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Saturday, February 6, 2016

दिव्य औषधि – हरड

आयुर्वेद में हरड अत्यंत प्रभावशाली, त्रिदोषशामक, रसायन, दिव्य औषधि मानी गयी है | हरड मनुष्यों के लिए माता के समान हितकारी है |

हरड रुखी, गर्म, जठराग्नि व आयु वर्धक, बुद्धि एवं नेत्रों के लिए हितकारी, शरीर को पुष्ट और वायु को शांत करनेवाली है | यह रस, रक्त आदि सप्तधातुओं में स्थित विकृत कफ तथा मल का पाचन व शोधन करके शरीर को निर्मल बनाती है एवं यौवन की रक्षा करती है |

यह दमा, खाँसी, प्रमेह, बवासीर, कुष्ठ, सूजन, पेट के रोग, कृमि रोग, संग्रहणी, कब्ज, विषमज्वर, अफरा, घाव या फोड़ा, उलटी, हिचकी, पेट-दर्द, प्लीहा व यकृत के रोग, पथरी आदि में विशेष लाभकारी है |

यूनानी मतानुसार ‘काली हरड ज्ञानशक्ति और पाचक अवयवों को बल देती है, रक्तशोधक है |’

स्वास्थ व दीर्घायु प्रदायक प्रयोग

छोटी हरड रात को पानी में भिगो दें | पानी इतना ही डालें कि हरड उसे सोख लें | प्रातः उसको देशी घी में तलकर काँच के बर्तन में रख लें | रोज १ – १ हरड सुबह-शाम खाते रहने से शरीर हृष्ट- पुष्ट व दीर्घायु होगा |

औषधीय प्रयोग

पेट की वायु : १ छोटी हरड दिन में ३ बार चूसें |

अजीर्ण, अफरा, पेट-दर्द : भुनी हुई छोटी हरड के आधा चम्मच चूर्ण का काले नमक के साथ सेवन करें |

पेचिश : आधा चम्मच हरड चूर्ण को शहद में मिला के सुबह – शाम लें |

सुरीली आवाज : हरड के क्वाथ में फिटकरी मिलाकर कुल्ला करने से गला साफ़ होता है और आवाज सुरीली बनती है |

सेवन-विधि : हरड चबाकर खाने से भूख बढती है | पीस के फाँकने से मल साफ़ आता है | सेंककर खाने से त्रिदोष दूर होते है | भोजन के साथ खाने से बुद्धि व शक्ति बढती है | भोजन के बाद खाने से वात-पित्त-कफ से उत्पन्न विकार शीघ्र ही शांत होते है |

दोषानुरूप अनुपान : हरड को कफ में सेंधा नमक के साथ, पित्त में मिश्री के साथ, वात में घी में भूनकर अथवा मिला के लें | पुराने गुड के साथ मिलाकर हरड का सेवन करने से त्रिदोषों का शमन होता है |

सावधानी : हरड लेने से एक घंटा पहले और बाद में दूध नहीं लेना चाहिए | पित्तरोगी, दुर्बल, पतले, थके हुए, अधिक श्रम करनेवाले, शरीर के किसी भी अंग से रक्तस्त्राव हो रहा हो तो तथा गर्भवती स्त्रियों को हरड का सेवन नहीं करना चाहिए |

स्त्रोत -   लोककल्याण सेतु – फरवरी २०१६ से

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