आयुर्वेद में ५ प्रकार के धान्यों (अनाजों ) का वर्णन मिलता हैं | उनमें से
पाँचवाँ धान्य है तृण धान्य | तृण धान्यों में कंगुनी, चीना (बारे), सावाँ, कोदो,
गरेहडुआ, तीनी, मँडुआ (रागी), ज्वार आदि का समावेश है |
आयुर्वेद के अनुसार तृण धान्य कसैला व मधुर रसयुक्त, रुक्ष, पचने में हलका,
वजन कम करनेवाला, मल के पतलेपन या चिकनाहट (जो स्वास्थ्यकर नहीं है ) को कम
करनेवाला, कफ-पित्तशामक, वायुकारक एवं रक्त-विकारों में लाभदायी है | कंगुनी
रस-रक्तादि वर्धक है | यह टूटी हुई हड्डियों को जोड़ने तथा प्रसव – पीड़ा को कम करने
में लाभदायी है | मधुमेह में कोदो का सेवन हितकारी है |
पोषक तत्त्वों से भरपूर
पोषण की दृष्टि से मँडुआ, ज्वार आदि तृण धान्य गेहूँ, चावल आदि प्रमुख धान्यों
के समकक्ष होते हैं | इनमें शरीर के लिए आवश्यक कई महत्त्वपूर्ण विटामिन्स तथा कैल्शियम,
फॉस्फोरस, सल्फर, लौह तत्त्व, रेशे (
fibres), प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट भी पाये जाते हैं | तृण
धान्य में पाये जानेवाले आवश्यक एमिनो एसिड मकई में पाये जानेवाले एमिनो एसिड से
अच्छे होते हैं | मँडुआ में कैल्शियम
प्रचुर मात्रा में होता है |तृण धान्यों में रेशे की मात्रा अधिक होने से ये
कब्जियत को दूर रखने तथा खून में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को संतुलित करने में सहायक
हैं | इनमें एंटी ऑक्सीडेंटस भी प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं, जो कैंसर को
रोकते हैं और शरीर के यकृत, गुर्दे (kidneys) आदि अवयवों में
संचित विष को दूर करते हैं | तृण धान्य पाचन-प्रणाली को दुरुस्त रखते हैं और
पाचन-संबंधी गडबडियों को दूर करते हैं |
विविध रोगों में लाभकारी
तृण धान्य मधुमेह (diabetes),
उच्च रक्तचाप (hypertension), अम्लपित्त (huper-acidity), सर्दी, जुकाम, चर्मरोग, ह्रदय एवं रक्तवाहिनियों से संबंधित रोग (coronary
artery disease), चर्बी की गाँठ (lipoma),
पुराने घाव (chronic ulcers), गाँठ (tumour), तथा वजन कम करने आदि में लाभदायी हैं |
तृण धान्यों की रोटी बना के या इन्हें चावल की तरह भी उपयोग कर सकते हैं |
कंगुनी, कुटकी, कोदो, गरहेडुआ आदि के आटे की रोटी बना सकते हैं | इनके आटे में २०
प्रतिशत जौ, गेहूँ या मकई का आटा मिलाना चाहिए | चरबी घटाने में गरहेडुआ की रोटी
खाना लाभकारी है | चावल की तरह बनाने के लिए कुटकी, कंगुनी, चीना इत्यादि को पकाने
के आधा घंटा पहले पानी में भिगो दें तथा कोदो को २ से २.५ घंटे तक पानी में
भिगोयें |
ध्यान दें : वसंत ऋतू व शरद ऋतू में तृण धान्यों का सेवन स्वास्थ्य हेतु
अनुकूल है, अन्य ऋतुओं में नहीं |
सूचना : सामान्य जानकारी हेतु यह वर्णन दिया गया है | व्यक्ति, ऋतू व रोग
विशेष के अनुसार विशेष जानकारी हेतु वैद्कीय सलाह अवश्य लें |
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ऋषिप्रसाद
– सितम्बर २०१८ से
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