शरीर की जैविक घड़ी पर
आधारित दिनचर्या -
हमारे
ऋषियों, आयुर्वेदाचार्य
ने जो जल्दी सोने-जागने एवं आहार-विहार की बातें बतायी है, उन
पर अध्ययन व खोज करके आधुनिक वैज्ञानिक और चिकित्सक अपनी भाषा में उसका पुरजोर
समर्थन कर रहे है ।
मनुष्य
के शरीर में करीब ६० हजार अरब से एक लाख अरब जितने कोश होते है और हर सेकंड एक अरब
रासायनिक क्रियाएँ होती है । उनका नियंत्रण सुनियोजित ढंग से किया जाता है और उचित
समय पर हर कार्य का सम्पादन किया जाता है । सचेतन मन के द्वारा शरीर के सभी
संस्थानों को नियत समय पर क्रियाशील करने के आदेश मस्तिष्क की पीनियल ग्रन्थि के
द्वारा स्रावों (हार्मोन्स) के माध्यम से दिये जाते है । उनमे मेलाटोनिन और सेरोटोनिन मुख्य
है, जिनका स्राव दिन-रात के कालचक्र के आधार पर होता है ।
यदि किसी वजह से इस प्राकृतिक शारीरिक कालचक्र या जैविक घड़ी में विक्षेप होता है
तो उसके कारण भयंकर रोग होते है, जिनका इलाज सिर्फ औषोधियों
से नहीं हो सकता । और य्स्दी अपनी दिनचर्या, खान-पान तथा
नींद को इस कालचक्र के अनुरूप नियमित किया जाय तो इन रोगों से रक्षा होती है और
उत्तम स्वास्थ्य एवं दीर्घायुष्य की प्राप्ति होती है । इस चक्र के विक्षेप से
सिरदर्द, सर्दी से लेकर कैंसर जैसे रोग भी हो सकते है ।
अवसाद, अनिद्रा जैसे मानसिक रोग तथा मूत्र-संस्थान के रोग,
उच्च रक्तचाप, मधुमेह (diabetes), मोटापा, ह्रदयरोग जैसे शारीरिक रोग भी हो सकते है ।
उचित भोजनकाल में पर्याप्त भोजन करनेवालों की अपेक्षा अनुचित समय कम भोजन करनेवाले
अधिक मोटे होते जाते है और इनमे मधुमेह की सम्भावना बढ़ जाती है । अत: हम क्या खाते है, कैसे सोते है यह जितना
महत्त्वपूर्ण है, उतना ही महत्वपूर्ण है हम कब खाते या सोते
है ।
अंगों की सक्रियता अनुसार दिनचर्या
प्रात : ३ से ५ :यह ब्रम्हमुहूर्त
का समय है । इस समय फेफड़े सर्वाधिक क्रियाशील रहते है । ब्रम्हमुहूर्त में थोडा-सा
गुनगुना पानी पीकर खुली हवा में घूमना चाहिए । इस
समय दीर्घ श्वसन करने से फेफड़ों की कार्यक्षमता खूब विकसित होती है । उन्हें शुद्ध
वायु (ऑक्सिजन) और ऋण आयन विपुल मात्रा में मिलने से शरीर स्वस्थ् व स्फूर्तिमान
होता है । ब्रम्हमुहूर्त में उठनेवाले लोग बुद्धिमान व उत्साही होते है और सोते
रहनेवालों का जीवन निस्तेज हो जाता है ।
प्रात: ५ से ७ : इस समय
बड़ी आँत क्रियाशील होती है । जो व्यक्ति इस समय भी सोते रहते है या मल-विसर्जन
नहीं करते, उनकी आँते मल में से त्याज्य द्रवांश का शोषण कर
मल को सुखा देती है । इससे कब्ज तथा कई अन्य रोग उत्पन्न होते है । अत:
प्रात: जागरण से लेकर सुभ ७ बजे के बीच मलत्याग कर लेना चाहिए ।
सुबह ७ से ९ व ९ से ११ : ७ से ९
आमाशय की सक्रियता का काल है । इसके बाद ९ से ११ तक अग्न्याशय व प्लीहा सक्रिय
रहते है । इस समय पाचक रस अधिक बनाते है । अत: करीब ९ से १ बजे का समय भोजन के लिए
उपयुक्त है । भोजन से पहले 'रं- रं- रं... ' बीजमंत्र
का जप करने से जठराग्नि और भी प्रदीप्त होती है । भोजन के बीच-बीच में गुनगुना पानी
(अनुकूलता अनुसार) घूँट-घूँट पिये ।
इस
समय अल्पकालिक स्मृति सर्वोच्च स्थिति में होती है तथा एकाग्रता व विचारशक्ति
उत्तम होती है । अत: यह तीव्र क्रियाशीलता का समय है । इसमें दिन के महत्त्वपूर्ण
कार्यो को प्रधानता है ।
दोपहर ११ से १ : इस समय
उर्जा-प्रवाह ह्रदय में विशेष होता है । करुणा, दया, प्रेम आदि ह्रदय की संवेदनाओ को विकसित एवं पोषित करने के लिए दोपहर १२ बजे
के आसपास मध्यान्ह-संध्या करने का विधान हमारी संस्कृति में है । हमारी संस्कृति
कितनी दीर्घ दृष्टिवाली हैं ।
दोपहर १ से ३ : इस
समय छोटी आँत विशेष सक्रिय रहती है । इसका कार्य आहार से मिले पोषक तत्वों का
अवशोषण व व्यर्थ पदार्थों को बड़ी आँत की ओर ढकेलना हैं । लगभग इस समय अर्थात भोजन
के करीब २ घंटे बाद प्यास-अनुरूप पानी पीना चाहिए, जिससे
त्याज्य पदार्थो को आगे बड़ी आँत को सहायता मिल सके । इस समय भोजन करने अथवा सोने
से पोषक आहार-रस के शोषण में अवरोध उत्पन्न होता है व शरीर रोगी तथा दुर्बल हो
जाता है ।
दोपहर ३ से ५ : यह मूत्राशय की विशेष सक्रियता का काल है | मूत्र का संग्रहण
करना यह मूत्राशय का कार्य है | २ – ४ घंटे पहले पिये पानी से इस समय मूत्रत्याग की
प्रवृत्ति होगी |
शाम ५ से ७ : इस समय जीवनीशक्ति गुर्दों की एयर विशेष प्रवाहित होने लगती है |
सुबह लिए गये भोजन की पाचनक्रिया पूर्ण हो जाती है | अत: इस काल में सायं भुक्त्वा लघु हितं ... (अष्टांगसंग्रह) अनुसार हलका भोजन कर लेना चाहिए | शाम को सूर्यास्त से ४० मिनट
पहले से १० मिनट बाद तक (संध्याकाल में) भोजन न करें | न संध्ययो: भुत्र्जीत | (सुश्रुत संहिता) संध्याकालों में भोजन नहीं करना चाहिए |
न अति
सायं अन्नं अश्नीयात | (अष्टांगसंग्रह) सायंकाल
(रात्रिकाल) में बहुत विलम्ब करके भोजन वर्जित है | देर रात को किया गया भोजन
सुस्ती लाता है यह अनुभवगम्य है |
सुबह
भोजन के दो घंटे पहले तथा शाम को भोजन के तीन घंटे दूध पी सकते है |
रात्रि ७ से ९ : इस समय मस्तिष्क विशेष सक्रिय रहता है | अत: प्रात:काल के अलावा
इस काल में पढ़ा हुआ पाठ जल्दी याद
रह जाता है | आधुनिक अन्वेषण से भी इसकी पुष्टि हुई है | शाम को दीप जलाकर दीपज्योति: परं ब्रम्हा..... आणि स्त्रोत्र्पाथ व शयन से पूर्व स्वाध्याय
अपनी संस्कृति का अभिन्न अंग है |
रात्रि ९ से ११ : इस समय जीवनीशक्ति रीढ़ की हड्डी में स्थित मेरुरज्जु (spinal cord) में विशेष केंदित
होती है | इस समय पीठ के बल या बायीं करवट लेकर विश्राम करने से मेरुरज्जु को
प्राप्त शक्ति को ग्रहण करने में मदद मिलती है | इस समय की नींद सर्वाधिक
विश्रांति प्रदान करती है और जागरण शरीर व बुद्धि को थका देता है |
रात्रि
९ बजने के बाद पाचन संस्थान के अवयव विश्रांति प्राप्त करते है, अत: यदि इस समय
भोजन किया जाय तो वाह सुबह तक जठर में पड़ा रहता है, पचता नहीं है और उसके सड़ने से
हानिकारक द्रव्य पैदा होते है जो अम्ल (एसिड) के साथ आँतों में जाने रोग उत्पन्न
करते है | इसलिए इस समय भोजन करना खतरनाक है |
रात्रि ११ से १ : इस समय जीवनीशक्ति पित्ताशय में सक्रिय होती है | पित्त का
संग्रहण पित्ताशय का मुख्य कार्य है | इस समय का जागरण पित्त को प्रकुपित कर
अनिद्रा, सिरदर्द आदि पित्त-विकार तथा नेत्र्रोगों को उत्पन्न करता है |
रात्रि
को १२ बजने के बाद दिन में किये गये भोजन द्वारा शरीर के क्षतिग्रस्त कोशी के बदले
में नये कोशों का निर्माण होता है | इस समय जागते रहोगे तो बुढ़ापा जल्दी आयेगा |
रात्रि १ से ३ : इस समय जीवनीशक्ति यकृत (liver) में कार्यरत होती है | अन्न का सूक्ष्म पाचन करना
यह यकृत का कार्य है | इस समय शरीर को गहरी नींद की जरूरत होती है | इसकी पूर्ति न
होने पर पाचनतंत्र बिगड़ता है |
इस
समय यदि जागते रहे तो शरीर नींद के वशीभूत होने लगता है, दृष्टि मंद होती है और
शरीर की प्रतिक्रियाएँ मंद होती है | अत: इस समय सडक दुर्घटनायें अधिक होती है |
निम्न बातों का भी विशेष ध्यान रखें :
१) ऋषियों व आयुर्वेदाचार्यों ने बिना भूख लगे
भोजन करना वर्जित बताया है | अत: प्रात: एवं शाम के भोज की मात्रा ऐसी रखें, जिससे
ऊपर बताये समय में खुलकर भूख लगे |
२) सुबह व शाम के भोजन के बीच बार-बार कुछ खाते
रहने से मोटापा, मधुमेह, ह्रदयरोग जैसी बिमारियों और मानसिक तनाव व अवसाद (mental stress & depression) आदि
का खतरा बढ़ता है |
३) जमीन पर कुछ बिछाकर सुखासन में बैठकर ही भोजन
करें | इस आसन में मूलाधार चक्र सक्रिय होने से जठराग्नि प्रदीप्त रहती है |
कुर्सी पर बैठकर भोजन करने से पाचनशक्ति कमजोर तथा खड़े होकर भोजन करने से तो
बिल्कुल नहीवत हो जाती है | इसलिए ‘बुफे डिनर’ से बचना चाहिए |
४) भोजन से पूर्व प्रार्थना करें, मंत्र बोले या
गीता के पंद्रहवे अध्याय का पाठ करें | इससे भोजन भगवतप्रसाद बन जाता है | मंत्र :
हरिर्दाता हरिर्भोक्ता हरिरन्नं प्रजापति: |
हरि: सर्वशरीरस्थो भुंक्ते भोजयते हरि: ||
५)
भोजन के तुरंत बाद पानी न पिये, अन्यथा जठराग्नि मंद पद जाती है और पाचन थी से
नहीं हो पाता | अत: डेढ़-दो घंटे बाद ही पानी पिये | फ्रिज का ठंडा पानी कभी न पिये
|
६)
पानी हमेशा बैठकर तथा घूँट-घूँट करके मुँह में घुमा-घुमा के पिये | इससे अधिक मात्रा
में लार पेट में जाती है, जो पेट के अम्ल के साथ संतुलन बनाकर दर्द, चक्कर आना,
सुबह का सिरदर्द आदि तकलीफें दूर करती है |
७)
भोजन के बाद १० मिनट वज्रासन में बैठे | इससे भोजन जल्दी पचता है |
८)
पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का लाभ लेने हेतु सिर पूर्व या दक्षिण दिशा में करके ही
सोये; अन्यथा अनिद्रा जैसी तकलीफें होती है |
९)
शरीर की जैविक घड़ी को ठीक ढंग से चलाने हेतु रात्री को बत्ती बंद करके सोये | इस
संदर्भ में हुये शोष चौकानेवाले है | नॉर्थ कैरोलिना युनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ.
अजीज के अनुसार देर रात तक कार्य या अध्ययन करने से और बत्ती चालू रख के सोने से
जैविक घड़ी निष्क्रिय होकर भयंकर स्वास्थ्य-सबंधी हानियाँ होती है | अँधेरे में
सोने से यह जैविक घड़ी सही ढंग से चलती है |
आजकल
पाये जानेवाले अधिकांश रोगों का कारण अस्त-व्यस्त दिनचर्या व विपरीत आहार ही है |
हम अपनी दिनचर्या शरीर की जैविक घड़ी के अनुरूप बनाये रखें तो शरीर के विभिन्न अंगो
की सक्रियता का हमे अनायास ही लाभ मिलेगा | इस प्रकार थोड़ी-सी सजगता हमें स्वस्थ
जीवन की प्राप्ति करा देगी |
Healthy life-style based on the
biological clock of the body
Sages,
rishis and masters of Ayurveda have recommended ideal food habits and mode of
living for health. Modern medical scientists have strongly supported them with
their research works.
There
are about 60 trillion-100 trillion cells in a human body and over one trillion
biochemical reactions per second. Our life is controlled by a super intelligent
body/mind. Our conscious mind gives instructions to activate each system of the
body at the right time. One of the pineal gland’s most powerful hormones is
melatonin. The secretion of melatonin follows a regular 24 – hour rhythm. The
brain synthesizes another important neurotransmitter serotonin which relates to
our state of well being. The increasing and decreasing levels of melatonin and
serotonin indicate to the cells whether it is dark or light outside and whether
they should be more active or slow down their activities. The health of each
cell in the body depends, therefore, on the degree to which we allow the body
to be in synchrony and harmony with the cycle of day and night. Any deviation
from the circadian rhythm causes abnormal secretion of melatonin and serotonin.
This hormonal imbalance, inturn, leads to erratic biological rhythms, which subsequently
disrupt the harmonious functioning of the entire organism, including metabolism
and hormonal balance. Suddenly we become susceptible to a developing an illness
which could include a simple head cold, headache, depression or even a
cancerous tumour which cannot be cured by only medicines. And if we plan our
daily routine, food & sleep habits not disregarding this cycle, we cannot
only prevent various ailments but also boost our health and promote longevity.
Other health problems can result from a disturbance to the circadian rhythm
include seasonal affective disorder, delayed sleep phase syndrome, bipolar
disorder, uremia, azotemia, acute renal failure, depression, obesity, heart
diseases etc. Those who take food at appropriate hours end up developing a
higher portion of fat and gaining more weight, even though they eat less food
than their counterparts who take food at appropriate hours. Their weight gain
is related to increased risk of developing diabetes and cardiovascular diseases
as a result of obesity. Their study confirms that it is not only what you
eat and how much you eat that is important for a healthy lifestyle, but when
you eat and when you sleep is also very important.
Daily
routine in accordance with activity of organs
3:00 am – 5:00 am : The
period of two hours before sunrise is known as Brahmanuhurta. At this
time the lungs are much active. One should drink some luke-warm water and take
a stroll in the open air. Deep breathing during this time increases the
efficiency of lungs. Abundant supply of oxygen and negatively charged ions
present in the air impart health & agility to the body. The people who wake
up during Brahmamuhurta become energetic and intelligent and the others
who sleep during this period become dull and lethargic.
5:00 am – 7:00 am :
During this period
the large intestines are much active. This is the right time for the evacuation
of bowels. Those who sleep during this period, do not go to the lavatory, their
large intestines absorb fluid and harden the stools. It causes constipation and
many other related diseases. So, one should use this period for the excretion
of faces.
7:00 am – 9:00 am – 11:00 am : During
the period between 7:00 am and 9:00 am the stomach is much active, and in the
next two hours the pancreas and spleen are much active. During this period, the
digestive juices are secreted. So this is the best time for meals. Japa of
seed-mantra ‘ram-ram-ram…’ stimulates the digestive fire. Sip luke-warm
water in between the meals at certain intervals.
“Short
term memory” is in the best condition. This time is also good for instant
memory activities. Concentration and logical thinking is at the highest level.
These are the most appropriate hours for intense working.
11:00 am – 1:00 pm :
The life force
predominantly flows to heart during this time. Our culture ordains the
performance of ‘Mid-day Sandhya’
around 12:00 pm so as to develop various sentiments of heart such as kindness,
compassion, love, etc. What a far-sightedness of our majestic culture indeed!
1:00 pm – 3:00 pm:
The small intestine
is much active during this time. Its function is to assimilate the nutrients
from the digested food, and to propel the waste material towards the large
intestine. It is the right time to drink water i.e. two hours after the meals
so as to help small intestines push the contents towards the large intestine.
Intake of food during this time or to have a siesta obstructs the process of
food-assimilation which in turn causes ailments and debility.
3:00 pm – 5:00 pm : Urinary bladder is especially much
active during this period. Its function is storage and excretion of urine.
Evacuation of urinary bladder during this period is quite beneficial for
health. If water is taken before two hours it will cause excretion of urine at
this time.
5:00 pm – 7:00 pm
: During this time
the life force flows predominantly towards kidneys. The food taken in the
morning is digested by this time. Therefore सायं भुक्त्वा लघु
हितं.... (अष्टांगसंग्रह) ‘one should take
some light food during this evening period…(Ashtanga Sangraha). It is best to
take food about 40 minutes before the sunset. Avoid taking food 10 minutes
before or after the sunset. न संध्ययों: भूत्र्जीत | (सुश्रीत संहिता)
One should not eat anything during dawn and dusk hour. न अति सायं अन्नं
अश्नीयात् | (अष्टांगसंग्रह) Intake of food very
late night is prohibited. Food taken during late night makes one lethargic and
this is experienced by all.
One can take milk
two hours before the morning meals & three hours after the evening meals.
7:00 pm –
9:00 pm : The activity of brain increases at this
time. So anything memorized during this period is duly retained by the mind.
Recent research has amply substantiated this fact. The practice of lighting
sacred lamp before the Lord, reciting hymns ‘Deepa jyoti Param Bramha’ …
etc. and engaging oneself in self-study before going to sleep have been an
integral part of out culture.
9:00 pm –
11:00 pm: At this time the life force flows selectively
towards the spinal cord. During this hour lying down in supine position or on
the left side of the body helps in making much energy available to the spinal
cord. Sleep during this period helps in imparting maximum rest to the mind
and the body whereas waking depletes the energy of the body and the mind. That
lead to fatigue.
At 9:00 pm the organs of digestive system lie
in dormancy. Therefore the food taken after this time doesn’t get digested and
remains as such in the stomach. Its rotting churns out harmful fluids which
along with acids reach the intestines and cause several stomach related
ailments. Therefore it is dangerous to eat at this time.
11:00 pm
– 1:00 pm : The life force during this time is active
in the gall bladder. Storage of bile secretion is the chief function of the
gall-bladder. Keeping awake during this time aggravates pitta humour which
causes various ailments such as insomnia, headache, biliary disorders, and
disease of eyes.
After midnight, the
nutrition which we get at dinner is used for restoration of the cells. Hairs
grow and the cells renew themselves. All tissues which wear out during day
renew during sleep. Missing the opportunity of renewal means to get older a
little bit.
Keeping oneself
awake beyond midnight brings premature oldage.
1:00 am –
3:00 am : Now the liver is much active due to life
force diverted to it. After absorption from small intestine, glucose is
processed in the liver, which stores some as glycogen and passes the rest in
the blood stream. The body requires deep sleep during this time. If one does
not sleep during this time one’s digestion is impaired.
Those who work
still at tht time make mistakes because the body adopts itself to sleeping.
Eyesight gets weak, reactions slow down. Thus, traffic accidents take place a
lot at that time.
Pay special
attention to the following points:
1) Our
sages and masters of Ayurveda have prohibited the intake of food when one is
not hungry. So the quantity of food in the morning & evening should be such
that one feels hungry at the above mentioned times.
2) Eating
anything between dinner and breakfast causes disruption in the body’s circadian
rhythm associated with increased risks of developing obesity, diabetes, high
blood pressure, heart disease, mental stress, depression, etc.
3) Always
spread some cloth on the floor and sit upon it in squatting posture
(Sukhaasana) for taking meals. This posture activates the Root Chakra
(Mooladhaar Chakra) which stimulates the digestive fire. Taking food while
sitting in chair makes the digestive fire mild. And in the standing posture one
usually eats more food because one does not feel satisfied at proper time. It
leads to indigestion.
4) It
is advisable to pray before taking food. Recite the mantra given below or read
the fifteenth chapter of “Bhagavad Geeta.” This purifies the food and
turns it into ‘Prasadam’ given by God.
हरिर्दाता
हरिर्भोक्ता हरिरन्नं प्रजापति: |
हरि: सर्वशरीरस्थो
भुंक्ते भोजयते हरि: ||
“Oh Lord Hari, You
are the food, You are the enjoyer of the food, You are the
giver
of the food. Therefore I offer all that I consume at Your Lotus Feet”.
5) Don’t
drink water soon after taking a meal as it makes the digestive fire mild which
impairs digestion. So drink water one and a half hour after the meals. Never
drink cold water from the refrigerator.
6) Always
drink water in sitting posture. It is advisable to sip it. Circulate the
draught of water in your mouth before swallowing it. It adds much saliva which
helps in digestion, and prevention of giddiness, pain especially headache
during morning hours, etc. by balancing the digestive juices.
7) Sit
in the posture of “Vairaasana” for about 10 minutes after taking a meal.
It facilitates digestion of food.
8) To
avail the beneficial effect of the earth’s magnetic field always keep your head
towards the east or the north when you sleep otherwise you may face ailments
like insomnia, etc.
9) Warner
suggest that parents diminish the light and turn off the computer and TV an
hour before sleeping to cope with the sleeping problems of youngsters at least.
Prof. Dr.Aziz Sancar from North Carolina University in USA says that work or
study at nights and sleeping while the lights on, leaving the biological clock
of the body deactivated may lead to serious health problems. He says that
switching off the lights while sleeping is necessary for healthy functioning of
the biological clock of the body and adds that for people who are afraid of
darkness it is more appropriate to use red light as a night light. Leaving the
TV on while sleeping causes you wake up without relaxation and for your
biological clock to become confused.
Living
against our biological clock by following irregular life style, working late
night shifts or eating at inappropriate times has been linked to health risks.
It causes majority of the modern diseases. If we strive to maintain our daily
routine in accordance with the biological clock of our body, we can derive
benefits of periods when different organs are active. Thus a little awareness
will help us enjoy sound health.
Listen Audio
- Pujya Bapuji Nashik 11th March/Rishi Prasad Mar' 2013