१. गाय, बैल के सींगों के ढेर में से गाय के सींगों की पहचान इस बात से करनी चाहिए कि गाय के प्रत्येक बछड़े के जन्म पर उसकी सींग के ऊपर एक गोल चक्र (सर्कल) उभरता है l
२. खुले आकाश के नीचे जहाँ बाहर से पानी का बहाव न हो तथा पेड़ की छाया या मूल (जड़) अथवा केंचुए न हों, ऐसी जगह पर २ फुट लम्बा, २ फुट गहरा और २ फुट चौड़ा गड्ढा करें l
३. किसी भी माह की पूर्णिमा के दिन (शरद पूर्णिमा का दिन सर्वोत्तम) उस गड्ढे का एक बालिश्त (१ इंच) भाग गाय के गोबर से पाट दें l फिर मृत दुधारू गाय के सींग में गोबर भरकर उसका मुँहवाला हिस्सा इस गोबर में फंसा दें और नुकीला सिरा ऊपर रखें l इस तरह पहली परत में ५-६ सींगों को रोप सकते हैं l फिर एक भी सींग गिरे नहीं ऐसी सावधानी रखते हुए उस पर पहले जितना ही गाय का गोबर पाट दें और इस परत में भी दूसरे ५-६ गाय के सींगो को पहले की तरह रोप दें l अब गड्ढे के बाकी बचे हिस्से को भी गाय के गोबर से पाट दें और भूमि समतल कर दें l गड्ढे पर पहचान के लिए निशान लगा दें और उसकी रक्षा करें l
४. १२ सींग प्राप्त न हों तो जितने मिलें उनसे ही खाद बनायें l
५. ६ माह बाद अमावस्या के दिन उन्हें बाहर निकालें l अगर इस दिन यह कार्य संभव न हो पाए तो किसी अन्य तिथि को कृष्ण पक्ष में ही निकालें l सींग में से पाउडर बाहर निकालकर उसे मिटटी या कांच के बर्तन में डाल के बर्तन का मुंह बाँध दें और उसे ठंडी जगह पर रखें l मध्यम आकारवाले सींग में से करीब ३५ ग्राम तक पाउडर निकलता है l
६ पैंतीस लीटर प्रति एकड़ के हिसाब से घोल बनायें l घोल बनाने के लिए किसी बड़े ड्रम में जितने लीटर पानी लें उतने ही ग्राम पाउडर उसमे मिलाकर एकाध घंटे तक घडी की सुइयों से विपरीत (एंटी क्लोक वाइस) दिशा में मथनी से मथें l मथते समय ड्रुम में नीम की हरी पत्तियां कूटकर डालने से घोल में कीटाणु नाशक के गुण आ जाते हैं l
७. यह घोल बुवाई के समय जब जमीन गीली हो और कड़ी धूप न हो तब ज़मीन पर छिडकें, पौधों पर नहीं l
An ultimate blessing for earth (Benefitting from full moon night to make best fertilizer)
1. Cows and bullocks horns should be sorted on the basis that
cow horns develop a ring circle on their top on birth of every calf.
2.
Below an open sky where there is no directed flow of water or shade
from a tree or devoid of tree roots or worms, dig a 2 feet by 2 feet by 2
feet hole.
3. On the full moon night of any month (Sharad month is considered
supreme), apply a layer of cow dung inside the pit. Then fill the dead
cow's horn with dung and stuff this into the dung layer with the tip
facing towards the top. In this fashion, you can make a row of upto 5-6
horns on first layer. Then with caution so that no horn falls down,
apply another layer of dung on top. Then stuff another 5-6 horns in it.
Fill the remaining pit with cow dung and the level the ground. To
identify the place, mark the pit and safe guard it.
4. If you cannot arrange for 12 horns, use as many as you can get.
5.
After 6 months, on the day of Amavasya, take these out. If not possible
on that day, then select only a day during the waning period of moon.
Take the powder out of the horns and keep them sealed in an airtight
glass container in a cool environment. For an average horn, it should be
possible to get around 35 grams of powder.
6. Make a thin concoction with the scale of 35 litres per acre. To
make this, use a large drum, and mix equal proportions of litres of
water and grams of powder. Stir this diluted fertiliser in anticlockwise
direction for about an hour. During this, you may also add some
grounded Margosa (Neem) leavesto improve its anti-fungal abilities.
7. This liquid fertilizer is to be sprayed on the irrigated land
when it is wet and it is not too sunny; not to be sprayed on plants.
Lok Kalyan Setu-Sep. 2011