जो सिर पर पगड़ी या टोपी पहन रखकर, दक्षिण की ओर मुख करके अथवा जूते पहन कर भोजन करता है, उसका वह सारा भोजन आसुरी भोजन समझना चाहिए।
(महाभारत, अनुशासन पर्वः 90.19)
युधिष्ठिर ! जो सदा सेवकों और अतिथियों के भोजन कर लेने के पश्चात ही भोजन करता है, उसे केवल अमृत भोजन करने वाला (अमृताशी) समझना चाहिए।
(महाभारत, अनुशासन पर्वः 93,13)
Rishi Prasad March’10
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