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Wednesday, September 7, 2016

पाप – ताप मिटाने का सरल उपाय

मुसलमान ५ वक्त की नमाज पढ़ते हैं और हिन्दुओं को ३ समय संध्या करने का विधान है | जब से हिन्दू संध्या भूल गये, तब से बीमारियाँ, अशांति और पातक बढ़ गये | मुसलमान लोग नमाज पढ़ने में इतना विश्वास रखते हैं कि वे चालु दफ्तर में से भी समय निकालकर नमाज पढ़ने चले जाते हैं जबकि हम लोग आज पश्चिम के मैले कल्चर तथा नश्वर संसार की नश्वर वस्तुओं को प्राप्त करने की होड़-दौड़ में संध्या करना बंद कर चुके हैं या भूल चुके हैं | शायद ही २ – ३ प्रतिशत लोग नियमित रूप से संध्या करते होंगे |

त्रिकाल संध्या इसीलिए करवायी जाती थी और लोग करते थे कि सुबह की संध्या में ध्यान, प्राणायाम, जप, आचमन, तर्पण, मुद्राएँ आदि जो किया जाता है वह तन – मन के स्वास्थ्य की रक्षा करता है | रात्रि में अनजाने में हुए दोष सुबह की संध्या से दूर होते हैं | सुबह से दोपहर तक कहीं इधर – उधर मन या तन भटक गया तो वे दोष दोपहर की संध्या से और दोपहर के बाद अनजाने में हुए दोष शाम की संध्या करने से नष्ट हो जाते हैं तथा अंत:करण पवित्र होने लगता है | इसीलिए ऋषि-मुनियों ने त्रिकाल संध्या की व्यवस्था की थी |

आजकल लोग संध्या करना भूल गये हैं जिससे जीवन में तमस बढ़ गया है और कई लोग पदार्थ-संग्रह के, निद्रा के सुख में लगे हैं | ऐसा करके वे अपनी जीवनशक्ति को नष्ट कर डालते हैं |
आप इतना तो अवश्य कर सकते हैं –

आप लोग जहाँ भी रहें, त्रिकाल संध्या के समय हाथ-पैर धोकर तीन चुल्लू पानी पी के ( आचमन करके ) संध्या में बैठे और त्रिबंध प्राणायाम करें | अपने इष्टमंत्र, गुरुमंत्र का जप करें, २ – ५ मिनट शांत होकर फिर श्वासोच्छ्वास की गिनती करें और ध्यान करें तो बहुत अच्छा | त्रिकाल न कर सकें तो द्विकाल संध्या अवश्य करें |

लम्बा श्वास लें और हरिनाम का गुंजन करें | खूब गहरा श्वास लें नाभि तक और भीतर करीब २० सेकंड रोक सकें तो अच्छा है, फिर ओऽऽ....म.... इस प्रकार दीर्घ प्रणव का जप करें | ऐसा १०-१५ मिनट करें | कम समय में जल्दी उपासना सफल हो, जल्दी आनंद उभरे, जल्दी आत्मानंद का रस आये और बाहर का आकर्षण मिटे, यह ऐसा प्रयोग है और कहीं भी कर सकते हो, सबके लिए है, बहुत लाभ होगा | अगर निश्चित समय पर निश्चित जगह पर करो तो अच्छा है, विशेष लाभ होगा | फिर बैठे हैं.....श्वास अंदर गया तो या राम, बाहर आया तो एक..... अंदर गया तो शांति या आनंद, बाहर आया तो दो....श्वास अंदर गया तो आरोग्यता, बाहर गया तो तीन....इस प्रकार अगर ५० की गिनती बिना भूले रोज कर लो तो २ – ४ दिन में ही आपको फर्क महसूस होगा कि ‘हाँ, कुछ तो है |’ अगर ५० की गिनती में मन गलती कर दे तो फिर से शुरू से गिनो | मन को कहो, ’५० तक बिना गलती के गिनेगा तब उठने दूँगा |’ मन कुछ अंश में वश भी होने लगेगा, फिर ६०, ७०.... बढ़ते हुए १०८ तक की गिनती का नियम बना लो | १ मिनट में १३ श्वास चलते हैं तो १०८ की गिनती में १० मिनट भी नहीं चाहिए लेकिन फायदा बहुत होगा | घंटोंभर क्लबों में जाने की जगह ८ - १० मिनट का यह प्रयोग करें तो बहुत ज्यादा लाभ होगा |’

  
स्रोत – ऋषिप्रसाद – सितम्बर २०१६ से 

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