आम की गुठली को तोड़कर उसमें निकली गिरी को टुकड़े करके नमक में सेक ले 100 ग्राम लेने से साल भर B12 की कमी नही होगी- पूज्य बापू जी
Tips for an all round Success in Life from His Holiness Saint Shri Asharamji Bapu.
आम की गुठली को तोड़कर उसमें निकली गिरी को टुकड़े करके नमक में सेक ले 100 ग्राम लेने से साल भर B12 की कमी नही होगी- पूज्य बापू जी
सूर्य का प्रवेश मघा_नक्षत्र में हो वर्षा हो तो वर्षा का पानी सोना के समान है।
नेत्र में डालो वह पानी। वह पीने से बच्चों की #किडनी स्वस्थ होगी, बच्चें हष्टपुष्ठ होगे।
भोजन बनाने के काम लाओ तो कहना ही क्या ।
🗓️ 15 अगस्त से 30 अगस्त तक अच्छे बर्तन में (स्टील, तांबा,पीतल कांच के) भर कर रखो। 12 महीने रहेगा तो भी कुछ नहीं होगा जैसे #गंगाजल । माघ का जल जीवन को तृप्त करेगा।
१९ अप्रैल : अंगारकी-मंगलवारी चतुर्थी ( शाम ४:३९ से २० अप्रैल सूर्योदय तक )
२६ अप्रैल : वरूथिनी एकादशी ( सौभाग्य, भोग, मोक्ष प्रदायक व्रत, १०,००० वर्षों की तपस्या के समान फल | माहात्म्य
पढने-सुनने से १००० गोदान का फल )
३ मई : अक्षय तृतीया ( पूरा दिन शुभ मुहूर्त), त्रेता युगादि तिथि (स्नान, दान, जप, तप, हवन आदि का अनंत फल)
८ मई : रविवारी सप्तमी ( सूर्योदय से शाम ५:०१ तक ), रविपुष्यामृत योग ( सूर्योदय से दोपहर २:५८
तक)
१२ मई : मोहिनी एकादशी ( व्रत से अनेक जन्मों के मेरु पर्वत जैसे महापापों का
भी नाश)
१५ मई : विष्णुपदी संक्रांति ( पुण्यकाल: सूर्योदय से दोपहर १२:३५ तक) (ध्यान, जप व पुण्यकर्म का लाख गुना फल)
ऋषिप्रसाद – अप्रैल २०२२ से
घर के ईशान कोण में ज्यादा – से – ज्यादा स्थान खुला रहे और उस स्थान पर एक गमले में तुलसी का पौधा लगाकर रखें | तुलसी के गमले के पास मिटटी के कलश में जल भरकर रखें | इस जल को पीने से शरीर में आरोग्य की वृद्धि होती है और मन में पवित्रता, सात्विकता का संचार होता है |
यदि जल को निहारते हुए पूज्य बापूजी द्वारा बताये गये ‘ ॐ नमो नारायणाय |’ मंत्र का २१ बार जप करके फिर इस जल का पान किया जाय तो यह असाध्य रोगों को भी दूर करने में बहुत मदद करता है |
(औषधि-सेवन से पूर्व
भी इस मंत्र का २१ बार जप विशेष लाभदायी है |) जल में १ – २
तुलसी-पत्ते डालकर जल पीना स्मरणशक्ति और सम्पूर्ण स्वास्थ्य की अनोखी युक्ति है |
ऋषिप्रसाद – अप्रैल २०२२ से
(ग्रीष्म ऋतू : २० अप्रैल से २० जून)
ग्रीष्म ऋतू का प्रारम्भ होते ही असहनीय गर्मी तथा उससे जुडी समस्याओं, जैसे-थकान, शरीर में
तथा पेशाब में जलन, अपच, दस्त, आँख आना,
मूत्र-संक्रमण , चक्कर आना, लू
लगना आदि का प्रादुर्भाव होता है | गर्मी से राहत पाने के लिए लोग आइसक्रीम, फ्रिज का ठंडा पानी, दही, लस्सी, बर्फ, कोल्ड ड्रिंक्स आदि लेना शुरू कर देते है
लेकिन क्या इनसे समस्याओं का हल होता है ? नहीं ... इससे तो वायु
की वृद्धि होती है और पाचनशक्ति व गर्मी सहने की क्षमता कम हो जाती है |
इन दिनों में शरीर का स्नेह अंश कम होने से शारीरिक बल स्वाभाविक कम हो जाता
है, जिससे थकान या कमजोरी महसूस होने लगती है | इसे दूर करने के लिए लोग सूखे मेवे, मिठाइयाँ आदि पचने में भारी चीजों का सेवन करते हैं या
दिन में बार-बार कुछ – न – कुछ खाते रहते हैं | इससे कमजोरी
दूर नहीं होती बल्कि शरीर में अपचित आहार रस ( कच्चा रस) बनकर थकान, कमजोरी व रोग बढ़ जाते हैं | ऐसे में सुंदर उपाय है
सत्तू | देशी गाय का घी, मिश्री व पानी
मिलाकर बनाया जौ का सत्तू स्निग्ध, पौष्टिक व शीघ्र शक्तिदायी
है | नींबू-पुदीने की शिंकजी, गन्ने का
रस, आम का पना एवं बेल, गुलाब, पलाश व कोकम का शरबत, नारियल पानी, घर पर बनायी ठंडाई आदि पेय पदार्थ तथा खरबूजा,
तरबूज, बिना रसायन के पकाये मीठे आम,
मीठे अंगूर, अनार, सेब, संतरा, मोसम्बी, लीची, केला आदि फलों का सेवन लाभदायी है | मुलतानी मिट्टी
या सप्तधान्य उबटन से स्नान करना, मटके का पानी पीना, रात को देशी गाय के दूध में मिश्री मिलाकर पीना स्वास्थ्यप्रद है |
कुछ लोग दही को ठंडी प्रकृति का समझकर इस ऋतू में उसका भरपूर सेवन करते है किंतु
वास्तव में दही गर्म प्रकृति का होता है और साथ ही पचने में भारी भी होता है | अनुचित काल में एवं अनुचित ढंग से दही का
सेवन शरीर के स्त्रोतों में अवरोध कर शरीर में सूजन उत्पन्न करता है इसलिए इस ऋतू
में दही का सेवन करना वर्तमान व भविष्य में गम्भीर रोगों को निमन्त्रण देना है | छाछ पीनी हो तो दही में ८ गुना जल मिला के, मथ के, मिश्री,
धनिया, जीरा चूर्ण मिलाकर अल्प मात्रा में ले सकते हैं | स्वस्थ व्यक्ति कभी-कभी अल्प मात्रा में घर में बनाया गया ताजा श्रीखंड
ले सकते है | ग्रीष्म में साठी के चावल का सेवन उत्तम है |
इस ऋतू में उत्तम स्वास्थ्य के लिए – रात में देर तक जागना, सुबह देर तक सोये रहना, पति-पत्नी का सहवास, धूप का सेवन, अति परिश्रम, अति व्यायाम व अधिक प्राणायाम से बचें
|
ऋषिप्रसाद – अप्रैल २०२२ से
शंख के कुछ स्वास्थ्य – प्रयोग
पूज्य बापूजी शंख के स्वास्थ्य-हितकारी प्रयोग बताते हुए कहते हैं : “कोई
बच्चा तोतला अथवा गूँगा है तो शंख में पानी रख दो | सुबह का रखा हुआ पानी शाम को, शाम का
रखा हुआ पानी सुबह को ५० – ५० मि.ली. उस बच्चे को पिलाओ और उसके गले में छोटा-सा
शंख बाँध दो | १ – २ चुटकी ( ५० से १०० मि.ग्रा. ) शंख भस्म
शहद के साथ सुबह-शाम चटाओ तो वह बच्चा बोलने लग जायेगा | शंख
भस्म अन्य कई रोगों में भी एक प्रभावकारी औषधि है |
गर्भिणी स्त्री शंख का पानी पिये तो उसके कुटुम्ब में २-४ पीढ़ियों तक तोतला –
गूँगा बच्चा नहीं पैदा होगा |
यह हमारे भारत की खोज है, पाश्चत्य विज्ञानियों की खोज नहीं
है | गूँगे और तोतले व्यक्ति को शंख फायदा करता है और
शंख -ध्वनि वातावरण को शुद्ध करती है इतना ही नहीं, दूसरे भी
बहुत सारे फायदे बताये गये हैं | जहाँ लोगों का समूह इकट्ठा
होता है वहाँ शंखनाद पवित्र, सात्विक माना जाता है |”
शंखजल का छिड़काव व पान क्यों ?
शंख में जल भरकर उसे पूजा-स्थान में रखे जाने और पूजा – पाठ, अनुष्ठान होने के बाद श्रद्धालुओं पर उस जल
को छिड़कने का कारण यह है कि इसमें कीटाणुनाशक शक्ति होती है और शंख में जो गंधक, फॉस्फोरस और कैल्शियम की मात्रा होती है उसके अंश भी जल में आ जाते हैं | इसलिए शंख के जल को छिड़कने और पीने से स्वास्थ्य सुधरता है |
भगवान कहते हैं : “जो शंख में जल लेकर ‘ॐ नमो नारायणाय’ मंत्र का उच्चारण करते हुए मुझे
नहलाता है वह सम्पूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है | जो जल
शंख में रखा जाता है वह गंगाजल के समान हो जाता है | तीनों
लोकों में जितने तीर्थ है वे सब मेरी आज्ञा से शंख में निवास करते है इसलिए शंख
श्रेष्ठ माना गया है | जो शंख में फूल,
जल और अक्षत रखकर मुझे अर्घ्य देता है उसे
अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है | जो वैष्णव मेरे मस्तक पर
शख का जल घुमाकर उसे अपने घर में छिडकता है उसके घर में कुछ भी अशुभ नहीं होता |
मृदंग और शंख की ध्वनि तथा प्रणव (ॐकार) के उच्चारण के साथ किया हुआ मेरा पूजन
मनुष्यों को सदैव मोक्ष प्रदान करनेवाला है |” (स्कन्द पुराण, वैष्णव खंड)
ऋषिप्रसाद – अप्रैल २०२२ से
वैशाख मास के अंतिम ३
दिन : १४ से १६ मई
वैशाख मास में कोई तीर्थ का सेवन करता है अथवा प्रभातकाल में ( सूर्योदय के पूर्व) स्नान करता है तो उसके करोड़ो जन्मों के कुसंस्कार और पाप मिट जाते हैं | बड़े-बड़े यज्ञों – अश्वमेध यज्ञ आदि से जो पुण्य प्राप्त होता है वह वैशाख मास के सत्संग, स्नान, दान से प्राप्त हो जाता है |
जिसने एक महिना वैशाख –
स्नान नहीं किया वह महीने के आखिरी ३ दिन ( तेरस, चौदस और
पूनम) अगर प्रभातकाल में स्नान कर लेता है तो भी भगवान उसका पूरा मास स्नान में गिन
लेते हैं | ऐसे उदार परमात्मा को प्रणाम हो !
ऋषिप्रसाद – अप्रैल २०२२ से
१] २ -३ खजूर तथा २० – २५ किशमिश या मनुक्का ३ – ४ बार अच्छी तरह धोकर रात को मिटटी के पात्र में ( मिटटी – पात्र न हो तो स्टील के पात्र में ) २५० मि.ली. पानी में भिगो दें | किशमिश व मनुक्का कभी-कभी गोमूत्र ( या गोमूत्र अर्क) की कुछ बुँदे पानी में डाल के उससे भी धो सकते हैं | सुबह मसलकर १ चम्मच आँवला या नींबू रस, यथावश्यक मिश्री व सैंधव नमक मिला के पियें | यह शरीर की थकान और कमजोरी दूर करके तुरंत शक्ति प्रदान करनेवाला पौष्टिक पेय है |
२] सौंफ व मिश्री समान मात्रा में कूटकर रखें | १ चम्मच मिश्रण शीतल जल या देशी गोदुग्ध में मिला के सुबह-शाम
पियें |यह शीघ्र स्फूर्तिदायक है, साथ
ही मस्तिष्क व नेत्रों की कमजोरी, ह्रदयरोग व रक्तविकारों
में भी लाभकारी है | सौंफ वात-पित्तशामक, कफ – निस्सारक, जलन, प्यास, उलटी, बवासीर, नेत्ररोग आदि
में लाभदायी है | कहा भी गया है :
शीतल जल में डालकर सौंफ गलाओ आप |
मिश्री के संग पान कर मिटे दाह-संताप ||
· जो वाणी का, विचारों का और समय का सदुपयोग करता है वह सत्यस्वरूप को पा लेता है, चित्त के स्फुरणो से ऊपर उठ जाता है |
· आप जो भी काम करते हो, अगर वह ईश्वर के रास्ते जाने के लिए सहयोग देता हैं तो पुण्यकर्म हैं और
ईश्वर से विमुख करता है तो पापकर्म है |
· जिनके पास जपरूपी शस्त्र होता है उनको काल का भय नही रहता, भूत -प्रेत का भय नहीं रहता और ‘मेरा क्या होगा?’ यह चिंता भी नहीं रहती |
· मन में हो भगवान के लिए प्रीति, व्यवहार में हो भगवान के लिए सदभाव और धर्म
एवं इन्द्रियों में हो संयम तो छोटे-से-छोटा व्यक्ति भी साक्षात भगवदरूप हो जायेगा
|
· उत्तम शिष्य हनुमानजी जैसे होते हैं, वे गुरु की सेवा खोज लेते हैं |
· आत्मा को निहारकर अपना बेडा पार कर लो, छोटी-छोटी बातों में कब तक उलझते रहोगे ?
· विषय-विकारों में सुखाभास है, सच्चा सुख तो आत्मा में हैं |
· परमात्मसुख के सिवाय जो भी सुख मिलेगा वह जीव को धोखे में
ही डालता है बेचारा |
· जिनका राग-द्वेष चला गया वे मानो परमेश्वर ही है |
· हमारा लक्ष्य भारतीय संस्कृति की रक्षा करना है, इसकी ऊँचाइयों को छूना है |
· संत-पुरुषों की वाणी, उनके दर्शन, सान्निध्य और उनकी दृष्टी से जीवों के
ह्रदय पवित्र होते हैं |
· जीवन का अंत होने से पहले सच्चिदानंद से आपका तालमेल हो
जाना यह सच्ची उपलब्धि है |
· जब तक जीवत्व है तब तक कर्तव्य है, जब चिदाकाश हो गये तब अंत:करण में कोई
कर्तव्य नहीं रहता |
· जो सतशिष्य है वह मान और मत्सर (ईर्ष्या, द्वेष) से रहित होता है |
· सत्संग के बिना आत्मचिन्तामणि का प्रकाश नहीं होता |
· जब ज्ञानवान पुरुषों की कृपा होती है तब जीवन, वास्तविक जीवन के रास्ते पर चलना शुरू करता
है |
· जिसको जल्दी उन्नति करनी हो वह गुरुओं की दृष्टी में रहे
ताकि अपना मन दगा न दे पाये |
· जो सत्संग करते, करवाते या उसमें साझेदार होते है उनकी ७ – ७ पीढ़ियों का उद्धार होता है |
· सेवा में तत्परता है और स्वार्थ नहीं है, द्वेष नहीं है, राग
नहीं है तो वह कर्मयोग बन जायेगा |
· संकट या विघ्न दिखते भयंकर हैं लेकिन आते है आपके विकास के
लिए, आत्मबल बढाने के लिए |
· सच्चे संतो से समाज विमुख हो जाय तो समाज को शांति, भाईचारा और सदाचार कहाँ से मिलेगा ?
· आप जहाँ हो वहाँ अगर प्रसन्न नहीं हो तो वैकुण्ठ में भी
प्रसन्नता मिलना सम्भव नहीं है |
· श्रद्धा के साथ वेदान्त-ज्ञान होगा तभी आप दूसरों का हित कर
सकते है |
· शुद्ध ज्ञान में जगने के लिए इन्द्रियों को विषय-विकारों के
श्रम से बचाये |
· वे ही दु:खी और विफल होते हैं जो ईश्वरीय सिद्धांत के खिलाफ
काम करते हैं |
· जो किसीकी निंदा करते हैं, सुनते हैं वे अपने साथ अनर्थ करते हैं |
· भगवान का ज्ञान जिनके ह्रदय में हो जाता है उनका ह्रदय दाता
के गुणों से अपने-आप भर जाता है |
· उत्साह,
मनोबल और आनंदबल बढाकर शरीर से काम लेनेवाले सदा जवान रहते है |
· जब तक भक्ति का रंग नहीं लगता तब तक संसार का रंग छूटता
नहीं |
· ईश्वर का रास्ता इतना सुगम है कि जहाँ से तुम चलते हो वहीँ
मंजिल है |
· ईर्ष्यारहित व्यक्ति को अंतर का सुख प्राप्त होता है |
· आवेश से हमारी शक्तियाँ क्षीण होती हैं और समता से उनका
विकास होता है |
· संत का सान्निध्य भगवान के सान्निध्य से भी बढकर माना गया
है |
· लोग अभाव से दु:खी नहीं होते, नासमझी से दु:खी होते हैं |
· दूसरे के अधिकार की रक्षा करते हुए सेवा करते हैं तो वह भजन
हो जाता है |
ऋषिप्रसाद – मार्च २०२२ से
देशी गुड़ स्निग्ध, बल-वीर्यवर्धक, वात-पित्तशामक, पचने में भारी, मूत्र की शुद्धि करनेवाला एवं
नेत्र-हितकर है | यह हड्डियों और मासपेशियों को सशक्त बनाने
में सहायक है |
पुराना गुड़ पचने में हलका, रुचिकारक, ह्रदय-हितकर, थकान दूर करनेवाला, भूखवर्धक व रक्त को साफ़
करनेवाला है | गुड़ को संग्रहित करके रखें व एक वर्ष पुराना
होने पर खायें, यह विशेष हितकारी है |
इससे गुड़ के हानिकारक प्रभाव से भी रक्षा होगी |
भैषज्यरत्नावली के अनुसार ‘पुराना गुड़ नहीं मिलने पर नये गुड़ को १२ घंटे तीव्र धूप में
रखकर उपयोग कर सकते हैं |’
मैल को निकाले बिना जो गुड़ बनाया जाता है उसके सेवन से पेट
में कृमियों की उत्पत्ति होती है | यह मेद, मांस, मज्जा तथा कफ
को बढाता है | रासयनिक द्रव्यों के उपयोग से बनाया गया गुड़
स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है |
सफेद जहर से बचें
गन्ने के रस में जितने प्रकार के पोषक तत्व विद्यमान होते
हैं वे लगभग सभी तत्त्व गुड़ में पाये जाते हैं | अत: मीठे व्यंजनों में शक्कर के स्थान पर गुड़ का उपयोग
हितकारी है | शक्कर शरीर को कोई खनिज तत्व या विटामिन नहीं
देती बल्कि वह कैल्शियम , विटामिन डी जैसे शरीर के
महत्वपूर्ण तत्त्वों का ह्रास कर देती है | वर्तमान में
अधिकतर लोगों में पायी जानेवाली अस्थियों की दुर्बलता व भंगुरता का एक मुख्य कारण
शक्कर है | यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफोर्निया सैन फ्रांसिस्को के
पीडियाट्रिक न्यूरो-एंडोक्रायनोलॉजिस्ट रॉबर्ट लस्टिंग कहते हैं कि “शक्कर बीमारियाँ
बनाती हैं, यह जहर है |”
यह ह्रदयरोग, कैंसर, मधुमेह जैसे गम्भीर रोगों का खतरा बढ़ा देती
हैं | हानिकारक रसायनों से रहित पुराना देशी गुड़ इसका उत्तम
विकल्प है |
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ़ फार्मास्युटिकल रिसर्च एंड एप्लिकेशन
में प्रकाशित एक शोध के अनुसार गुड़ में शरीर के लिए आवश्यक महत्वपूर्ण खनिज, जैसे – कैल्शियम,
फोर्स्फोरस, मैग्नेशियम, पोटैशियम, लौह, जिंक, ताँबा, फोलिक एसिड तथा विटामिन बी-कॉम्प्लेक्स आदि पाये जाते हैं |
सावधानियाँ : रसायनरहित देशी गुड़ का ही सेवन करे | गुड़ की प्रकृति गर्म होने से गर्भवती महिलाएँ व पित्त प्रकृतिवाले लोग इसका सेवन अल्प मात्रा में करें | कृमि, मोटापन, बुखार, भूख कम लगना और मधुमेह आदि में गुड़ नहीं खाना चाहिए | गुड़ के साथ दूध व उड़द का सेवन न करें |
ऋषिप्रसाद – मार्च २०२२ से
२३ फरवरी
: बुधवारी अष्टमी ( शाम ४:५७ से २४ फरवरी सूर्योदय तक)
२७ फरवरी
: त्रिस्पृशा-विजया एकादशी ( इस दिन उपवास
से १००० एकादशी व्रतों का फल)
१ मार्च
: महाशिवरात्रि व्रत, रात्रि- जागरण, शिव-पूजन (निशिथकाल : रात्रि १२:२६ से १:१५
तक)
२ मार्च:
द्वापर युगादि तिथि ( स्नान, दान-पुण्य, जप, हवन से अनंत फल की प्राप्ति होती है
|)
१३ मार्च
: रविपुष्यामृत योग ( रात्रि ८:०६ से १४ मार्च सूर्योदय तक)
१४ मार्च
: आमलकी एकादशी ( व्रत करके आँवले के वृक्ष के पास रात्रि-जागरण, उसकी १०८ या २८
परिक्रमा करने से सब पापों का नाश व १००० गोदान का फल ), षडशीति संक्रान्ति (
पुण्यकाल : दोपहर १२:४८ से सूर्यास्त तक) (ध्यान, जप व पुण्यकर्म का ८६,००० गुना
फल )
ऋषिप्रसाद – फरवरी २०२२ से
ऋषिप्रसाद – फरवरी २०२२ से