· जो वाणी का, विचारों का और समय का सदुपयोग करता है वह सत्यस्वरूप को पा लेता है, चित्त के स्फुरणो से ऊपर उठ जाता है |
· आप जो भी काम करते हो, अगर वह ईश्वर के रास्ते जाने के लिए सहयोग देता हैं तो पुण्यकर्म हैं और
ईश्वर से विमुख करता है तो पापकर्म है |
· जिनके पास जपरूपी शस्त्र होता है उनको काल का भय नही रहता, भूत -प्रेत का भय नहीं रहता और ‘मेरा क्या होगा?’ यह चिंता भी नहीं रहती |
· मन में हो भगवान के लिए प्रीति, व्यवहार में हो भगवान के लिए सदभाव और धर्म
एवं इन्द्रियों में हो संयम तो छोटे-से-छोटा व्यक्ति भी साक्षात भगवदरूप हो जायेगा
|
· उत्तम शिष्य हनुमानजी जैसे होते हैं, वे गुरु की सेवा खोज लेते हैं |
· आत्मा को निहारकर अपना बेडा पार कर लो, छोटी-छोटी बातों में कब तक उलझते रहोगे ?
· विषय-विकारों में सुखाभास है, सच्चा सुख तो आत्मा में हैं |
· परमात्मसुख के सिवाय जो भी सुख मिलेगा वह जीव को धोखे में
ही डालता है बेचारा |
· जिनका राग-द्वेष चला गया वे मानो परमेश्वर ही है |
· हमारा लक्ष्य भारतीय संस्कृति की रक्षा करना है, इसकी ऊँचाइयों को छूना है |
· संत-पुरुषों की वाणी, उनके दर्शन, सान्निध्य और उनकी दृष्टी से जीवों के
ह्रदय पवित्र होते हैं |
· जीवन का अंत होने से पहले सच्चिदानंद से आपका तालमेल हो
जाना यह सच्ची उपलब्धि है |
· जब तक जीवत्व है तब तक कर्तव्य है, जब चिदाकाश हो गये तब अंत:करण में कोई
कर्तव्य नहीं रहता |
· जो सतशिष्य है वह मान और मत्सर (ईर्ष्या, द्वेष) से रहित होता है |
· सत्संग के बिना आत्मचिन्तामणि का प्रकाश नहीं होता |
· जब ज्ञानवान पुरुषों की कृपा होती है तब जीवन, वास्तविक जीवन के रास्ते पर चलना शुरू करता
है |
· जिसको जल्दी उन्नति करनी हो वह गुरुओं की दृष्टी में रहे
ताकि अपना मन दगा न दे पाये |
· जो सत्संग करते, करवाते या उसमें साझेदार होते है उनकी ७ – ७ पीढ़ियों का उद्धार होता है |
· सेवा में तत्परता है और स्वार्थ नहीं है, द्वेष नहीं है, राग
नहीं है तो वह कर्मयोग बन जायेगा |
· संकट या विघ्न दिखते भयंकर हैं लेकिन आते है आपके विकास के
लिए, आत्मबल बढाने के लिए |
· सच्चे संतो से समाज विमुख हो जाय तो समाज को शांति, भाईचारा और सदाचार कहाँ से मिलेगा ?
· आप जहाँ हो वहाँ अगर प्रसन्न नहीं हो तो वैकुण्ठ में भी
प्रसन्नता मिलना सम्भव नहीं है |
· श्रद्धा के साथ वेदान्त-ज्ञान होगा तभी आप दूसरों का हित कर
सकते है |
· शुद्ध ज्ञान में जगने के लिए इन्द्रियों को विषय-विकारों के
श्रम से बचाये |
· वे ही दु:खी और विफल होते हैं जो ईश्वरीय सिद्धांत के खिलाफ
काम करते हैं |
· जो किसीकी निंदा करते हैं, सुनते हैं वे अपने साथ अनर्थ करते हैं |
· भगवान का ज्ञान जिनके ह्रदय में हो जाता है उनका ह्रदय दाता
के गुणों से अपने-आप भर जाता है |
· उत्साह,
मनोबल और आनंदबल बढाकर शरीर से काम लेनेवाले सदा जवान रहते है |
· जब तक भक्ति का रंग नहीं लगता तब तक संसार का रंग छूटता
नहीं |
· ईश्वर का रास्ता इतना सुगम है कि जहाँ से तुम चलते हो वहीँ
मंजिल है |
· ईर्ष्यारहित व्यक्ति को अंतर का सुख प्राप्त होता है |
· आवेश से हमारी शक्तियाँ क्षीण होती हैं और समता से उनका
विकास होता है |
· संत का सान्निध्य भगवान के सान्निध्य से भी बढकर माना गया
है |
· लोग अभाव से दु:खी नहीं होते, नासमझी से दु:खी होते हैं |
· दूसरे के अधिकार की रक्षा करते हुए सेवा करते हैं तो वह भजन
हो जाता है |
ऋषिप्रसाद – मार्च २०२२ से