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Thursday, March 31, 2022

अमृतबिंदु

 

·       जो वाणी का, विचारों का और समय का सदुपयोग करता है वह सत्यस्वरूप को पा लेता है, चित्त के स्फुरणो से ऊपर उठ जाता है |

·       आप जो भी काम करते हो, अगर वह ईश्वर के रास्ते जाने के लिए सहयोग देता हैं तो पुण्यकर्म हैं और ईश्वर से विमुख करता है तो पापकर्म है |

·       जिनके पास जपरूपी शस्त्र होता है उनको काल का भय नही रहता, भूत -प्रेत का भय नहीं रहता और मेरा क्या होगा?’ यह चिंता भी नहीं रहती |

·       मन में हो भगवान के लिए प्रीति, व्यवहार में हो भगवान के लिए सदभाव और धर्म एवं इन्द्रियों में हो संयम तो छोटे-से-छोटा व्यक्ति भी साक्षात भगवदरूप हो जायेगा |

·       उत्तम शिष्य हनुमानजी जैसे होते हैं, वे गुरु की सेवा खोज लेते हैं |

·       आत्मा को निहारकर अपना बेडा पार कर लो, छोटी-छोटी बातों में कब तक उलझते रहोगे ?

·       विषय-विकारों में सुखाभास है, सच्चा सुख तो आत्मा में हैं |

·       परमात्मसुख के सिवाय जो भी सुख मिलेगा वह जीव को धोखे में ही डालता है बेचारा |

·       जिनका राग-द्वेष चला गया वे मानो परमेश्वर ही है |

·       हमारा लक्ष्य भारतीय संस्कृति की रक्षा करना है, इसकी ऊँचाइयों को छूना है |

·       संत-पुरुषों की वाणी, उनके दर्शन, सान्निध्य और उनकी दृष्टी से जीवों के ह्रदय पवित्र होते हैं |

·       जीवन का अंत होने से पहले सच्चिदानंद से आपका तालमेल हो जाना यह सच्ची उपलब्धि है |

·       जब तक जीवत्व है तब तक कर्तव्य है, जब चिदाकाश हो गये तब अंत:करण में कोई कर्तव्य नहीं रहता |

·       जो सतशिष्य है वह मान और मत्सर (ईर्ष्या, द्वेष) से रहित होता है |

·       सत्संग के बिना आत्मचिन्तामणि का प्रकाश नहीं होता |

·       जब ज्ञानवान पुरुषों की कृपा होती है तब जीवन, वास्तविक जीवन के रास्ते पर चलना शुरू करता है |

·       जिसको जल्दी उन्नति करनी हो वह गुरुओं की दृष्टी में रहे ताकि अपना मन दगा न दे पाये |

·       जो सत्संग करते, करवाते या उसमें साझेदार होते है उनकी ७ – ७ पीढ़ियों का उद्धार होता है |

·       सेवा में तत्परता है और स्वार्थ नहीं है, द्वेष नहीं है, राग नहीं है तो वह कर्मयोग बन जायेगा |

·       संकट या विघ्न दिखते भयंकर हैं लेकिन आते है आपके विकास के लिए, आत्मबल बढाने के लिए |

·       सच्चे संतो से समाज विमुख हो जाय तो समाज को शांति, भाईचारा और सदाचार कहाँ से मिलेगा ?

·       आप जहाँ हो वहाँ अगर प्रसन्न नहीं हो तो वैकुण्ठ में भी प्रसन्नता मिलना सम्भव नहीं है |

·       श्रद्धा के साथ वेदान्त-ज्ञान होगा तभी आप दूसरों का हित कर सकते है |

·       शुद्ध ज्ञान में जगने के लिए इन्द्रियों को विषय-विकारों के श्रम से बचाये |

·       वे ही दु:खी और विफल होते हैं जो ईश्वरीय सिद्धांत के खिलाफ काम करते हैं |

·       जो किसीकी निंदा करते हैं, सुनते हैं वे अपने साथ अनर्थ करते हैं |

·       भगवान का ज्ञान जिनके ह्रदय में हो जाता है उनका ह्रदय दाता के गुणों से अपने-आप भर जाता है |

·       उत्साह, मनोबल और आनंदबल बढाकर शरीर से काम लेनेवाले सदा जवान रहते है |

·       जब तक भक्ति का रंग नहीं लगता तब तक संसार का रंग छूटता नहीं |

·       ईश्वर का रास्ता इतना सुगम है कि जहाँ से तुम चलते हो वहीँ मंजिल है |

·       ईर्ष्यारहित व्यक्ति को अंतर का सुख प्राप्त होता है |

·       आवेश से हमारी शक्तियाँ क्षीण होती हैं और समता से उनका विकास होता है |

·       संत का सान्निध्य भगवान के सान्निध्य से भी बढकर माना गया है |

·       लोग अभाव से दु:खी नहीं होते, नासमझी से दु:खी होते हैं |

·       दूसरे के अधिकार की रक्षा करते हुए सेवा करते हैं तो वह भजन हो जाता है |


ऋषिप्रसाद – मार्च २०२२ से

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