आयुर्वेद में हरड
अत्यंत प्रभावशाली, त्रिदोषशामक, रसायन, दिव्य औषधि मानी गयी है | हरड मनुष्यों के
लिए माता के समान हितकारी है |
हरड रुखी, गर्म,
जठराग्नि व आयु वर्धक, बुद्धि एवं नेत्रों के लिए हितकारी, शरीर को पुष्ट और वायु
को शांत करनेवाली है | यह रस, रक्त आदि सप्तधातुओं में स्थित विकृत कफ तथा मल का
पाचन व शोधन करके शरीर को निर्मल बनाती है एवं यौवन की रक्षा करती है |
यह दमा, खाँसी,
प्रमेह, बवासीर, कुष्ठ, सूजन, पेट के रोग, कृमि रोग, संग्रहणी, कब्ज, विषमज्वर,
अफरा, घाव या फोड़ा, उलटी, हिचकी, पेट-दर्द, प्लीहा व यकृत के रोग, पथरी आदि में
विशेष लाभकारी है |
यूनानी मतानुसार ‘काली
हरड ज्ञानशक्ति और पाचक अवयवों को बल देती है, रक्तशोधक है |’
स्वास्थ व
दीर्घायु प्रदायक प्रयोग
छोटी हरड रात को
पानी में भिगो दें | पानी इतना ही डालें कि हरड उसे सोख लें | प्रातः उसको देशी घी
में तलकर काँच के बर्तन में रख लें | रोज १ – १ हरड सुबह-शाम खाते रहने से शरीर हृष्ट-
पुष्ट व दीर्घायु होगा |
औषधीय
प्रयोग
पेट की
वायु : १ छोटी हरड दिन में ३ बार चूसें |
अजीर्ण,
अफरा, पेट-दर्द : भुनी हुई छोटी हरड के आधा चम्मच चूर्ण का काले नमक के
साथ सेवन करें |
पेचिश : आधा
चम्मच हरड चूर्ण को शहद में मिला के सुबह – शाम लें |
सुरीली
आवाज : हरड के क्वाथ में फिटकरी मिलाकर कुल्ला करने से गला साफ़
होता है और आवाज सुरीली बनती है |
सेवन-विधि : हरड
चबाकर खाने से भूख बढती है | पीस के फाँकने से मल साफ़ आता है | सेंककर खाने से
त्रिदोष दूर होते है | भोजन के साथ खाने से बुद्धि व शक्ति बढती है | भोजन के बाद
खाने से वात-पित्त-कफ से उत्पन्न विकार शीघ्र ही शांत होते है |
दोषानुरूप
अनुपान : हरड को कफ में सेंधा नमक के साथ, पित्त में मिश्री के साथ,
वात में घी में भूनकर अथवा मिला के लें | पुराने गुड के साथ मिलाकर हरड का सेवन
करने से त्रिदोषों का शमन होता है |
सावधानी : हरड लेने
से एक घंटा पहले और बाद में दूध नहीं लेना चाहिए | पित्तरोगी, दुर्बल, पतले, थके
हुए, अधिक श्रम करनेवाले, शरीर के किसी भी अंग से रक्तस्त्राव हो रहा हो तो तथा
गर्भवती स्त्रियों को हरड का सेवन नहीं करना चाहिए |
स्त्रोत - लोककल्याण सेतु – फरवरी २०१६ से