शरद ऋतू (२२ अगस्त से
२१ अक्टूबर तक) में पित्त कुपित व जठराग्नि मंद रहती है, जिससे पित्त-प्रकोपजन्य
अनेक व्याधियाँ उत्पन्न होने की सम्भावना रहती है | इनके शमन के लिए कुछ घरेलू उपचार
दिये जा रहे हैं |
उलटी : पित्त – प्रकोप से
होनेवाली मिचली या उलटी में आँवला रस में शहद मिला के चटायें |
पित्तजनित सिरदर्द :
आँवले के चूर्ण में घी व मिश्री मिलाकर लें अथवा ताजे आँवलों के रस में मिश्री
मिला के लें | ( सिरदर्द के साथ जी मिचलाना, जलन आदि पित्त के कारण होनेवाले
सिरदर्द के लक्षण हैं | )
अम्लपित्त : २ ग्राम
छोटी हरड का चूर्ण शहद अथवा गुड़ में मिला के प्रतिदिन शाम को भोजन के बाद १५ दिन
तक लेना लाभदायी है |
जलन : काली द्राक्ष रात
में भिगोयें | दूसरे दिन सुबह उसे मसल के छान लें | उसमें पिसा जीरा व मिश्री डाल
के पीने से पित्त का दाह मिटता है |
स्त्रोत - लोककल्याण सेतु – अगस्त २०१६ से
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