दातौन के अतिरिक्त दंतमंजन का भी उपयोग किया जा सकता है। इसके लिए सोंठ, काली मिर्च, पीपर, हरड़, बहेड़ा, आँवला, दालचीनी, तेजपत्र तथा इलायची के समभाग चूर्ण में थोड़ा-सा सेंधा नमक तथा तिल का तेल मिलाकर 'दंतशोधक पेस्ट' बनायें। कोमल कुर्विका से अथवा प्रथम उँगली से मसूड़ों को नुकसान पहुँचाये बिना दाँतों पर घिसें। इससे मुख की दुर्गन्ध, मैल तथा कफ निकल जाते हैं एवं मुख में निर्मलता, अन्न में रूचि तथा मन में प्रसन्नता आती है।
दंतधावन के उपरान्त जिह्वा निर्लेखनी से जिह्वा साफ करनी चाहिए। इसके लिए दातौन के दो भाग करके एक भाग का उपयोग करें।
दिन में दो बार दंतधावन करें। भोजन के बाद तथा किसी भी खाद्य-पेय पदार्थ के सेवन के बाद दाँतों व जिह्वा की सफाई अवश्य करनी चाहिए।
गण्डूष धारण (कुल्ले करना)- द्रव्यों को मुख में कुछ समय रखकर निकाल देने को गण्डूष धारण करना कहते हैं। त्रिफला चूर्ण रात को पानी में भिगो दें। सुबह छानकर इस पानी से कुल्ला करें। दंतधावन के बाद गण्डूष धारण करने से अरूचि, दुर्गन्ध, मसूड़ों की कमजोरी दूर होती है। मुँह में हलकापन आता है। गुनगुने तिल तेल से गण्डूष धारण करने से स्वर स्निग्ध होता है। दाँत व मसूड़े वृद्धावस्था तक मजबूत बने रहते हैं। वृद्धावस्था में भी दाँत देर से गिरते हैं।]
Arogya Nidhi
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