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Friday, August 22, 2014

तिथि अनुसार आहार-विहार

ब्रम्हवैवर्त पुराण, ब्रम्ह खंड (२७.२९-३४) में आता है :
-प्रतिप्रदा को कुष्मांड (कुम्हड़ा, पेठा) न खायें क्योंकि यह धन का नाश करनेवाला है |
- द्वितीया को बृहती (वनभांटा, छोटा बैंगन या कटेहरी) खाना निषिद्ध है |
- तृतीया को परवल खाना शत्रुवृद्धि करता है |
- चतुर्थी को मूली खाने से धन-नाश होता है |
- पंचमी को बेल खाने से कलंक लगता है |
- षष्ठी को नीम-भक्षण (पत्ती, फल खाने या दातुन मुँह में डालने) से नीच योनियों की प्राप्ति होती है |
- सप्तमी को ताड़ का फल खाने से रोग बढ़ते हैं तथा शरीर का नाश होता है |
- अष्टमी को नारियल का फल खाने से बुद्धि का नाश होता है |
- नवमी को लौकी खाना गोमांस के सामान त्याज्य है |
- एकादशी को शिम्बी (सेम), द्वादशी को पूतिका (पोई) तथा त्रयोदशी को बैंगन खाने से पुत्र का नाश होता है |
- अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रांति, चतुर्दशी व अष्टमी, रविवार, श्राद्ध और व्रत के दिन स्री – श्वास एवं तिल का तेल खाना व लगाना निषिद्ध है | (ब्रम्हवैवर्त पुराण, ब्रम्ह खंड : २७.३७-३८)
इससे स्वभाव क्रोधी होता है और बीमारी जल्दी आती है |
- रविवार के दिन मसूर की दाल, अदरक और लाल रंग की सब्जी नहीं खानी चाहिए | (ब्रम्हवैवर्त पुराण, श्रीकृष्ण खंड : ७५.६१)  ये खाने व लाल बल्ब आदि से घर में झगड़े होते है एवं स्वभाव में क्रोध व काम पैदा होता है |
-सूर्यास्त के बाद कोई भी तिलयुक्त पदार्थ नहीं खाना चाहिए (मनुस्मृति :४.७५) 
-सावन में साग और भादों में दही का सेवन वर्जित है | कहावत भी है : भादों की दही भूतों को, कार्तिक की दही पूतों को |

- ऋषिप्रसाद – अगस्त २०१४ से

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