इस आसन में शरीर का आकर स्वस्तिक जैसा हो जाता है इसलिए इसे ‘स्वस्तिकासन’ कहते है |
लाभ : १) मन शांत व स्थिर , मेरुदंड पुष्ट तथा वायुरोग दूर होते है |
२) रक्त शुद्ध होता है, ह्रदय को रक्त अधिक मिलता है |
३) जिनके पैरों में दर्द होता हो, पैरों के तलवे ठंड के दिनों में बहुत अधिक ठंडे रहते हो तथा गर्मी के दिनों में बहुत अधिक पसीना आता हो अथवा पसीने से पैरों में बदबू आती हो,उनको इसका अभ्यास प्रतिदिन २० मिनट तक अवश्य करना चाहिए |
४) इस आसन से सिद्धासन से होनेवाले अनेक लाभ भी प्राप्त होते हैं |
विधि – जमीन पर बैठकर पैरों को सामने की ओर फैला दें | फिर बायें घुटने को मोडकर बायें पैर के तलवे को दायी जाँघ के भीतरी भाग के पास इसप्रकार रखें कि एडी सिवनी को स्पर्श न करे | अब दायें घुटने को मोडकर दायें पैर को बायें पैर के ऊपर इसप्रकार रखें कि दायाँ पंजा बायीं जाँघ को स्पर्श करे | दोनों पैरों के पंजे जंघा और पिंडली के बिच दबे रहेंगे | एडियाँ श्रोणि प्रदेश का स्पर्श न करें | घुटने जमीन के सम्पर्क में रहें | रीढ़ की हड्डी सीधी तथा हाथों को ज्ञान मुद्रा में घुटनों पर रखें |
सावधानी – साइटिका एवं रीढ़ के निचले भाग के विकारों से पीड़ित लोगों को यह आसन नहीं करना चाहिए |
- ऋषिप्रसाद –जनवरी २०१५ से