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Thursday, August 25, 2016

स्वास्थ्य – हितकारी सब्जी – तोरई ( गिल्की )

तोरई (गिल्की) स्वादिष्ट, पथ्यकर व औषधीय गुणों से युक्त सब्जी है | आयुर्वेद के अनुसार यह स्वाद में मीठी, स्निग्ध, ठंडी (शीत), पचने में थोड़ी भारी होती है | यह पित्त – विकृति को दूर करती है | उष्ण प्रकुतिवालों के लिए एवं पित्तजन्य व्याधियों तथा सूजाक (गनोरिया), बवासीर, रक्तमूत्र, रक्तपित्त, खाँसी, बुखार, कृमि आदि में विशेष पथ्यकर है |

तोरई में जस्ता (जिंक), लौह तत्त्व, मैग्नेशियम, थायमीन और रेशे (फाइबर) प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं | तोरई के बीजों का तेल कुष्ठ और त्वचा के विविध रोगों में लाभदायी है |


तोरई की सब्जी          
तोरई की सब्जी भोजन में रूचि उत्पन्न करती है | स्निग्ध व ठंडी होने के कारण तोरई शरीर में तरावट लाती है | इसकी सब्जी को सुपाच्य व अधिक स्वादिष्ट बनाने के लिए नींबू का रस और काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर खाना चाहिए |

तोरई के लाभ  
१] बालक व श्रमजीवियों को शक्ति देती है |

२] शुक्र धातु की क्षीणता से आनेवाली शारीरिक व मानसिक दुर्बलता व चिड़चिड़ापन दूर करने के लिए तोरई की सब्जी, सूप अथवा तोरई डालकर बनायी गयी दाल का एक हफ्ते तक सेवन करने से लाभ होता है |

३] सुखी खाँसी में जब कफ न छूट रहा हो तब इसका सेवन करने से कफ निष्कासित होकर खाँसी में राहत मिलती है |

४] मूत्र-विकार व पेशाब की जलन दूर होती है | मूत्र खुलकर आता है |

५] बवासीर की तकलीफ में तोरई की सब्जी खाने तथा तोरई के ताजे पत्ते पीसकर मस्सों पर लगाने से लाभ होता है |

६] वजन कम करने व मधुमेह में काफी फायदेमंद होती है | तोरई का रस पीलिया में हितकारी है |

७] रक्त को शुद्ध करती है | मुँहासे, एक्जिमा, सोरायसिस और अन्य त्वचासंबंधी रोगों में पथ्य के रूप में फायदेमंद है |

८] नेत्रज्योति बढ़ाती है | अम्लपित्त में खूब लाभदायी है |

९] कब्ज की शिकायत में शाम के भोजन में इसका उपयोग करना हितकर है | इसके लिए  सब्जी रसदार बनानी चाहिए |

१०] बुखार में तोरई का सूप शक्ति व तरावट देता है |

११] जिन्हें बार – बार कृमि हो जाते हों, वे हफ्ते में २ – ३ बार तोरई की सूखी सब्जी खायें |

सावधानी : वर्षा ऋतू में इसका प्रयोग कम मात्रा में करें | पेचिश, मंदाग्नि, बार – बार मलप्रवृत्ति की समस्या में इसका सेवन नहीं करना चाहिए |


स्त्रोत - लोककल्याण सेतु – अगस्त २०१६ से 

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