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Monday, September 10, 2018

तृण धान्य - स्वास्थ्यहितकारी


आयुर्वेद में ५ प्रकार के धान्यों (अनाजों ) का वर्णन मिलता हैं | उनमें से पाँचवाँ धान्य है तृण धान्य | तृण धान्यों में कंगुनी, चीना (बारे), सावाँ, कोदो, गरेहडुआ, तीनी, मँडुआ (रागी), ज्वार आदि का समावेश है |

आयुर्वेद के अनुसार तृण धान्य कसैला व मधुर रसयुक्त, रुक्ष, पचने में हलका, वजन कम करनेवाला, मल के पतलेपन या चिकनाहट (जो स्वास्थ्यकर नहीं है ) को कम करनेवाला, कफ-पित्तशामक, वायुकारक एवं रक्त-विकारों में लाभदायी है | कंगुनी रस-रक्तादि वर्धक है | यह टूटी हुई हड्डियों को जोड़ने तथा प्रसव – पीड़ा को कम करने में लाभदायी है | मधुमेह में कोदो का सेवन हितकारी है |

पोषक तत्त्वों से भरपूर

पोषण की दृष्टि से मँडुआ, ज्वार आदि तृण धान्य गेहूँ, चावल आदि प्रमुख धान्यों के समकक्ष होते हैं | इनमें शरीर के लिए आवश्यक कई महत्त्वपूर्ण विटामिन्स तथा कैल्शियम, फॉस्फोरस, सल्फर, लौह तत्त्व, रेशे ( fibres), प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट भी पाये जाते हैं | तृण धान्य में पाये जानेवाले आवश्यक एमिनो एसिड मकई में पाये जानेवाले एमिनो एसिड से अच्छे होते हैं |  मँडुआ में कैल्शियम प्रचुर मात्रा में होता है |तृण धान्यों में रेशे की मात्रा अधिक होने से ये कब्जियत को दूर रखने तथा खून में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को संतुलित करने में सहायक हैं | इनमें एंटी ऑक्सीडेंटस भी प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं, जो कैंसर को रोकते हैं और शरीर के यकृत, गुर्दे (kidneys) आदि अवयवों में संचित विष को दूर करते हैं | तृण धान्य पाचन-प्रणाली को दुरुस्त रखते हैं और पाचन-संबंधी गडबडियों को दूर करते हैं |

विविध रोगों में लाभकारी

तृण धान्य मधुमेह (diabetes), उच्च रक्तचाप (hypertension), अम्लपित्त (huper-acidity), सर्दी, जुकाम, चर्मरोग, ह्रदय एवं रक्तवाहिनियों से संबंधित रोग (coronary artery disease), चर्बी की गाँठ (lipoma), पुराने घाव (chronic ulcers), गाँठ (tumour), तथा वजन कम करने आदि में लाभदायी हैं |      
तृण धान्यों की रोटी बना के या इन्हें चावल की तरह भी उपयोग कर सकते हैं | कंगुनी, कुटकी, कोदो, गरहेडुआ आदि के आटे की रोटी बना सकते हैं | इनके आटे में २० प्रतिशत जौ, गेहूँ या मकई का आटा मिलाना चाहिए | चरबी घटाने में गरहेडुआ की रोटी खाना लाभकारी है | चावल की तरह बनाने के लिए कुटकी, कंगुनी, चीना इत्यादि को पकाने के आधा घंटा पहले पानी में भिगो दें तथा कोदो को २ से २.५ घंटे तक पानी में भिगोयें |

ध्यान दें : वसंत ऋतू व शरद ऋतू में तृण धान्यों का सेवन स्वास्थ्य हेतु अनुकूल है, अन्य ऋतुओं में नहीं |

सूचना : सामान्य जानकारी हेतु यह वर्णन दिया गया है | व्यक्ति, ऋतू व रोग विशेष के अनुसार विशेष जानकारी हेतु वैद्कीय सलाह अवश्य लें |

-         ऋषिप्रसाद – सितम्बर २०१८ से

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