सोलह संस्कारों में तीसरा संस्कार होता है सीमन्तोन्नयन | इसका उद्देश्य गर्भपात रोकने के
साथ-साथ गर्भस्थ शिशु व गर्भवती स्त्री की रक्षा करना तथा गर्भवती स्त्री को
मानसिक बल प्रदान करते हुए उसके ह्रदय में प्रसन्नता, उल्लास और सांत्वना उत्पन्न
है और गर्भस्थ शिशु के मस्तिष्क आदि को बलवान बनाना है |
यह संस्कार गर्भावस्था के चौथे, छठे
या आठवें मास में किया जाता है क्योंकि ४
महीने के बाद गर्भस्थ शिशु के अंग – प्रत्यंग प्रकट हो जाते हैं और चेतना –
संस्थान – ह्रदय के निर्माण हो जाने से गर्भ में चेतना का प्राकट्य हो जाता है,
जिससे उसमें इच्छाओं का उदय होने लगता है | वे इच्छाएँ माता के ह्रदय में
प्रतिबिब्मित होकर प्रगट होती है |
सीमन्तोन्नयन संस्कार में गर्भस्थ बालक का पिता मंत्रोच्चारण करते हुए शास्त्रवर्णित
वनस्पतियों द्वारा गर्भिणी पत्नी से सिर की माँग (सीमंत) निकालना आदि क्रियाएँ
करते हुए यह वेद – मंत्र बोलता है :
ॐ येनादिते: सीमानं नयति प्रजाप्तिर्महते सौभगाय |
तेनाहमस्यै सीमानं नयामि प्रजामस्यै जरदष्टिं कृणोमि ||
जिस प्रकार प्रजापति ने देवमाता अदिति का सीमन्तोन्नयन किया था, उसी प्रकार इस
गर्भिणी का सीमन्तोन्नयन करके इसकी संतान को मैं जरावस्था तक दीर्घजीवी करता हूँ |
तत्पश्यात गर्भिणी को यज्ञावशिष्ट पर्याप्त घीयुक्त खिचड़ी खिलाने का विधान है |
अंत में इस संस्कार के समय उपस्थित वृद्ध महिलाएँ गर्भिणी को सौभाग्यवती होने और
उत्तम, स्वस्थ व भगवदभक्त संतानप्राप्ति के आशीर्वाद देती हैं |
पाश्यात्य अन्धानुकरण में पडकर सीमन्तोन्नयन संस्कार के स्थान पर ‘बेबी शॉवर’
नामक पार्टी करके केवल बाह्य मौज-मजा में न कपं बल्कि सनातन संस्कृति के अनुसार
शिशु को दिव्य संस्कारों से संस्कारित करें |
इस समय गर्भस्थ शिशु शिक्षण के योग्य हो जाता है | अत: आचरण – व्यवहार, चिंतन-मनन
शास्त्रानुकूल हो इस बात का गर्भिणी को विशेष ध्यान रखना चाहिए | उसे सत्शात्रों, ब्रह्मवेत्ता
महापुरुषों के जीवन-प्रसंगो व उपदेशों पर आधारित सत्साहित्य का अध्ययन करना चाहिए |
सत्संग-श्रवण, ध्यान, जप आदि नियमित करना चाहिए | घर में ब्रह्मवेत्ता महापुरुषों
के श्रीचित्र अवश्य हों, अश्लील व भयावह तस्वीरें बिल्कुल न लगायें |
लोककल्याणसेतु – अगस्त २०२१ से