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Monday, September 10, 2018

वास्तुशास्त्र के अनुसार ईशान-स्थल की महत्ता


कमरे में पूर्व व उत्तर दिशा के बीचवाले कोने से कमरे की पूर्वी दीवाल की लम्बाई का एक तिहाई भाग व उत्तरी दीवाल की लम्बाई का एक तिहाई भाग लेकर जो आयताकार स्थल बनता है, वह ‘ईशान-स्थल’ कहलाता है | १२ X १८ के कमरे का ईशान-स्थल ४ X ६ का होगा | खुले भूमिखंड के विषय में भी ऐसे ही समझना चाहिए |

सुख-शांतिप्रदायक ईशान-स्थल
सुख-शांति और कल्याण चाहनेवाले बुद्धिमानों को अपने घर, दुकान या कार्यालय में ईशान-स्थल पर अपने इष्टदेव, सदगुरु का श्रीचित्र लगा के वहाँ धूप-दीप, मंत्रोच्चार तथा साधना-ध्यान पूर्व अथवा उत्तर की ओर मुख करके करना चाहिए | यह विशेष सुख-शांतिदायक है |

सुख-समृद्धि में वृद्धि हेतु
भूमिखंड के ईशान कोण तथा पूर्व एवं उत्तर दिशा में खाली भाग अधिक होना चाहिए और इन भागों में अपेक्षाकृत वजन में हलके व कम ऊँचाईवाले पेड़-पौधे लगाने चाहिए | भूमिखंड के ईशान-स्थल में तुलसी, बिल्व व आँवला लगाना सुख-समृद्धिकारक है |

ज्ञानार्जन में सहायता व सत्प्रेरणा हेतु
विद्यार्थियों के लिए भी ईशान कोण बड़े महत्त्व का है | पूर्व एवं उत्तर दिशाएँ ज्ञानवर्धक दिशाएँ तथा ईशान-स्थल ज्ञानवर्धक स्थल है | जो विद्यार्थी ईशान-स्थल पर बैठ के पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके पढ़ता है, उसे ज्ञानार्जन में विशेष सहायता मिलती है | पूर्व की ओर मुख करने से विशेष लाभ होता है | अध्ययन-कक्ष में सदगुरु या ब्रह्मज्ञानी महापुरुषों के श्रीचित्र लगाने चाहिए, इससे सत्प्रेरणा मिलती है |

-          ऋषिप्रसाद – सितम्बर २०१८ से

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