- गर्भ रहने पर गर्भिणी किसी भी प्रकार के आसव-अरिष्ट (कुमारी आसव, दशमूलारिष्ट आदि), उष्ण-तीक्ष्ण औषधियों, दर्द-निवारक (पेन किलर) व नींद की गोलियों, मरे हुए जानवरों के रक्त से बनी रक्तवर्धक दवाइयों एव टॉनिक्स तथा हानिकारक अंग्रेजी दवाइयों आदि का सेवन न करें |
- इडली, डोसा, ढोकला जैसे खमिरयुक्त, पित्तवर्धक तथा चीज, पनीर जैसे पचने में भारी पदार्थ न खाये | ब्रेड, बिस्कुट, केक, नुडल्स (चाऊमीन), भेलपुरी, दहिवड़ा जैसी मैदे की वस्तुएँ न खाकर शुद्ध घी व आटे से बने तथा स्वास्थ्यप्रद पदार्थो का सेवन करे |
- कोल्डड्रिंक्स व डिब्बाबंद रसों की जगह ताजा नीबू या आँवले का शरबत ले | देशी गाय के दूध, गुलकंद का प्रयोग लाभकारी है |
- मांस, मछली, अंडे आदि का सेवन कदापि न करे |
- आयुर्वेदानुसार सगर्भावस्था में किसी भी प्रकार का आहार अधिक मात्र में न लें | षडरसयुक्त आहार लेना चाहिए परंतु केवल किसी एकाध प्रिय रस का अति सेवन दुष्परिणाम ला सकता हैं |
इस संदर्भ में चरकाचार्यजी ने बताया है :
१] मधुर : सतत सेवन करने से बच्चे को मधुमेह (डायबिटीज), गूँगापन, स्थूलता हो सकती हैं |
२] अम्ल : इमली. टमाटर, खट्टा दही , डोसा, खमीरवाले पदार्थ अतिप्रमाण में खाने से बच्चे का जन्म से ही नाक में से खून बहना, त्वचा व आँखों के रोग हो सकते हैं |
३] लवण (नमक) : ज्यादा नमक लेने से रक्त में खराबी आती है, त्वचा के रोग होते हैं | बच्चे के बाल असमय में सफेद हो जाते हैं, गिरते है, गंजापन आता है, त्वचा पर समय झुरियाँ पडती है तथा नेत्रज्योति कम होती है |
४] तीखा : बच्चा कमजोर प्रकुति का, क्षीण शुक्रधातुवाला व् भविष्य में संतानोत्पत्ति में असमर्थ हो सकता है |
५] कडवा : बच्चा शुष्क, कम वजन का व कमजोर हो सकता है |
६] कषाय : अति खाने पर श्यावता (नीलरोग) आती है, उर्ध्ववायु की तकलीफ रहती है |
सारांश यही है कि स्वादलोलुप न होकर आवश्यक संतुलित आहार लें |
- ऋषिप्रसाद – सितम्बर २०१४ से
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