देशी गुड़ स्निग्ध, बल-वीर्यवर्धक, वात-पित्तशामक, पचने में भारी, मूत्र की शुद्धि करनेवाला एवं
नेत्र-हितकर है | यह हड्डियों और मासपेशियों को सशक्त बनाने
में सहायक है |
पुराना गुड़ पचने में हलका, रुचिकारक, ह्रदय-हितकर, थकान दूर करनेवाला, भूखवर्धक व रक्त को साफ़
करनेवाला है | गुड़ को संग्रहित करके रखें व एक वर्ष पुराना
होने पर खायें, यह विशेष हितकारी है |
इससे गुड़ के हानिकारक प्रभाव से भी रक्षा होगी |
भैषज्यरत्नावली के अनुसार ‘पुराना गुड़ नहीं मिलने पर नये गुड़ को १२ घंटे तीव्र धूप में
रखकर उपयोग कर सकते हैं |’
मैल को निकाले बिना जो गुड़ बनाया जाता है उसके सेवन से पेट
में कृमियों की उत्पत्ति होती है | यह मेद, मांस, मज्जा तथा कफ
को बढाता है | रासयनिक द्रव्यों के उपयोग से बनाया गया गुड़
स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है |
सफेद जहर से बचें
गन्ने के रस में जितने प्रकार के पोषक तत्व विद्यमान होते
हैं वे लगभग सभी तत्त्व गुड़ में पाये जाते हैं | अत: मीठे व्यंजनों में शक्कर के स्थान पर गुड़ का उपयोग
हितकारी है | शक्कर शरीर को कोई खनिज तत्व या विटामिन नहीं
देती बल्कि वह कैल्शियम , विटामिन डी जैसे शरीर के
महत्वपूर्ण तत्त्वों का ह्रास कर देती है | वर्तमान में
अधिकतर लोगों में पायी जानेवाली अस्थियों की दुर्बलता व भंगुरता का एक मुख्य कारण
शक्कर है | यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफोर्निया सैन फ्रांसिस्को के
पीडियाट्रिक न्यूरो-एंडोक्रायनोलॉजिस्ट रॉबर्ट लस्टिंग कहते हैं कि “शक्कर बीमारियाँ
बनाती हैं, यह जहर है |”
यह ह्रदयरोग, कैंसर, मधुमेह जैसे गम्भीर रोगों का खतरा बढ़ा देती
हैं | हानिकारक रसायनों से रहित पुराना देशी गुड़ इसका उत्तम
विकल्प है |
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ़ फार्मास्युटिकल रिसर्च एंड एप्लिकेशन
में प्रकाशित एक शोध के अनुसार गुड़ में शरीर के लिए आवश्यक महत्वपूर्ण खनिज, जैसे – कैल्शियम,
फोर्स्फोरस, मैग्नेशियम, पोटैशियम, लौह, जिंक, ताँबा, फोलिक एसिड तथा विटामिन बी-कॉम्प्लेक्स आदि पाये जाते हैं |
सावधानियाँ : रसायनरहित देशी गुड़ का ही सेवन करे | गुड़ की प्रकृति गर्म होने से गर्भवती महिलाएँ व पित्त प्रकृतिवाले लोग इसका सेवन अल्प मात्रा में करें | कृमि, मोटापन, बुखार, भूख कम लगना और मधुमेह आदि में गुड़ नहीं खाना चाहिए | गुड़ के साथ दूध व उड़द का सेवन न करें |
ऋषिप्रसाद – मार्च २०२२ से
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