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Sunday, August 14, 2016

त्रिकाल संध्या

बर्लिन ( जर्मन ) विश्वविद्यालय में अनुसंधान से सिद्ध हुआ कि – २७ घन फीट प्रति सेकंड वायुशक्ति से शंख बजाने से २२०० घन फीट वायु के हानिकारक जीवाणु नष्ट हो जाते हैं और उससे आगे की ४०० घन फीट वायु के हानिकारक जीवाणु मुर्च्छित हो जाते हैं | तो शंखनाद, धूप-दीप और भगवान का जप-ध्यान संध्या की वेला में करना चाहिए | इससे अनर्थ से बचकर सार्थक जीवन, सार्थक शक्ति और सार्थक मति – गति प्राप्त होती है |  

त्रिकाल संध्या की महता बताते हुए पूज्य बापूजी कहते हैं : “ जीवन को यदि तेजस्वी, सफल और उन्नत बनाना हो तो मनुष्य को त्रिकाल संध्या जरुर करनी चाहिए | प्रात:काल सूर्योदय से दस मिनट पहले से दस मिनट बाद तक, दोपहर को १२ बजे के दस मिनट पहले से दस मिनट बाद तक तथा सायंकाल को सूर्यास्त के दस मिनट पहले से दस मिनट बाद तक – ये समय संधि के होते हैं | इस समय किये हुए प्राणायाम, जप और ध्यान बहुत लाभदायक होते हैं | ये सुषुम्ना के द्वार को खोलने में सहयोगी होते हैं | सुषुम्ना का द्वार खुलते ही मनुष्य की छुपी हुई शक्तियाँ जागृत होने लगती हैं | जैसे स्वास्थ्य के लिए हम रोज स्नान करते हैं, नींद करते हैं, ऐसे ही मानसिक, बौद्धिक स्वस्थता के लिए संध्या होती है |”

संध्या के समय क्या करें ?

संध्यावंदन की महत्ता बताते हुए पूज्यश्री कहते हैं : “ संध्या के समय ध्यान-भजन करके अपनी सार्थक शक्ति जगानी चाहिए, सत्त्वगुण बढ़ाना चाहिए, दूसरा कोई काम नहीं करना चाहिए | अपने भाग्य की रेखाएँ बदलनी हों, अपनी ७२,००,००,००१ नाड़ियों की शुद्धि करनी हो और अपने मन-बुद्धि को मधुमय करना हो तो १० से १५ मिनट चाहे सुबह की संध्या, दोपहर की संध्या, शाम की संध्या अथवा दोनों, तीनों समय की संध्या विद्युत् का कुचालक आसन बिछाकर करें | यदि संध्या का समय बीत जाय तो भी संध्या ( ध्यान - भजन ) करनी चाहिए, वही भी हितकारी है |

संध्या के समय वर्जित कार्य

संध्या के समय निषिद्ध कर्मों से सावधान करते हुए पूज्य बापूजी कहते हैं :  संध्या के समय व्यवहार में चंचल नहीं होना चाहिए, भोजन आदि खानपान नहीं करना चाहिए और संध्या के समय बड़े निर्णय नहीं लेने चाहिए | पठन – पाठन, शयन नहीं करना चाहिए तथा खराब स्थानों में घूमना नहीं चाहिए | संध्या के समय स्नान न करें | स्त्री का सहवास न करें |

संध्याकाल अथवा प्रदोषकाल ( सूर्यास्त का समय ) में भोजन से शरीर में व्याधियाँ तथा श्मशान आदि खराब स्थानों में घूमने से भय उत्पन्न होता है | दिन में एवं संध्या के समय शयन आयु को क्षीण करता हैं | पठन – पाठन करने से वैदिक ज्ञान और आयु का नाश होता है |      


स्त्रोत : ऋषिप्रसाद – अगस्त २०१६ से 

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