
किये हुए १६ प्राणायाम यदि प्रतिदिन होते रहें तो एक मास में वे भ्रूणहत्या
करनेवाले पापी को भी पवित्र कर देते हैं ( बशर्ते दुबारा यह पाप न करें ) |’
पहले
दिन ५ प्राणायाम से प्रारम्भ करे | रोज एक – एक बढाते हुए १६ तक पहुँचे, फिर
प्रतिदिन १६ प्राणायाम एक मास तक करे | भगवान को इस पाप – निवृत्ति व शुद्धि के
लिए प्रार्थना करे |
स्त्रोत – ऋषिप्रसाद – नवम्बर २०१५ से