लाभ : इसका गुण भी गुप्त है और इसमें दोनों पैरों को छिपाकर बैठा जाता है | यह ऐसा आसन हैं जिसके द्वारा सूक्ष्म-से-सूक्ष्म नाड़ियों पर सूक्ष्म प्रभाव पड़े बिना नहीं रहता | यह गुप्तासन स्त्री, पुरुष, योगी, भोगी और चंचल चित्तवाले – सभी को लाभ पहुँचाता है |
इस आसन के अभ्यास से स्वप्नदोष दूर होता हैं | वीर्यदोष तथा वीर्य की चंचलता दूर होती है तथा अखंड ब्रह्मचर्य की सिद्धि होती है | यह मूत्र-संबंधी बीमरियों के लिये परम उपयोगी हैं | इसके अभ्यास से चित्राख्या नाड़ी पर सीधा प्रभाव पड़ता हैं, जिससे जननेंद्रिय में भलीभाँति रक्त का संचार होने लगता है | गुदा और जननेंद्रिय संबंधित बहुत-सी बीमारियाँ इसके अभ्यास से ठीक हो जाती है | गुप्तासन को उड्डीयान और मूल बंध के साथ करने से कुंडलिनी शक्ति अतिशीघ्र जागृत होती है |
विधि – जमीन पर बैठकर बायें पैर को इसप्रकार रखें कि एड़ी ऊपर की तरफ गुदा से लग जाय | तत्पश्चात नितम्बों को ऊपर उठाकर दायें पैर को बायें पैर की पिंडली और जंघा के बीच में इसप्रकार छिपायें कि पंजे का हिस्सा बाहर न हो | बायें पैर का पंजा दायें पैर के नीचे छिपा हो | तत्पश्चात दोनों हाथों को घुटनों पर रखते हुए कमर के ऊपरी भाग को बिल्कुल सीधा रखे | ध्यान रखें कि दायें पैर की एड़ी का हिस्सा गुदा के साथ-साथ सिवनी नाड़ी को भी पूर्णतया दबाता रहे अर्थात गुदा के पास से बिल्कुल उठने न पाये |
इस आसन के अभ्यास से स्वप्नदोष दूर होता हैं | वीर्यदोष तथा वीर्य की चंचलता दूर होती है तथा अखंड ब्रह्मचर्य की सिद्धि होती है | यह मूत्र-संबंधी बीमरियों के लिये परम उपयोगी हैं | इसके अभ्यास से चित्राख्या नाड़ी पर सीधा प्रभाव पड़ता हैं, जिससे जननेंद्रिय में भलीभाँति रक्त का संचार होने लगता है | गुदा और जननेंद्रिय संबंधित बहुत-सी बीमारियाँ इसके अभ्यास से ठीक हो जाती है | गुप्तासन को उड्डीयान और मूल बंध के साथ करने से कुंडलिनी शक्ति अतिशीघ्र जागृत होती है |
विधि – जमीन पर बैठकर बायें पैर को इसप्रकार रखें कि एड़ी ऊपर की तरफ गुदा से लग जाय | तत्पश्चात नितम्बों को ऊपर उठाकर दायें पैर को बायें पैर की पिंडली और जंघा के बीच में इसप्रकार छिपायें कि पंजे का हिस्सा बाहर न हो | बायें पैर का पंजा दायें पैर के नीचे छिपा हो | तत्पश्चात दोनों हाथों को घुटनों पर रखते हुए कमर के ऊपरी भाग को बिल्कुल सीधा रखे | ध्यान रखें कि दायें पैर की एड़ी का हिस्सा गुदा के साथ-साथ सिवनी नाड़ी को भी पूर्णतया दबाता रहे अर्थात गुदा के पास से बिल्कुल उठने न पाये |
- ऋषिप्रसाद – नवम्बर- २०१४ से
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