लाभ – इसके नियमित अभ्यास से –
१) मासिक धर्म से संबंधित समस्याएँ दूर हो जाती है |
२) मांसपेशियों और नाड़ियों को आराम मिलता है, जिससे दबाव, तनाव व् क्रोध के आवेग को नियंत्रित करने की क्षमता बढती है |
३) अतिस्राव में भी नियन्त्रण होता है |
४) पेट को शीतलता मिलती है और मस्तिष्क की कोशिकाओं को सक्रिय करने में सहायता होती है |
विधि – दोनों हाथो की ऊँगलियों को इस तरह फँसाएँ कि दोनों अंगूठों के अग्रभाग आपस में जुड़े हुए हों | दाहिने हाथ की तर्जनी को बायें हाथ की तर्जनी और मध्यमा के बीच फँसा दें | दाहिने हाथ की मध्यमा को बायें हाथ की मध्यमा और अनामिका के ऊपर से ले जाकर कनिष्ठिका के नीचे फँसा दें | दाहिने हाथ की अनामिका बायें हाथ की मध्यमा और अनामिका के नीचे रहेगी | अब दाहिने हाथ की कनिष्ठिका को बायें हाथ की कनिष्ठिका के नाख़ून के ऊपर रखें |
१) मासिक धर्म से संबंधित समस्याएँ दूर हो जाती है |
२) मांसपेशियों और नाड़ियों को आराम मिलता है, जिससे दबाव, तनाव व् क्रोध के आवेग को नियंत्रित करने की क्षमता बढती है |
३) अतिस्राव में भी नियन्त्रण होता है |
४) पेट को शीतलता मिलती है और मस्तिष्क की कोशिकाओं को सक्रिय करने में सहायता होती है |
विधि – दोनों हाथो की ऊँगलियों को इस तरह फँसाएँ कि दोनों अंगूठों के अग्रभाग आपस में जुड़े हुए हों | दाहिने हाथ की तर्जनी को बायें हाथ की तर्जनी और मध्यमा के बीच फँसा दें | दाहिने हाथ की मध्यमा को बायें हाथ की मध्यमा और अनामिका के ऊपर से ले जाकर कनिष्ठिका के नीचे फँसा दें | दाहिने हाथ की अनामिका बायें हाथ की मध्यमा और अनामिका के नीचे रहेगी | अब दाहिने हाथ की कनिष्ठिका को बायें हाथ की कनिष्ठिका के नाख़ून के ऊपर रखें |
- ऋषिप्रसाद –जनवरी २०१५ से
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