त्रिकाल संध्या से लाभ –
पूज्य बापूजी त्रिकाल संध्या से होनेवाले लाभों को बताते हुए कहते हैं कि “त्रिकाल संध्या माने ह्र्द्यरुपी घर में तीन
बार साफ-सफाई | इससे बहुत फायदा होता है |
त्रिकाल संध्या करने से –
१] अपमृत्यु आदि से रक्षा होती है और कुल में दुष्ट आत्माएँ, माता-पिता को
सतानेवाली आत्माएँ नहीं आतीं |
२] किसीके सामने हाथ फैलाने का दिन नहीं आता | रोजी – रोटी की चिंता नहीं
सताती |
३] व्यक्ति का चित्त शीघ्र निर्दोष एवं पवित्र हो जाता है | उसका तन तंदुरुस्त
और मन प्रसन्न रहता है तथा उसमें मंद व
तीव्र प्रारब्ध को परिवर्तित करने का सामर्थ्य आ जाता है | वह तरतीव्र प्रारब्ध के
उपभोग में सम एवं प्रसन्न रहता है | उसको दुःख, शोक, ‘हाय-हाय’ या चिंता अधिक नहीं
दबा सकती |
४] त्रिकाल संध्या करनेवाली पुण्यशीला बहनें और पुण्यात्मा भाई अपने कुटुम्बियों
एवं बच्चों को भी तेजस्विता प्रदान कर सकते हैं |
५] त्रिकाल संध्या करनेवाले माता – पिता के बच्चे दूसरे बच्चों की अपेक्षा कुछ
विशेष योग्यतावाले होने की सम्भावना अधिक होती है |
६] चित्त आसक्तियों में अधिक नहीं डूबता | उन भाग्यशालियों के संसार-बंधन ढीले
पड़ने लगते हैं |
७] ईश्वर – प्रसाद पचाने का सामर्थ्य आ जाता है |
८] मन पापों की ओर उन्मुख नहीं होता तथा पुण्यपुंज बढ़ते ही जाते हैं |
९] ह्रदय और फेफड़े स्वच्छ व शुद्ध होने लगते हैं |
१०] ह्रदय में भगवन्नाम, भगवदभाव अनन्य भाव से प्रकट होता है तथा वह साधक सुलभता
से अपने परमेश्वर को, सोऽहम् स्वभाव को,
अपने आत्म-परमात्मरस को यही अनुभव कर लेता
है |
११] जैसे आत्मज्ञानी महापुरुष का चित्त आकाशवत व्यापक होता है, वैसे ही उत्तम
प्रकार से त्रिकाल संध्या और आत्मज्ञान का विचार करनेवाले साधक का चित्त विशाल
होंते – होते सर्वव्यापी चिदाकाशमय होने लगता है |
ऐसे महाभाग्यशाली साधक-साधिकाओं के प्राण लोक – लोकांतर में भटकने नहीं जाते |
उनके प्राण तो समष्टि प्राण में मिल जाते हैं और वे विदेहमुक्त दशा का अनुभव करते
हैं |
१२] जैसे पापी मनुष्य को सर्वत्र अशांति और दुःख ही मिलता है, वैसे ही त्रिकाल
संध्या करनेवाले साधक को सर्वत्र शांति, प्रसन्नता, प्रेम तथा आनंद का अनुभव होता
है |
१३] जैसे सूर्य को रात्रि की मुलाकात नहीं होती, वैसे ही त्रिकाल संध्या
करनेवाले में दुश्चरित्रता टिक नहीं पाती |
१४] जैसे गारुड़ मंत्र से सर्प भाग जाते हैं, वैसे ही गुरुमंत्र से पाप भाग
जाते हैं और त्रिकाल संध्या करनेवाले शिष्य के जन्म-जन्मान्तर के कल्मष, पाप – ताप
जलकर भस्म हो जाते हैं |
आज के युग में हाथ में जल लेकर सूर्यनारायण को अर्घ्य देने से भी अच्छा साधन
मानसिक संध्या करना है | इसलिए जहाँ भी रहें, तीनों समय थोड़े – से जल से आचमन करके
त्रिबंध प्राणायाम करते हुए संध्या आरम्भ कर देनी चाहिए तथा प्राणायाम के दौरान
अपने इष्टमंत्र, गुरुमंत्र का जप करना चाहिए |
१५] त्रिकाल संध्या व त्रिकाल प्राणायाम करने से थोड़े ही सप्ताह में अंत:करण
शुद्ध हो जाता है | प्राणायाम, जप, ध्यान से जिनका अंत:करण शुद्ध हो जाता है
उन्हींको ब्रह्मज्ञान का रंग जल्दी लगता है |
स्रोत – ऋषिप्रसाद – सितम्बर २०१६ से
No comments:
Post a Comment