• सूखा देसी आँवला, बड़ी हर्रे व बहेड़ा लेकर गुठली निकाल दें। तीनों समभाग मिलाकर महीन पीस लें। कपड़छान कर काँच की शीशी में भरकर रखें।
औषधि प्रयोगः
• नेत्र प्रक्षालनः एक चम्मच त्रिफला चूर्ण दो घंटे तक एक कटोरी पानी में भिगो दें, फिर कपड़े से छानकर उस पानी से आँखें धो लें। यह प्रयोग आँखों के लिए अत्यंत हितकर है। इससे आँखें स्वच्छ व दृष्टि सूक्ष्म होती है। आँखों की जलन, लालिमा, आँखों से पानी आना तथा आँख आने पर नेत्र प्रक्षालन से खूब फायदा होता है।
• गण्डूष धारण (कुल्ले करना)- त्रिफला दो घंटे पानी में भिगो के रखें। फिर यह पानी मुँह में भर लें और थोड़ी देर बाद निकाल दें। इससे दाँत व मसूड़े वृद्धावस्था तक मजबूत रहते हैं। कभी-कभी त्रिफला चूर्ण से मंजन करना भी लाभदायी है। गण्डूष धारण से अरूचि, मुख की दुर्गन्ध व मुँह के छाले नष्ट होते हैं।
• घी (गाय का) व शहद के विमिश्रण (घी अधिक व शहद कम) के साथ त्रिफला चूर्ण का सेवन आँखों के लिए वरदानस्वरूप है। संयमित आहार-विहार के साथ इसका नियमित प्रयोग करने से मोतियाबिंद, काँचबिंदु, दृष्टिदोष आदि नेत्ररोग होने की सम्भावना नहीं होती। वृद्धावस्था तक आँखों की रोशनी अचल रहती है।
• त्रिफला के काढ़े से घाव धोने से एलोपैथिक एंटिसेप्टिक की आवश्यकता नहीं रहती। घाव जल्दी भर जाता है।
• त्रिफला के गुनगुने काढ़े में शहद मिलाकर पीने से मोटापा कम होता है।
• मूत्र-संबंधी सभी विकारों व मधुमेह (डायबिटीज) में त्रिफला का सेवन बहुत लाभदायी है।
• रात को गुनगुने पानी के साथ त्रिफला लेने से कब्जियत नहीं रहती।
मात्राः 2 से 4 ग्राम चूर्ण दोपहर को भोजन के बाद अथवा रात को गुनगुने पानी के साथ लें। रात को न ले सकें तो सुबह जल्दी भी ले सकते हैं।
सावधानीः दुर्बल, कृश व्यक्ति तथा गर्भवती स्त्री को एवं नवज्वर (नये बुखार) में त्रिफला का सेवन नहीं करना चाहिए।
यदि दूध का सेवन करना हो तो दूध व त्रिफला के सेवन के बीच दो ढाई घंटे का अंतर रखें।
स्रोतः लोक कल्याण सेतु, जून 2010,
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