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Wednesday, August 28, 2019

पुण्यदायी तिथियाँ



२ सितम्बर : गणेश/कलंक चतुर्थी ( चन्द्रदर्शन निषिद्ध, चंद्रास्त – रात्रि ९:२६)

९ सितम्बर : पद्मा एकादशी (व्रत करने व माहात्म्य पढने –सुनने से सब पापों से मुक्ति )

१७ सितम्बर : मंगलवारी चतुर्थी ( शाम ४:३३ से १८ सितम्बर सूर्योदय तक ). षडशीति संक्रांति  ( पुण्यकाल: दोपहर १:०४ से सूर्यास्त ) (ध्यान, जप व पुण्यकर्म का ८६,००० गुना फल )

ऋषिप्रसाद – अगस्त २०१९ से   



विघ्न-निवारण व मेधाशक्ति की वृद्धि हेतु


गणेश चतुर्थी के दिन ‘ॐ गं गणपतये नम: |’ का जप करने और गुड़मिश्रित जल से गणेशजी को स्नान कराने एवं दुर्गा व सिंदूर की आहुति देने से विघ्न-निवारण होता है तथा मेधाशक्ति बढती है |

ऋषिप्रसाद – अगस्त २०१९ से

बुद्धिमान, धनवान, धर्मात्मा व दीर्घजीवी संतान हेतु


मनु महाराज कहते हैं कि किसी स्त्री को दीर्घजीवी, यशस्वी, बुद्धिमान, धनवान, संतानवान ( पुत्र-पौत्रादि संतानों से युक्त होनेवाला), सात्त्विक तथा धर्मात्मा पुत्र चाहिए तो श्राद्ध करे और श्राद्ध में पिंडदान के समय बीच का ( पितामह संबंधी) पिंड उठाकर उस स्त्री को खाने को दे दिया | ‘आधत्त पितरो गर्भ कुमारं पुष्करस्त्रजम |’ (पितरो ! आप लोग मेरे गर्भ में कमलों की माला से अलंकृत एक सुंदर कुमार की स्थापना करें |) इस मंत्र को प्रार्थना करते हुए स्त्री पिंड को ग्रहण करे | श्रद्धा-भक्तिपूर्वक यह विधि करने से उपरोक्त गुणोंवाला बच्चा होगा |

(इस प्रयोग हेतु पिंड बनाने के लिए चावल को पकाते समय उसमें दूध और मिश्री भी डाल दें | पानी एवं दूध की मात्रा उतनी ही रखें जिससे उस चावल का पिंड बनाया जा सके | पिंडदान – विधि के समय पिंड को साफ़-सुथरा रखें | उत्तम संतानप्राप्ति के इच्छुक दम्पति आश्रम की समितियों के सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध पुस्तक दिव्य शिशु संस्कार अवश्य पढ़ें |)

ऋषिप्रसाद – अगस्त २०१९ से

पित्त-संबंधी समस्याओं हेतु


१] जिनको पित्तवृद्धि की तकलीफ है वे अगर थोड़ी भी भुखमरी करें तो उनके मणिपुर केंद्र में क्षोम पैदा होता है और पित्त बढ़ता है | स्वभाव में क्रोध, आँखों में जलन आदि समस्याएँ उनको घेर लेती हैं | ऐसे लोग पित्त-शमन के लिए घी व मिश्री मिश्रित भोजन लें व बेल या ताड़ का फल खाकर पानी पियें |    

२] पित्तजन्य व्याधियों मिटाने के लिए २ चम्मच पिसा हुआ धनिया और थोड़ी मिश्री ठंडे पानी में घोलकर पीने से कितना भी बढ़ा हुआ पित्त हो, उसका शमन हो जायेगा |

३] २ – ३ ग्राम तिल का चूर्ण और मिश्री मिलाकर चबा-चबा के खायें | तिल पचने में भारी होते हैं लेकिन पित्तवाले के लिए तिल और मिश्री का मिश्रण चबा के खाना पित्तशामक होता है |

४] पित्त के कारण सिर में दर्द हो तो गाय के शुद्ध घी को गुनगुना करके नस्य लें | इससे पित्त शमन होता है, सिरदर्द गायब हो जायेगा |

५] दही खट्टा न हो और उसमें थोड़ी-सी मिश्री मिली हो तो वह भी पित्तशमन करेगा |


ऋषिप्रसाद – अगस्त २०१९ से

क्या करें, क्या न करें


क्या करें
१] भोजन नियमित समय पर ( सुबह ९ से ११ तथा शाम को ५ से ७ बजे के बीच ), सीमित मात्रा में, पचने में हलका व रुक्ष करें | सलाद व सब्जियों का उपयोग अधिक करें | गेहूँ का उपयोग कम करें, जौ, ज्वार या बाजरे की रोटी लें |
२] प्राणायाम, आसन, तेजी से चलना या दौड़ना, तैरना आदि व शारीरिक श्रम नियमित करें | सप्ताह में एक दिन उपवास जरुर करें |
३] तखत पर पतला बिस्तर बिछाकर सोना, तिल या सरसों के तेल से मालिश करना व सामान्यतया लम्बे-गहरे श्वास लेना लाभकारी हैं |
४]  प्रात:काल गुनगुने पानी में शहद तथा नींबू का रस मिलाकर लें | गर्म-गर्म अन्न, गर्म पानी तथा चावल के माँड का सेवन करें |
५] शहद, आँवला चूर्ण, गोमूत्र अर्क, त्रिफला चूर्ण, शुद्ध शिलाजीत, तथा सोंठ आदि का सेवन हितकारी है |
   [ ये सभी उत्पाद आश्रम की समितियों के सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध हैं |]

क्या न करें
१] पचने में भारी, मधुर व शीतल आहार का सेवन, अधिक मात्रा में भोजन व निद्रा तथा व्यायाम व परिश्रम का अभाव आदि कारणों से शरीर स्थूल होता है | अत: इनसे बचें |
२] दिन में सोना, लगातार बैठे रहना, देर रात को भोजन करना, भोजन में नमक का अधिक प्रयोग, गद्दों पर तथा ए.सी. या कूलर की हवा में सोना, आरामप्रियता आदि का त्याग करें |
३] कार्बोहाइड्रेट की अधिकतावाले पदार्थ जैसे – चावल, शक्कर, गुड़, आलू, शकरकंद व इनसे बने हुए व्यंजन तथा स्निग्ध पदार्थ जैसे –घी, तेल व इनसे बने हुए पदार्थ एवं दही, दूध से बने खोया (मावा), मिठाई आदि व्यंजन और सूखे मेवे व फास्ट फ़ूड के सेवन से बचें |
४] अधिक तनाव भी अति स्थूलता का कारण हो सकता है अत: इससे बचें | इसके लिए सत्संग, ध्यान आदि का आश्रय लें |
५] बार-बार खाने तथा भोजन के बाद तुरंत नींद लेने या स्नान करने से बचें | (अति भुखमरी भी न करें |)

ऋषिप्रसाद – अगस्त २०१९ से

स्वास्थ्यवर्धक एवं पथ्यकर करेला


करेला कड़वा, पित्त व कफ शामक, रक्तशुद्धिकर, मल-निस्सारक एवं मूत्रजनन है | करेले की सब्जी खाने या रस पीने से पाचनशक्ति मजबूत होती है | रक्ताल्पता में इसके रस का सेवन करना हितकारी है | जले हुए स्थान पर इसके रस का लेप करने से जलन शांत होती है | यह अरुचि, भूख की कमी, आमदोष, कृमि, रक्तविकार, खून की कमी, खाँसी, दमा, मासिक धर्म की कमी, मोटापा आदि में लाभदायी है |

सूजन, गठिया, वातरक्त, यकृत व तिल्ली की वृद्धि एवं पुराने चर्मरोग, बुखार, अजीर्ण, मधुमेह, बवासीर, वातरोग, प्रमेह (मूत्र-संबंधी विकारों ), शरीर में दर्द, हाथीपाँव, घेंघा, सूजाक, विसर्प, मुँह व कान के रोग, नेत्रदृष्टि की कमजोरी, कफजन्य रोगों आदि में करेले की सब्जी का सेवन लाभकारी है |

मधुमेह में यह उत्तम कार्य करता है | इससे रक्तगत शर्करा कम होती है तथा सूक्ष्म मल एवं आमदोष का नाश होता है तथा सूक्ष्म मल एवं आमदोष का नाश होता है | यकृत तथा आमाशय की क्रिया सुधरती है तथा अग्न्याशय उत्तेजित होकर इंसुलिन का स्राव बढ़ता है |

आधुनिक अनुसंधानों के अनुसार करेले में विटामिन ए, बी, सी तथा कैल्शियम, फॉस्फोरस, लौह आदि खनिज पाये जाते हैं |

औषधीय प्रयोग
१] संधिवात व गठिया में : करेलों को आग पर भून के भुरता बनाकर दिन में एक बार १०० ग्राम तक यह भुरता खायें | १० दिन तक यह प्रयोग करने से स्नायुगत वात, संधिवात आदि में लाभ होता है | करेले के रस को गर्म करके दर्दवाले स्थान पर प्रतिदिन २ – ३ बार लेप करना भी लाभदायी है |
२] तिल्ली की वृद्धि : १ कप पानी में करेले का २५ मि.ली. रस मिला के दिन में १ – २ बार पीने से तिल्ली का बढ़ना कम हो जाता है |
] अम्लपित्त : करेले के भुरते में सेंधा नमक मिला के भोजन के साथ खाने से अम्लपित्त दूर होता है |
४] मोटापा : करेले के २० – ३० मि.ली. रस में एक नींबू का रस मिला के सुबह सेवन करने से मोटापा कम होता है |
५] मंद बुखार, शरीर में दर्द, भूख न लगना व आँखे भारी होना : करेले के छोटे-छोटे टुकड़े करके रातभर ठंडे पानी में भिगोकर रखें | इस पानी को दिनभर में थोडा-थोडा पिये तो लाभ होता है |
६] मधुमेह : करेलों को काट के कुछ देर तक पैरों से कुचलें | यह प्रयोग मधुमेह में बहुत लाभकारी है | ( प्रयोग – विधि जानने हेतु पढ़ें ऋषिप्रसाद, दिसम्बर २०१८ का पृष्ठ ३२ )

विशेष : प्राय: सब्जी बनाते समय करेले के हरे छिलके व कड़वा रस निकाल दिया जाता है | इससे करेले के गुण बहुत कम हो जाते हैं अत: छिलके उतारे बिना तथा कड़वापन दूर किये बिना सब्जी बनानी चाहिए |
ऋषिप्रसाद – अगस्त २०१९ से

भूल से चन्द्र-दर्शन हो जाय तो ...... गणेश चतुर्थी – २ सितम्बर २०१९


भाद्रपद मास की शुक्ल चतुर्थी को चन्द्र-दर्शन से कलंक लगता है | इस वर्ष गणेश चतुर्थी  (२ सितम्बर ) के दिन चन्द्रास्त रात्रि ९:२६ बजे है | 
अत: इस समय तक चन्द्र-दर्शन न करें | दि भूल से चन्द्रमा दिख जाय तो श्रीमदभागवत के १०वें स्कंध के ५६-५७ वें अध्याय में दी गयी ‘स्यमंतक मणि की चोरी’ की कथा का आदरपूर्वक पठन-श्रवण करें | इससे अच्छी तरह कुप्रभाव मिटता है | 

तृतीया (१ सितम्बर ) तथा पंचमी (३ सितम्बर) के चन्द्रमा का दर्शन कर लें, यह कलंक-निवारण में मददरूप है |

(अधिक जानकारी हेतु आश्रम की समितियों के सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध पुस्तक ‘क्या करें, क्या न करें ?’ का पृष्ठ ४९  देखें |)


ऋषिप्रसाद – अगस्त २०१९ से