लाभ : १]
प्राणशक्ति बलिष्ठ होती हैं |
३] रीढ़ की हड्डी
एवं पसलियों के साथ भुजाओं, पीठ, पेट, बस्ती प्रदेश, पार्श्व की मांसपेशीयों व
आमतौर पर अक्रिय रहनेवाले कमर के भाग को भी इस आसन से उचित व्यायाम मिल जाता हैं |
४] बाहर निकला हुआ
पेट कम होता है |
५] हाथों की
उँगलियाँ व हाथ मजबूत बनते हैं |
६] प्रसव के बाद
स्त्रियों के पेट की त्वचा में आया ढीलापन ठीक होता हैं |
विधि : पद्मासन
में बैठे | दोनों हाथों की ऊँगलियों को आपस में फँसा लें | श्वास लेते हुए हाथों
को सिर के ऊपर इसप्रकार ले जायें कि हथेलियाँ बाहर की ओर खुली रहें | शरीर तथा
हाथों को अच्छी तरह से ऊपर की ओर खींचे और सीने को फुलायें | यथाशक्ति श्वास को
अंदर रोके रखें | फिर धीरे – धीरे श्वास छोड़ते हुए पूर्व स्थिति में आ जायें |
थोड़ी देर रुककर पुन: दोहरायें, इस प्रकार ५ – ७ बार इसका अभ्यास करें |
यह आसन दिन में कभी
भी कर सकते हैं, सिर्फ पेट भरा हुआ नहीं होना चाहिए | इसका अभ्यास कुर्सी पर बैठे-
बैठे भी कर सकते हैं | यह कंधो और पीठ के तनाव को क्रम करता हैं तथा शरीर को पुन:
स्फूर्तिवान बनाता हैं |
अन्य प्रकार :
हाथों की ऊँगलियों को खुला रख के या दोनों हाथों को नमस्कार की मुद्रा में रखकर भी
यह आसन किया जाता हैं |
स्त्रोत - ऋषिप्रसाद –मार्च – २०१६ से
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