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Monday, February 14, 2022

इन तिथियों व योगो का लाभ अवश्य लें

 


२३ फरवरी : बुधवारी अष्टमी ( शाम ४:५७ से २४ फरवरी सूर्योदय तक)

२७ फरवरी : त्रिस्पृशा-विजया एकादशी  ( इस दिन उपवास से १००० एकादशी व्रतों का फल)

१ मार्च : महाशिवरात्रि व्रत, रात्रि- जागरण, शिव-पूजन (निशिथकाल : रात्रि १२:२६ से १:१५ तक)

२ मार्च: द्वापर युगादि तिथि ( स्नान, दान-पुण्य, जप, हवन से अनंत फल की प्राप्ति होती है |)

१३ मार्च : रविपुष्यामृत योग ( रात्रि ८:०६ से १४ मार्च सूर्योदय तक)

१४ मार्च : आमलकी एकादशी ( व्रत करके आँवले के वृक्ष के पास रात्रि-जागरण, उसकी १०८ या २८ परिक्रमा करने से सब पापों का नाश व १००० गोदान का फल ), षडशीति संक्रान्ति ( पुण्यकाल : दोपहर १२:४८ से सूर्यास्त तक) (ध्यान, जप व पुण्यकर्म का ८६,००० गुना फल )

 

ऋषिप्रसाद – फरवरी २०२२ से

किसकी आयु कम हो जाती है ?

 

  • जिनको अति अभिमान होता है, जो अधिक एवं व्यर्थ का बोलते हैं उनकी आयु कम हो जाती है | 
  • जो निंदा-ईर्ष्या करते है या दुर्व्यसन में फँसे हैं अथवा जो जरा-जरा बात में क्रुद्ध हो जाते हैं उनकी भी उम्र कम हो जाती है | 
  • जो अधिक खाना खाते हैं, रात को देर से खाते हैं, बिनजरूरी खाते हैं, चलते-चलते खाते हैं, खड़े-खड़े हैं उनका भी स्वास्थ्य लडखडा जाता है और आयु कम हो जाती है | 
  • जो मित्र, परिवार से द्रोह करते हैं, संतो, सज्जनों की निंदा करते है उनकी भी आयु कम होती है, जो ठाँस- ठाँस के खाता है, ब्रह्मचर्य का नाश करता रहता है वह जल्दी मरता है | 
  • जो प्राणायाम और भगवद-मंत्र का जप नहीं करता उसकी लम्बी आयु होने में संदेह रहता है और जो ब्रह्मचर्य पालते हैं, प्राणायाम करते हैं उनकी आयु बढती है |

 

ऋषिप्रसाद – फरवरी २०२२ से

कष्ट-बाधा और पितृदोष का उपाय

 

सदगुरु या इष्ट का ध्यान करते हुए निम्नलिखित शिव-गायत्री मंत्र की एक माला सुबह अथवा शाम की संध्याओं में कभी भी कुछ दिन जपने से पितृदोष, कष्ट-बाधा दूर हो जाते हैं तथा पितर भी प्रसन्न होते हैं | जब पितर प्रसन्न होते हैं तो घर में सुख-समृद्धि, वंशवृद्धि व सर्वत्र उन्नति देते हैं |

मंत्र : 

ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि | तन्नो रुद्र: प्रचोदयात्  || 

(लिंग पुराण, उत्तर भाग :४८.७)


ऋषिप्रसाद – फरवरी २०२२ से

ॐकार – जप से सर्वरोग दूर तथा अमरत्व का बोध

 

अग्नि पुराण में वैद्य – शिरोमणि भगवान धन्वन्तरिजी आचार्य सुश्रुतजी से कहते हैं : “सुश्रुत ! ‘ॐकार’ आदि मंत्र आयु देनेवाले तथा सब रोगों को दूर करके आरोग्य प्रदान करनेवाले हैं | इतना ही नहीं, देह छूटने के पश्यात वे स्वर्ग की भी प्राप्ति करानेवाले हैं | ‘ॐकार’ सबसे उत्कृष्ट मन्त्र है | उसका जप करके मनुष्य अमर हो जाता है – आत्मा के अमरत्व का बोध प्राप्त करता है अथवा देवतारूप हो जाता है |”

 

ऋषिप्रसाद – फरवरी २०२२ से

वसंत ऋतू में विशेष उपयोगी कफनाशक पेय

 

(वसंत ऋतू : १८ फरवरी से १९ अप्रैल २०२२ )

आधा लीटर पानी में ३ से ५ तेजपत्ते, २ इंच अदरक के १ या २ टुकड़े (काट के ) और  ३ – ४ लौंग डाल के १० – १५ मिनट उबालें | ठंडा होने पर छान के २ चम्मच शहद मिलाकर रख लें | इसे दिन में तीन – चार बार आधा कप गुनगुने पानी में थोडा-थोडा डाल के पिये | बिना शहद मिलाये मधुमेह में भी ले सकते हैं |

 

लाभ: यह प्रयोग रुचिवर्धक, पाचक, रक्तशोधक, व उत्तम कफशामक है | सर्दी, जुकाम और खाँसी में लाभदायी है | वसंत ऋतू में कफजन्य समस्याएँ ज्यादा होती हैं अत: इन दिनों में यह विशेष उपयोगी है | इसमें लौंग होने से यह प्रयोग श्वासनली में जमा कफ को आसानी से बाहर निकालता है | अदरक वायरस से लड़ने में सहायक है |

ऋषिप्रसाद – फरवरी २०२२ से

 

पौष्टिक खजूर

 


खजूर रसायन का काम करते हैं | आप सभी इनके लाभों से लाभान्वित हो सकें इस उद्देश्य से इन्हें आश्रमों में सत्साहित्य सेवा केन्द्रों पर व समितियों में भी उपलब्ध कराया गया है |

 

लाभ : १] ये वात-पित्तशामक होते हैं | इनमें विटामिन ए, बी-१, बी-र, बी-३, बी-५ तथा कैल्शियम, लौह, मैग्नेशियम आदि अनेक पोषक तत्त्व पाये जाते हैं |

२] ये तुरंत शक्ति देनेवाले, स्फूर्तिदायक , रोगप्रतिरोधक क्षमता व पाचनशक्ति को बढ़ानेवाले होते हैं |

३] ये ह्दय व मस्तिष्क को शक्ति देते हैं | रक्त को बढाकर रक्ताल्पता को दूर करते हैं | महिलाओं के लिए, विशेषकर गर्भवती महिलाओं के लिए ये बहुत गुणकारी होते हैं |

४] ये शरीर के सभी अंगो को मजबूत करते हैं | इनमें अत्यधिक प्राकृतिक शर्करा पायी जाती है | दूध में चीनी मिलाने की अपेक्षा भिगोये हुए २ – ३ खजूर पीसकर मिलाना शरीर के लिए हितकारी है |

५] आँतों में जो हानिकारक जीवाणु होते हैं उन्हें ये नष्ट करते हैं | पेट व आँतों के संक्रमण, कब्ज आदि समस्याओं में ये लाभदायी है |

सेवन-मात्रा : बड़े ३ से ५ एवं बच्चे २ से ४ खजूर अच्छी तरह धोकर रात को भिगो के सुबह खायें |

 

ऋषिप्रसाद – फरवरी २०२२ से

शारीरिक – मानसिक आरोग्य हेतु संजीवनी बूटी : पैदल भ्रमण

 


प्रात: पैदल भ्रमण एक सुंदर व्यायाम है | यह संजीवनी बूटी के समान गुणकारी है | भ्रमण करते हुए वायु स्नान या सेवन से शरीर में तेज, ओज, बल, कांति, स्फूर्ति, उत्साह एवं आरोग्य का संचार होता है, चित्त प्रसन्न होता है |

 

एक कहावत है : सौ दवा, एक हवा | ऋग्वेद ( मंडल १०, सूक्त १८६, मंत्र १ ) में प्रार्थना की गयी है : हमारे ह्रदय के लिए शातिदायक, वैभवकारक, औषधिरूप वायु प्राप्त हो अर्थात हमें निरोग, पुष्टिकारक व आयुवर्धक उत्तम वायु मिलती रहे |

 

पैदल भ्रमण दिनचर्या कका एक अंग हो

भारत में प्राचीन काल से ही पैदल चलने का प्रचलन है | इसीका परिणाम है कि हमारे देश के लोग उतने मोटे व बीमार नहीं होते जितने पाश्चात्य देशों के होते हैं | बच्चे हों या बुजुर्ग, महिला हो या पुरुष सभी आयु-वर्ग के व्यकित्यों के लिए प्रात: पैदल भ्रमण नि:शुल्क औषधि है |

पूज्यश्री कहते है : “प्रात: ब्राह्ममुहूर्त में वातावरण में निसर्ग की शुद्ध एवं शक्तियुक्त वायु का बाहुल्य होता है, जो स्वास्थ्य के लिए हितकारी है |

 

भ्रमण शरीर के पृष्ट-भाग कि मांसपेशियों को मजबूत प्रदान करता है | यह रक्तवाहिकाओं को खोल देता है, जिससे मांसपेशियों में ऑक्सीजन और पोषक तत्त्वों की मात्रा बढ़ जाती है | पैदल भ्रमण पीठ के निचले भाग की मांसपेशियों में जमा विषाक्त द्रव्यों को निकालकर लचीलापन प्रदान करता है | यह कैंसर, ह्रदयरोग, कमर-दर्द, श्वास आदि रोगों में लाभदायी है | शोधकर्ताओं के अनुसार पैदल चलने से शरीर में एंडोर्फिन नामक रसायन की मात्रा बढती है जो प्राकृतिक दर्द-निरोधक है | प्रचुर मात्रा में भ्रमण चिंता, उदासी, थकान, उत्साह का अभाव आदि तनाव के लक्षणों में काफी कमी ला देता है | इससे एकाग्रता, प्रश्न हल करने की शक्ति, स्मृति व संज्ञानात्मक क्रियाओं में वृद्धि होती है |

 

पैदल भ्रमण का उत्तम समय क्या और कितना करें भ्रमण ?

पैदल भ्रमण का उत्तम समय क्या और कितना करें भ्रमण ? सायंकाल कर सकते है | प्रात: भ्रमण से दिनभर स्फूर्ति बनी रहती है |

२ -३ मील ( ३ से ५ कि.मी.) चल सकें तो अच्छा, नहीं तो प्रात:काल गुनगुना या सामान्य पानी पीकर खुली हवा में आरम्भ में आधा किलोमीटर से २ -३ किलोमीटर तो कोई भी स्वस्थ व्यक्ति आसानी से टहल सकता है |

 

हो सके तो कुछ समय पंजो के बल चलें | इससे पेट में संचित मलो का सरलता से निष्कासन होगा | जहाँ तक हो सके अकेले ही भ्रमण करें |

 

वसंत ऋतू (१८ फरवरी से १९ अप्रैल) आने पर शीत ऋतू में शरीर में संचित हुआ कफ प्रकुपित होने से जठराग्नि मंद हो जाती है | आयुर्वेद शास्त्रों के अनुसार वसंत ऋतू में पैदल चलना बहुत ही हितकारी है | वसन्ते भ्रमणं पथ्यम | पैदल भ्रमण से शरीर में मृदुता, हलकापन व स्फूर्ति आती है और भूख भी खुलकर लगती है |

 

ऋषिप्रसाद – फरवरी २०२२  

 

होली

 

होली : १७ मार्च, धुलेंडी : १८ मार्च

होली ऋतू-परिवर्तन का उत्सव है | होली के बाद २०-२५ दिन नीम के २५-२० कोमल पत्ते और १-२ काली मिर्च खानी चाहिए तथा १५-२० दिन बिना नमक का अथवा बहुत ही कम नमकवाला भोजन करना चाहिए, जिससे वर्षभर स्वास्थ्य की सुरक्षा रहे |


    ऋषिप्रसाद – फरवरी २०२२ से

महाशिवरात्रि व्रत की महिमा

 


महाशिवरात्रि – १ मार्च २०२२

भगवान् शिवजी कहते हैं कि ‘जो सांगोपांग से ( विधि-विधानसहित), संयम से, ब्रह्मचर्य – व्रत पालकर, झूठ-कपट का त्याग करके महाशिवरात्रि का व्रत करता है उसको वर्षभर की शिव-पूजा का फल होगा |’ तो लोगों को फल होता है |

महाशिवरात्रि व्रत का फल

सूतजी शौनकजी से कहते हैं : ‘जिनको आत्मज्ञान का सत्संग श्रवण – मनन को नहीं मिलता है उनको विधिपूर्वक श्रद्धा-भक्ति से शिव-पूजा, शिव-व्रत करना चाहिए | श्रद्धा-भक्ति से किया हुआ शिवजी का पूजन-सुमिरन देर-सवेर उनको आत्मशिव कि विद्या देनेवाले सत्संग में पहुँचा देता है और सत्यस्वरूप व्यापक शिव का साक्षात्कार करा देता है |’

घर को ही बना लें शिवालय     

आप अपने घर में साधन-भजन, पूजा का एक ऐसा कमरा बनाइये जिसमें संसार कि खटपट न हो | फिर वहाँ शिवलिंग की स्थापना करते हैं तो ठीक है अथवा भगवान जिनके ह्रदय में नृत्य कर रहा है, वाणी उच्चार रहा है ऐसे किन्ही ब्रह्मवेत्ता महापुरुष का श्रीचित्र लगा दो जिनमें आपकी श्रद्धा है | रोज थोडा-बहुत ध्यान, जप करिये | कभी- कभार उधर फुल रख दें, दिया जला दें, धूप कर दें | धूप रसायन युक्त कृत्रिम सुगंधवाली अगरबत्तियों का नहीं, ये तो गडबड करती हैं, देशी गाय के गोबर के कंडे के ऊपर थोडा गूगल रख दें या कोयले के ऊपर थोड़ी हबन—सामग्री रख दें अथवा गौ-चंदन धूपबत्ती जला दें | वहाँ आप नियम से मंत्रजप, साधन-भजन करेंगे तो उस जगह को आप थोड़े ही दिनों में शिव मन्दिर पायेंगे |

 

फिर जब संसार कि विडंबना, मुसीबतें आयें तो आप हाथ-पैर धो के उस पूजा के कमरे में आकर थोड़ी प्रार्थना करें | ५ – ७ मिनट ॐकार का दीर्घ उच्चारण करके मानसिक जप व ध्यान करें | यदि रात्रि का समय है तो ध्यान करते-करते ध्यान का जो भाव बना है उसी भाव  शयन कर लें | रात्रि को स्वप्न में आपके प्रश्न का उत्तर आ जायेगा, नहीं तो प्रभात को जरुर आयेगा | एक दिन नहीं तो दूसरे दिन आयेगा, उत्तर आयेगा अथवा समस्या का ऐसे ही समाधान हो जायेगा, यह बिल्कुल सच्ची व पक्की बात है !

 

विशेष लाभदायी है इन दिनों का उपवास    

सूतजी कहते हैं : ‘सोमवार की अष्टमी और कृष्ण पक्ष कि चतुर्दशी को कोई उपवास करें तो उस पर शिवजी विशेष प्रसन्न रहते हैं | महाशिवरात्रि सबसे बलवान व्रत है, करोड़ों हत्याओं का पाप जिसके सिर पर है वह भी अगर विधिवत महाशिवरात्रि का पूजन –अर्चन करता है, भले मन्दिर में न जाय, अपने घर पर ही अर्चन या मानसिक पूजन करें तो उसके रोग-शोक, पाप-ताप भगवान शिव की कृपा से नष्ट हो जाते हैं और उसका ह्रदय प्रफुल्लित व पुण्यमय हो जाता है |’

अष्टमी व चतुर्दशी का उपवास ग्रह – नक्षत्र के हिसाब से हमारे आरोग्य और भक्तिभाव के लिए भी अच्छा है |

 

शिवजी से क्या माँगे ?

शिवजी से यही माँगे कि ‘हे भोलेनाथ ! ऐसी कृपा करो कि शिवस्वरूप का अनुभव करानेवाला सत्संग हमें मिलता रहें हमें शिव-तत्त्व में जगे हुए संतों का सान्निध्य मिले|’

 

महाशिवरात्रि के दिन संकल्प करना चाहिए :

 

देवदेव ! महादेव! नीलकंठ ! नमोऽस्तुते |

कर्तुमिच्छाम्यहं देव ! शिवरात्रिव्रतं तव ||

तव प्रभावाद्देवेश ! निर्विघ्नेन भवेदिति |

कामाध्या: शत्रवो मां वै पीड़ां कुर्वन्तु नैव हि ||

 

‘देवदेव ! महादेव ! नीलकंठ ! आपको नमस्कार है | हे देव ! मैं आपका शिवरात्रि-व्रत करना चाहता हूँ | हे देवेश ! आपके प्रभाव से मेरा व्रत निर्विघ्न पूर्ण हो | इस बीच काम, क्रोध आदि शत्रु मुझे पीड़ित न करें ?’

यह प्रार्थना करके व्रत का आरम्भ करना चाहिए और व्रत पूर्ण करने के बाद दूसरे  दिन सुबह शिव-तत्व को जाननेवाले महापुरुषों का अभिवादन करना चाहिए | अगर ऐसे महापुरुष नहीं मिलते हैं तो मन-ही-मन उनका अभिवादन और पूजन करने से हमारे अंतरात्मा शिव का प्रसाद शीघ्र प्रकट होगा |

इससे सभीको फायदा होगा

शिवजी कहते हैं कि “लिंग का पूजन ॐकार-जप करके और मूर्ति का पूजन ‘ॐ नम:शिवाय’ जप करके करें |”

महाशिवरात्रि का जागरण बड़ा प्रभाव रखता है | इससे चित्त में प्रसन्नता आती ऐ और उसका विकास होता है | मन-ही-मन शिवजी को बिल्वपत्र चढ़ा दो, शिवलिंग पर जल चढ़ा दो, चल जायेगा | १० मिनट होंठों से फिर १० मिनट कंठ से, फिर १० मिनट ह्रदय से जप करो | मन इधर-उधर जाता है तो जोर से ‘हरि ओऽ ऽ..... म ऽ ऽ.....’, शिव ओऽ ऽ..... म ऽ ऽ.....’ ऐसा उच्चारण करो | सुबह, शाम और रात को आधा-आधा घंटा ऐसी साधना करो | इससे सभी को फायदा होगा |

 

ऋषिप्रसाद – फरवरी २०२२ से