लाभ : १) रक्तवाहिनी नाड़ियाँ और आँतें शुद्ध
एवं बलवान हो जाती हैं |
२) चर्मरोग तथा नाक, कान, मुख, नेत्र आदि के
विकार दूर होते हैं |
३) पीठ और कमर लचीली हो जाती है और भूख अच्छी
लगती है |
विधि : भूमि पर पीठ के बल लेट जायें | अब
दोनों पैरों को ऊपर उठाकर पीछे की और ले जा के हलासन के समान आकृति बनायें | फिर
जहाँ तक हो सके पैरों को दायें – बायें फैला दें | दोनों हाथों को भी दायें –
बायें फैला दें | दोनों भुजाएँ भूमि से सटी रहें | जितना अंतर दोनों पैरों में हो,
उतना ही अंतर दोनों हाथों में भी होना आवश्यक है |
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स्त्रोत – ऋषिप्रसाद – जून
२०१६ से
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