Search This Blog

Monday, March 7, 2016

लीची पेय व आँवला – अदरक पेय

                                              लीची पेय  


लीची ऐसा फल है जो स्वाद के साथ – साथ पौष्टिक तत्त्वों से भरपूर है | इसमें विटामिन ‘सी’, पोटैशियम, कैल्शियम, शर्करा जैसे पौष्टिक तत्त्व पाए जाते हैं | गर्मी के कारण जब शरीर में पानी व खनिज लवणों की कमी हो जाती है, तब लीची का रस बहुत फायदा करता है | इसके सेवन से कमजोरी दूर होती है और शरीर पुष्ट होता है | यह ह्रदय के लिए हितकर है व पाचनक्रिया को मजबूत बनाता है | आपके उत्तम स्वास्थ्य के लिए स्वादिष्ट और शीतलता – प्रदायक मिश्रण प्रस्तुत है |



                                               आँवला – अदरक पेय


यह आँवला –अदरक पेय मानव-शरीर के लिए अत्यंत गुणकारी है | यह रसायन का कार्य करता है, साथ ही रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढाता है | यह विटामिन ‘सी’ एवं प्राकृतिक खनिज लवणों से परिपूर्ण है | इसके निरंतर सेवन से कब्ज में राहत मिलती है, आँखों की रोशनी बढ़ती है, शरीर का अम्लीय और क्षारीय स्तर संतुलित रहता है |                                                        





स्त्रोत – लोककल्याण सेतु – मार्च २०१६ से 

गुणकारी गाजर का रस

गाजर का रस कीटाणुनाशक है और संक्रमण व रक्त – विकारों को दूर करता है | इसका रस पीते रहने से रक्त शुद्ध होकर मुँहासे, खुजली, फोड़े - फुँसी आदि  चर्मरोगों में लाभ होता है, चेहरा सुंदर बनता है | गाजर का रस गर्दन व चेहरे पर रुई के फाहे से लगा के सूखने दें, फिर ठंडे पानी से धो लें | इससे त्वचा साफ़ व चमकदार बनती है | गाजर के अंदर का पीला भाग हटाकर उपयोग करें |


स्त्रोत – लोककल्याण सेतु – मार्च २०१६ से 

औषधीय गुणों की खान : नीम

नीम का वृक्ष प्राणदायक, आरोग्यवर्धक और रोगनाशक माना गया है | नीम सड़नरोधी  (Antiseptic)  का काम करता है | नीम के कोमल पत्ते खाने से रक्त की शुद्धि व वृद्धि होती है तथा मधुमेह ( डायबिटीज ) के नियन्त्रण में भी मदद मिलती है |

रोगप्रतिकारक शक्ति को बढानेवाली हैं | ये नेत्रों के लिए हितकर, कृमि, पित्त व विष नाशक एवं वातकारक होती हैं | इनके पानी से पोंछा लगाने, पत्तियों का धुआँ करने, बंदनवार ( तोरण ) लगाने से घर का वातावरण शुद्ध व संक्रमणरहित बनता है एवं मक्खी – मच्छर व रोग के कीटाणु भाग जाते हैं |
नीम के औषधीय प्रयोग

पीलिया, रक्ताल्पता व रक्तपित्त : पत्तियों का १० – २० मि.ली. रस शहद के साथ दिन में २ बार लेने से पीलिया, रक्ताल्पता व रक्तपित्त (नाक, योनि, मूत्र आदि द्वारा रक्तस्त्राव होना ) में आराम मिलता हैं | पेट के कृमि नष्ट होते हैं |

चेचक : चेचक निकलने पर नीम की पत्ते लगी छोटी टहनियों को द्वार पर लटका दिया जाता है व इनसे रोगी को हवा दी जाती है | यह हवा कीटाणुओं को फैलने से रोकती है तथा रोगी की दाहकता में शीतलता प्रदान करती है |

दाँतो की सुरक्षा : नीम की दातुन दाँतों को चमकीला, स्वस्थ तथा मजबूत बनाती है व मुँह की दुर्गन्ध मिटाती है | यह निरंतर करने से दाँतों में कभी कीड़े नहीं लगते और अधिक उम्र तक दाँत मजबूत बने रहते हैं | मसूड़े भी स्वस्थ रहते हैं |
घाव : नीम का तेल लगाने से घाव जल्दी भर जाते है |

अरुचि : नीम के पत्ते चबाकर खाने से अरुचि दूर होती है |

पेट के कीड़े : १५ नीम की पत्तियाँ हींग के साथ खाने से या नीम की पत्तियों का रस ३ काली मिर्च के साथ सुबह पीने से पेट के कीड़े निकल जाते हैं |

गर्मी होने पर : नीम की पत्तियों के रस में मिश्री मिलाकर एक सप्ताह तक सुबह – शाम पीने से अति तीव्र जलन भी शांत हो जाती है |
हाथ – पैर की जलन में : नीम के पत्तों को पीसकर तलवों पर लेप करने से हाथ – पैर की जलन मिट जाती है |
  •  पकी हुई १० निबौलियाँ रोज खायें |इससे रक्त की शुद्धि होती है तथा भूख भी खुलकर लगती है | यह बवासीर – नाशक है व पेट के सभी विकारों में लाभकारी है | २१ दिन तक यह प्रयोग करने से रक्त-विकार, मंदाग्नि और पित्तप्रकोप दूर होते हैं |
  • नीम के फूलों का रस शीत व रक्तशुद्धिकर है | १० से २० मि.ली. रस पीने से फोड़े – फुंसियों में शीघ्र राहत मिलती है | चैत्र महीने में १५ दिन तक नीम के फूलों का रस पीने से वर्षभर रोगप्रतिकारक शक्ति बनी रहती है |

निबौली की स्वास्थ्यवर्धक चटनी

१० – १० ग्राम निबौली व अदरक तथा थोड़े तुलसी – पत्ते एवं काली मिर्च लेकर चटनी बना लें | पेट के विकारों में यह लाभदायी है |

विशेष : नीम के रस के स्थान पर ‘नीम अर्क’ का भी उपयोग कर सकते हैं | ( यह सभी संत श्री आशारामजी आश्रमों व समितियों के सेवाकेन्द्रों में उपलब्ध हैं |)


 स्त्रोत – लोककल्याण सेतु – मार्च २०१६ से 

Sunday, March 6, 2016

कैसे पायें स्वास्थ्य – लाभ ?

इन दिनों में कोल्ड ड्रिंक्स, मैदा, दही, पचने में भारी व चिकनाईवाले पदार्थ, पिस्ता, बादाम, काजू, खोआ आदि दूर से ही त्याग देने चाहिए | होली के बाद खजूर नहीं खाना चाहिए |

मुलतानी मिटटी से स्नान, प्राणायाम, १५ दिन तक बिना नमक का भोजन, सुबह खाली पेट २० – २५ नीम की कोंपलें व १ – २ काली मिर्च का सेवन स्वास्थ्य की शक्ति बढायेगा | भुने हुए चने, पुराने जौ, लाई, खील (लावा) – ये चीजें कफ को शोषित करती हैं |

कफ अधिक है तो गजकरणी करें, एक-डेढ़ लीटर गुनगुने पानी में १० – १५ ग्राम नमक डाल दो | पंजों के बल बैठ के पियों कि वह पानी बाहर आना चाहे | तब दाहिने हाथ की दो बड़ी ऊँगलियाँ मुँह में डालकर उलटी करो, पिया हुआ सब पानी बाहर निकाल दो | पेट बिल्कुल हलका हो जाय तब पाँच मिनट तक आराम करो | दवाइयाँ कफ का इतना शमन नहीं करेंगी जितना यह प्रयोग करेगा | हफ्ते ,में एक बार ऐसा कर लें तो आराम से नींद आयेगी | इस ऋतू में हलका-फुलका भोजन करना चाहिए | (गजकरणी की विस्तृत जानकारी हेतु पढ़े आश्रम की पुस्तक’योगासन’)

होली के दिन सिर पर मिटटी लगाकर स्नान करना चाहिए और प्रार्थना करनी चाहिए : पृथ्वी देवी ! तुझे नमस्कार है | जैसे विघ्न-बाधाओं को तू धारण करते हुए भी यशस्वी है, ऐसे ही मैं विघ्न-बाधाओं के बीच भी संतुलिंत रहूँ | मेरे शरीर का स्वास्थ्य और मन की प्रसन्नता बनी रहे इस हेतु मैं आस इस होली के पर्व को, भगवान नारायण को और तुम्हे प्रणाम करता हूँ |


           स्त्रोत - ऋषिप्रसाद – मार्च – २०१६ से

देशी गाय व भैंस के दूध में अंतर


देशी गाय का दूध

भैंस का दूध
१] सुपाच्य होता है |
१] पचने में भारी होता है |
२] इसमें स्वर्ण-क्षार होते है |
२] इसमें स्वर्ण-क्षार नहीं होते हैं |
३] बुद्धि को कुशाग्र बनाता हैं |
३] बुद्धि को मंद करता है |
४] स्मरणशक्ति बढाता है एवं स्फूर्ति प्रदान करता है |
४] यह आलस्य व अत्यधिक नींद लाता हैं |

५] यह सत्त्वगुण बढ़ता है |
५] यह तमोगुण बढ़ाता हैं |
६] गाय अपना बछड़ा देखकर स्नेह व वात्सल्य से भर के दूध देती है |
६] भैंस स्वाद व खुराक देखकर दूध देती है | भैंस का दूध पी के बड़े होनेवाले भाई सम्पदा के लिए लड़ते-मरते हैं |

देशी गाय के दूध में सम्पूर्ण प्रोटीन्स रहने के कारण यह मनुष्यों के लिए अनिवार्य हैं | भैंस के दूध की अपेक्षा गाय के दूध में रहनेवाले प्रोटीन्स सुगमता से पचते हैं | गाय के दूध में ऑक्सिडेज तथा रिडक्टेज एंजाइम की प्रचुरता रहती है, जो पाचन में सहायता देने के अतिरिक्त दूध पीनेवालों के शरीर में पाये जानेवाले टोक्सिंस (विषैले पदार्थ) को दूर करते हैं |

देशी गाय के दूध की और भी अनेक विशेषताएँ हैं | ऊपर दिये गये बिन्दुओं से देशी गाय के दूध की श्रेष्ठता स्पष्ट हो जाती है | देशी गाय का दूध पीकर हम आयु, बुद्धिमत्ता, सात्त्विकता, निरोगता आदि बढायें या भैंस का दूध पी के इन्हें घटायें – यह हमारे हाथ की बात है |

भैंस के दूध से भी अधिक हानिकारक हैं जर्सी आदि विदेशी संकरित गायों का दूध |


-                                       स्त्रोत- ऋषिप्रसाद – मार्च २०१६ से

पर्वतासन

लाभ : १] प्राणशक्ति बलिष्ठ होती हैं |
२] छाती का विकास और फेफड़ों का शोधन होकर बल बढ़ता है |
३] रीढ़ की हड्डी एवं पसलियों के साथ भुजाओं, पीठ, पेट, बस्ती प्रदेश, पार्श्व की मांसपेशीयों व आमतौर पर अक्रिय रहनेवाले कमर के भाग को भी इस आसन से उचित व्यायाम मिल जाता हैं |
४] बाहर निकला हुआ पेट कम होता है |
५] हाथों की उँगलियाँ व हाथ मजबूत बनते हैं |
६] प्रसव के बाद स्त्रियों के पेट की त्वचा में आया ढीलापन ठीक होता हैं |

विधि : पद्मासन में बैठे | दोनों हाथों की ऊँगलियों को आपस में फँसा लें | श्वास लेते हुए हाथों को सिर के ऊपर इसप्रकार ले जायें कि हथेलियाँ बाहर की ओर खुली रहें | शरीर तथा हाथों को अच्छी तरह से ऊपर की ओर खींचे और सीने को फुलायें | यथाशक्ति श्वास को अंदर रोके रखें | फिर धीरे – धीरे श्वास छोड़ते हुए पूर्व स्थिति में आ जायें | थोड़ी देर रुककर पुन: दोहरायें, इस प्रकार ५ – ७ बार इसका अभ्यास करें |

यह आसन दिन में कभी भी कर सकते हैं, सिर्फ पेट भरा हुआ नहीं होना चाहिए | इसका अभ्यास कुर्सी पर बैठे- बैठे भी कर सकते हैं | यह कंधो और पीठ के तनाव को क्रम करता हैं तथा शरीर को पुन: स्फूर्तिवान बनाता हैं |

अन्य प्रकार : हाथों की ऊँगलियों को खुला रख के या दोनों हाथों को नमस्कार की मुद्रा में रखकर भी यह आसन किया जाता हैं | 


स्त्रोत - ऋषिप्रसाद –मार्च – २०१६ से