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Wednesday, September 7, 2016

आराधना, उपवास और विश्रांति का सुवर्णकाल – नवरात्रि : १ से १० अक्टूबर

‘श्रीमद देवी भागवत’ के तीसरे स्कंध में महर्षि वेदव्यासजी जनमेजय को नवरात्रों का माहात्म्य बताते हुए कहते हैं :  ६ – ६ मास में नवरात्रि आती है | शारदीय नवरात्र रावण-वध की तिथि के पहले आते हैं और दूसरे नवरात्र आते हैं वसंत ऋतू में रामजी के प्राकट्य के पहले | ये दोनों ऋतुएँ बड़ी क्रूर हैं | ये रोग उत्पन्न करनेवाली हैं | इन दिनों में व्यक्ति अगर नवरात्रि का व्रत और उपवास नहीं करता तो वह आगे चल के बड़ी – बड़ी बीमारियों का शिकार हो सकता है अथवा अभी भी बीमारियों में वह भुन जायेगा | अगर नवरात्रि व्रत रखना है, भगवती की आराधना करता है तो आराधना की पुण्याई व प्रसन्नता से मनोरथ भी पुरे होते हैं और शरीर में जो विजातीय द्रव्य हैं, उपवास और विश्रांति उन रोगकारक द्रव्यों को भस्म कर देती है |

नवरात्रि के उपवास से शरीर के जीर्ण – शीर्ण रोग और लानेवाले कण ये सब नष्ट हो जाते हैं, पाप दूर होते हैं, मन प्रसन्न होता है, बुद्धि का औदार्य व तितिक्षा का गुण बढ़ता है और नारकीय योनियों से छुटकारा मिलता है | ९ दिन के नवरात्रि व्रत या उपवास नहीं रख सकते तो भैया ! ६ दिन, ५ दिन, नहीं तो अंतिम ३ दिन कड़क नियम पालन करते हुए उपवास रखें तो भी ९ दिन के नवरात्रि का फल प्राप्त कर सकते हैं |


स्रोत – ऋषिप्रसाद – सितम्बर २०१६ से

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