आचार्य चरक कहते हैं कि गर्भिणी के आहार का आयोजन तीन बातों
को ध्यान में रखते हुए करना चाहिए – गर्भवती के शरीर का पोषण, स्तन्यनिर्मिती की
तैयारी व गर्भ की वृद्धि | माता यदि सात्त्विक, संतुलित, पथ्यकर एवं सुपाच्य आहार
का विचारपूर्वक सेवन करती है तो बालक सहज ही हृष्ट-पुष्ट होता है | प्रसव भी ठीक
समय पर सुखपूर्वक होता है |
अत: गर्भिणी रुचिकर, सुपाच्य, मधुर रसयुक्त, चिकनाईयुक्त
एवं जठराग्नि प्रदीपक आहार लें |
पानी – सगर्भा स्त्री पतिदिन आवश्यकता के अनुसार पानी पिये परन्तु
मात्रा इतनी अधिक ण हो कि जठराग्नि मंद हो जाय | पानी को १५-२० मिनट उबालकर ही
लेना चाहिये | सम्भव हो तो पानी उबालते समय उसमें उशीर (सुंगधीबाला ), चंदन,
नागरमोथ आदि डालें तथा शुद्ध चाँदी या सोने (२४ कैरेट) का सिक्का या गहना साफ़ करके
डाला जा सकता है |
दूध – दूध ताजा व शुद्ध होना चाहिये | फ्रीज का ठंडा दूध योग्य
नहीं हैं | यदि दूध पचता न हो या वायु होती हो तो २०० मि.ली. दूध में १०० मि.ली.
पानी के साथ १० नग वायविडंग व १ से.मी. लम्बा सौंठ का टुकड़ा कूटकर डालें व उबालें
| भूख लगनेपर एक दिन में १-२ बार लें सकते हैं | नमक, खटाई, फलों और दूध के बीच २
घंटे का अंतर रखें |
छाछ – सगर्भावस्था के अंतिम तीन-चार मासों में मस्से या पाँव पर
सूजन आने की सम्भावना होने से मक्खन निकाली हुई एक कटोरी ताज़ी छाछ दोपहर के भोजन
में नियमित लिया करें |
घी – आयुर्वेद ने घी को अमृत सदृश बताया है | अत: प्रतिदिन १-२
चम्मच घी पाचनशक्ति के अनुसार सुबह-शाम लें |
दाल – घी का छौंक लगा के नींबू का रस डालकर एक कटोरी दाल रोज
सुबह के भोजन में लेनी चाहिये, इससे प्रोटीन प्राप्त होते है | दालों में मूंग
सर्वश्रेष्ठ है | अरहर भी ठीक है | कभी-कभी राजमा, चना, चौलाई, मसूर कम मात्रा में
लें | सोयाबीन पचने में भारी होने से न लें तो अच्छा है |
सब्जियाँ - लौकी, गाजर, करेला, भिन्डी, पेठा, तोरई, हरा
ताजा मटर तह सहजन बथुआ, सुआ, पुदीना आदि हरे पत्तेवाली सब्जियाँ रोज लेनी चाहिये |
‘भावप्रकाश निघुंट’ ग्रन्थ के अनुसार सुपाच्य, ह्र्द्यपोषक, वाट-पित्त का संतुलन
करनेवाली, वीर्यवर्धक एवं सप्तधातु पोषक ताज़ी, मुलायम लौकी की सब्जी, कचूमर
(सलाद), सूप या हलवा बनाकर रूचि अनुसार उपयोग करें |
शरीर में रक्तधातू लौह तत्त्व पर निर्भर होने से लौहवर्धक
काले अंगूर, किशमिश, काले खजूर, चुकन्दर, अनार, आँवला, सेब, पुराना देशी गुड़ एवं
पालक, मेथी हरा धनिया जैसी शुद्ध व ताज़ी पत्तोंवाली सब्जियाँ लें | लौह तत्त्व के
आसानी से पाचन के लिये विटामिन ‘सी’ की आवश्यकता होती है, अत: सब्जी में नींबू
निचोड़कर सेवन करें | खाना बनाने के लिये लोहे की कढाई, पतीली व तवे का प्रयोग करे
|
फल - हरे नारियल का पानी
नियमितसे गर्भोदक जल की उचित मात्रा बनी रहने में मदद मिलती है | मीठा आम उत्तम
पोषक फल हैं, अत: उसका उचित मात्र में सेवन करे | वर, कैथ, अनन्नास, स्ट्राँबेरी,
लीची आदि फल ज्यादा न खायें | चीकू, रामफल, सीताफल, अमरुद, तरबूज, कभी-कभी खा सकती
हैं | पपीते का सेवन कदापि ण करें | कोई भी फल काटकर तुरंत खा लें | फल सूर्यास्त
के बाद न खाये |
गर्भिणी निम्न रूप से भोजन का नियोजन करे :
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सुबह – ७ – ७.३० बजे नाश्ते में रात के भिगोये हुए १-२
बादाम, १-२ अंजीर व ७-८ मुनक्के अच्छे-से चबाकर खाये |
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साथ में पंचामृत पाचनशक्ति के अनुसार ले | वैद्यकीय
सलाहानुसार आश्रमनिर्मित शक्तिवर्धक योग – सुवर्णप्राश, रजतमालती, च्यवनप्राश आदि
ले सकती हैं |
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सुबह ९ से ११ के बीच तथा शाम को ५ से ७ ले बीच
प्रकृति-अनुरूप ताजा , गर्म, सात्त्विक, पोषक एवं सुपाच्य भोजन करें |
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भोजनसे पूर्व हाथ-पैर धोकर पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके
सीधे बैठकर ‘गीता’ के १५ वे अध्याय का पाठ करे और भावना करे कि ‘ह्रदयस्थ प्रभु को
भोजन करा रही हूँ |’ पाँच प्राणों को नीचे दिये मंत्रसहित मानसिक आहुतियाँ देकर
भोजन करना चाहिये |
ॐ प्राणाय स्वाहा |
ॐ अपानाय स्वाहा |
ॐ व्यानाय स्वाहा |
ॐ उदानाय स्वाहा |
ॐ समानाय स्वाहा |
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ऋषिप्रसाद अक्टूबर २०१४ से
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nice blog
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