लाभ : १) इस आसन के
अभ्यास से पाँव और ऊँगलियों के जोड़ों का दर्द दूर होता हैं तथा जाँघों की
मांसपेशियाँ पुष्ट होती है |
२) वीर्य का प्रवाह
ऊर्ध्वगामी होता हैं | अखंड ब्रह्मचर्य के लिए उपयोगी है |
३) बवासीर की बीमारी
में लाभ पहुँचता है |
४) इस आसन के समय
उड्डीयान बंध करने से पेट के सभी विकारों में लाभ होता है |
विधि : पंजों के बल
जमीन पर बैठ जायें | अँगूठों पर जोर देते हुए एडियों को भलीभाँति ऊपर उठायें |
इसके बाद एडियों को आपस में मिलाते हुए गुदाद्वार को उन पर सटाकर रखें | अब दोनों
हाथों की कोहनियों को घुटनों पर रखते हुए ऊँगलियों को परस्पर फँसा लें |
स्त्रोत
– ऋषिप्रसाद – अक्टूबर २०१५ से
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