आजकल सभी जगह शादी-पार्टियों में खड़े होकर भोजन
करने का रिवाज चल पड़ा है लेकिन हमारे शाश्त्र कहते है कि हमें नीचे बैठकर ही भोजन
करना चाहिए । खड़े होकर भोजन करने से हानियाँ तथा पंगत में बैठकर भोजन करने से जो
लाभ होते हैं वे निम्नानुसार हैं :
खड़े होकर भोजन
करने से हानियाँ
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बैठकर (या पंगत
में)भोजन करने से लाभ
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१] यह आदत असुरों की है । इसलिए इसे 'राक्षसी
भोजन पद्धति'कहा
जाता हैं ।
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१] इसे 'दैवी
भोजन पद्धति'
कहा जाता हैं ।
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२] इसमें पेट, पैर
व आँतों पर तनाव पड़ता है,
जिससे गैस, कब्ज, मंदाग्नि, अपचन
जैसे अनेक उदर-विकार व घुटनों का दर्द, कमरदर्द
आदि उत्त्पन्न होते हैं । कब्ज अधिकतर बीमरियों का मूल है ।
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२] इसमें पैर, पेट
व आँतों की उचित स्थिति होने से उन पर तनाव नहीं पड़ता ।
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३] इससे जठराग्नि मंद हो जाती है, जिससे
अन्न का सम्यक पाचन न होकर अजीर्णजन्य कई रोग उत्पन्न होते हैं ।
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३] इससे जठराग्नि प्रदीप्त होती है, अन्य
का पाचन सुलभता से होता है ।
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४] इससे ह्रदय पर अतिरिक्त भार पड़ता है, जिससे
हृदयरोगों की सम्भावनाएँ बढ़ती हैं ।
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४] ह्रदय पर भार नहीं पड़ता ।
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५] पैरों में जूते -चप्पल होने से पैर गरम रहते
हैं । इससे शरीर की पूरी गर्मी जठराग्नि को प्रदीप्त करने में नहीं लग पाती ।
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५] आयुर्वेद के अनुसार भोजन करते समय पैर ठंडे
रहने चाहिए । इससे जठराग्नि प्रदीप्त होने में मदद मिलती है । इसीलिए हमारे देश
में भिजन करने से पहले हाथ-पैर धोने की परम्परा हैं ।
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६] बार-बार कतार में लगने से बचने के लिए थाली
में अधिक भोजन भर लिया जाता है, तो ठूँस-ठूँसकर खाया जाता है जो अनेक रोगों का
कारण बन जाता है अथवा अन्न का अपमान करते हुए फेंक दिया जाता हैं ।
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६] पंगत में एक परोसनेवाला होता है, जिससे
व्यक्ति अपनी जरूरत के अनुसार भोजन लेता है । उचित मात्रा में भोजन लेने से
व्यक्ति स्वस्थ्य रहता है व भोजन का भी अपमान नहीं होता ।
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७] जिस पात्र में भोजन रखा जाता है, वह
सदैव पवित्र होना चाहिए लेकिन इस परम्परा में जूठे हाथों के लगने से अन्न के
पात्र अपवित्र हो जाते हैं । इससे खिलनेवाले के पुण्य नाश होते हैं और खानेवालों
का मन भी खिन्न-उद्दिग्न रहता है ।
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७] भोजन परोसनेवाला अलग होते हैं, जिससे
भोजनपात्रों को जूठे हाथ नहीं लगते । भोजन तो पवित्र रहता ही हैं, साथ
ही खाने-खिलानेवाले दोनों का मन आनंदित रहता हैं ।
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८] हो-हल्ले के वातावरण में खड़े होकर भोजन करने
से बाद में थकान और उबान महसूस होती है । मन में भी वैसे ही शोर-शराबे के
संस्कार भर जाते है ।
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८] शांतिपूर्वक पंगत में बैठकर भोजन करने से मन
में शांति बनी रहती है,
थकन-उबन भी महसूस नहीं होती ।
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"Indian traditional values better than buffet system"
Harmful effects of eating in upright standing posture
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Benefits of eating in seated posture
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1. This behavior is attributed to demons. So, it is also known as demoniac eating technique.
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1. This is the godly manner of eating.
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2. It puts stress on stomach, feet, intestines and can lead to many stomach ailments like gas, indigestion, constipation, poor appetite and knee joint pain, back aches, etc.. Constipation is often the root cause of many diseases.
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2. Due to optimal positioning of feet, stomach and intestines, none of them are stressed.
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3. It weakens the digestive system and can eventually lead to many ailments associated with a weak digestive tract.
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3. It strengthens the digestive system and helps easily digest the food taken.
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4. It puts undue stress on the heart and even lead to many heart ailments.
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4. Heart does not get stressed in this posture. |
5. As one is wearing footwear like shoes and slippers, all the heat in the body is concentrated at the feet. This prevents digestive system from receiving the entire body heat.
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5. As per Ayurveda, feet should be cold during meals. This assists in energising the digestive system. Along similar lines, India has the customs of washing hands and feet before meals.
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6. To avoid getting in
queue repeatedly, one fills the plate excessively. This either leads to
over-consumption which can be the cause of many diseases or may lead to
insulting the food as it goes waste.
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6. In traditional serving system, there is a server who distributes as per individual needs. Taking food in correct quantities helps maintain a healthy body and also does not end up insulting the food.
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7.
The plate on which food is kept must always be pure. But using impure,
dirty hands to refill the plate means that the food becomes impure. One
who serves such food drains away his virtues and also leads to fickleness in the person who consumes it.
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7. The food server is different from those taking meals. This ensures that no impure hands are used in handling the meal. The food remains clean and pure and also the meal will eventually offer satisfaction and peace to the person having it.
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8. Taking meals in a crowded and noisy environment leads to tiredness and lack lustre mood. Mind also gets filled in with the culture of such noisy ambience.
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8. Taking meals in a quiet environment offers peace to the mind. It prevents any feeling of tiredness or lack lustre mood swings.
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